मुकुल रॉय के ‘प्रमोशन’ पर बीजेपी में रार, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष की पार्टी छोड़ने की धमकी

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नवनियुक्त राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय (Mukul Roy) के नाम पर अब बंगाल बीजेपी में रार होती दिख रही है. मुकुल रॉय को यह पोस्ट शनिवार को मिली है, जिसका ऐलान खुद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने किया. इतना ही नहीं 2019 में तृणमूल कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए पूर्व सांसद अनुपम हाजरा को भी राष्ट्रीय सचिव बनाया गया है. इस फैसले से बंगाल बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और सीनियर नेता राहुल सिन्हा (Rahul Sinha) नाराज हो गए हैं. उन्होंने पार्टी छोड़ने तक का इशारा कर दिया है.

कहा जा रहा है कि बीजेपी ने यह फैसला टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए नेताओं को खुश करने के लिए किया है. मुकुल (Mukul Roy) को लोकसभा में बंपर जीत के बाद भी बीजेपी की तरफ से कोई खास पद नहीं दिया गया था. इससे पहले बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष से उनके रिश्ते खराब होने की खबरें भी आई थीं. कभी टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी के खास रहे मुकुल रॉय 2017 में बीजेपी में शामिल हुए थे.

राहुल सिन्हा बोले- 40 साल तक पार्टी की सेवा की

लेकिन अब टीएमसी नेताओं को पद मिलने पर बीजेपी नेता राहुल सिन्हा (Rahul Sinha) नाराज हैं. उन्होंने लिखा, ‘मैंने 40 साल तक बीजेपी की सेवा की. मैं पार्टी का भरोसेमंद सिपाही रहा हूं. लेकिन आज मुझे अपनी पोस्ट टीएमसी नेताओं के लिए जगह बनाने को छोड़नी पड़ रही है. इससे ज्यादा दुखद कुछ नहीं हो सकता.’

 

सिन्हा जो बंगाल से बीजेपी के महासचिव रहे उन्हें टीएमसी नेता अनुपम हजारा को फिट करने के लिए हटाया गया है. इसपर वह बोले, ‘पार्टी की तरफ से जो मुझे जो तोहफा मिला है उसपर मैं कुछ नहीं कहना चाहूंगा. आनेवाले 10-12 दिनों में मैं कोई फैसला लूंगा.’ ऐसा कहकर सिन्हा ने बीजेपी छोड़ने का इशारा दिया है.

महात्मा गांधी के पास कौन सी पोस्ट थी: चंद्र कुमार बोस

हालांकि, इस झगड़े को शांत करवाने की कोशिश भी हो रही है. बीजेपी की तरफ से चंद्र कुमार बोस ने कहा है कि पोस्ट में कुछ नहीं रखा है. उन्होंने लिखा, ‘आज के राजनेता पोस्ट के लिए संघर्ष करते हैं. महात्मा गांधी के पास कौन सी पोस्ट थी? सुभाष चंद्र बोस ने पद की कभी चिंता नहीं की.’

बता दें कि 2015 में दिलीप घोष की एंट्री से पहले तक सिन्हा ही बंगाल बीजेपी का चेहरा थे. हालांकि, बीजेपी की तरफ से वह कभी चुनाव नहीं जीत पाए, जबकि उन्हें मौके कई मिले.

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