क्या है ई-टेंडरिंग घोटाला? जिसके नाम पर शिवराज सरकार और BJP को बार-बार घेरती है कांग्रेस

भोपाल: इन दिनों मध्य प्रदेश की सियासत में ब्लैकमनी का मुद्दा छाया हुआ है. बीते साल अप्रैल में मध्य प्रदेश में पड़े आयकर विभाग के छापों से जुड़े दस्तावेज लीक हुए हैं. इन दस्तावेजों में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस द्वारा ब्लैकमनी के इस्तेमाल का मामला सामने आ रहा है. इसको लेकर कांग्रेस ने अपनी स्थिति स्पष्ट की है.

शनिवार को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि भाजपा सरकार उन अधिकारियों को निशाना बनाना चाहती है जो ई-टेंडरिंग घोटाले की जांच कर रहे थे. ये अधिकारी वही हैं जिनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश चुनाव आयोग ने शिवराज सरकार से की है. इस पूरे घटनाक्रम को समझने के लिए पहले आपको यह समझना होगा कि ई-टेंडरिंग घोटाला क्या है?

जानिए क्या है ई-टेंडरिंग घोटाला?
मध्य प्रदेश सरकार ने अलग-अलग विभागों के ठेकों में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए 2014 में ई-टेंडरिंग की व्यवस्था लागू की थी. इसके लिए बेंगलुरु की निजी कंपनी से ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल बनवाया गया. तब से मध्य प्रदेश में हर विभाग इसके माध्यम से ई-टेंडर करता है.

मध्य प्रदेश लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (MP Public Health Engineering Department or MP-PHE) ने जलप्रदाय योजना के 3 टेंडर 26 दिसंबर 2017 को जारी किए थे. इनमें सतना के 138 करोड़, राजगढ़ के 656 करोड़ और 282 करोड़ के टेंडर थे.

टेंडर नंबर 91: सतना के बाण सागर नदी से 166 एमएलडी पानी 1019 गांवों में पहुंचाने के लिए 26 दिसंबर 2017 को ई.टेंडर जारी किया गया था. इस प्रोजेक्ट के लिए 5 बड़ी नामी कंपनियों ने टेंडर भरे थे.

टेंडर नंबर 93: राजगढ़ जिले की काली सिंध नदी से 68 एमएलडी पानी 535 गांवों को सप्लाई करने का टेंडर 26 दिसंबर 2017 को जारी किया गया था. इस प्रोजेक्ट के लिए 4 नामी कंपनियों ने  टेंडर भरे थे.

टेंडर नंबर 94: राजगढ़ जिले के नेवज नदी पर बने बांध से 26 एमएलडी पानी 400 गांवों को सप्लाई करने के लिए  26 दिसंबर 2017 को ई.टेंडर जारी किया गया था. इस प्रोजेक्ट के लिए 7 कंपनियों ने टेंडर भरे थे.

कैसे हुआ ई-टेंडिरिंग में फर्जीवाड़ा?
टेंडर टेस्ट के दौरान 2 मार्च 2018 को जल निगम के टेंडर खोलने के लिए डेमो टेंडर भरा गया. जब 25 मार्च को टेंडर लाइव हुआ तो पता चला कि डेमो टेंडर अधिकृत अधिकारी पीके गुरू के इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट से नहीं बल्कि फेक इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट से भरा गया था. बोली लगाने वाली एक निजी कंपनी 2 टेंडरों में दूसरे नंबर पर रही. कंपनी ने इस मामले में गड़बड़ी की शिकायत की. कंपनी की शिकायत पर तत्कालीन प्रमुख सचिव ने विभाग की लॉगिन से ई-टेंडर साइट को ओपन किया तो उसमें एक जगह लाल क्रॉस दिखाई दिया.

ई-टेंडर में टेम्परिंग कर रेट बदले गए
उन्होंने इस संबंध में जब विभाग के अधिकारियों से पूछा तो जवाब मिला कि यह रेड क्रॉस टेंडर साइट पर हमेशा ही आता है.  तत्कालीन प्रमुख सचिव ने पूरे मामले की जांच कराई तो सामने आया कि जब ई-प्रोक्योरमेंट में कोई छेड़छाड़ करता है तो रेड क्रॉस का निशान आ जाता है. जांच में ई-टेंडर में टेम्परिंग कर रेट बदलने का तथ्य उजागर हुआ.  इसके लिए एक नहीं कई डेमो आईडी का इस्तेमाल हुआ. तत्कालीन प्रमुख सचिव मैप-आईटी मनीष रस्तोगी ने ई-टेंडर घोटाला पकड़ा था.

कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में बनाया बड़ा मुद्दा
कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान ई-टेंडरिंग घोटले को एक प्रमुख मुद्दा बनाया था. कांग्रेस ने यह दावा किया था कि यह व्यापमं घोटाले से बहुत बड़ा हो सकता है. कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने आरोप लगाया कि जल निगम के 3000 करोड़ के 3 टेंडर में पसंदीदा कंपनी को ठेका देने के लिए ई टेंडरिंग प्रॉसेस में टेंपरिंग की गई थी. इसमें कई बड़े अधिकारी और मंत्री शामिल हैं.

चीफ सेक्रेटरी ने 9 ई-टेंडर की जांच ईओडब्ल्यू को सौंपी
इस घोटाले की शुरुआत पीएचई के 3 टेंडरों से हुई. बाद में पीडब्लूडी, जल संसाधन विभाग, एमपी सड़क विकास निगम के 9 और ई-टेंडर जांच के घेरे में आए. मध्य प्रदेश के तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी बीपी सिंह के आदेश के बाद सभी 9 ई-टेंडर जांच के लिए इकोनॉमिक अफेंस विंग (Economic Offences Wing) को सौंप दिए गए.

तब बी मधुकुमार ईओडब्लू के एडीजी थे. उनके साथ आईपीएस सुशोभन बैनर्जी और संजय माने भी ई-टेंडरिंग घोटाले की जांच में शामिल थे. मध्य प्रदेश में 2018 विधानसभा और 2019 लोकसभा चुनाव में ब्लैकमनी का इस्तेमाल किए जाने के मामले में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के रिपोर्ट के आधार पर चुनाव आयोग ने इन्हीं 3 आईपीएएस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश जारी किया है.

जून 2019 में EoW ने इस घोटाले में  FIR दर्ज की
ईओडब्ल्यू ने कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (CERT) को एनालिसिस रिपोर्ट के लिए 13 हार्ड डिस्क भेजी थीं. इनमें तीन में टेंपरिंग की पुष्टि हुई. इसकी जांच 3000 करोड़ से बढ़कर 80000 करोड़ के टेंडर घोटाले तक पहुंच गई.  जून में 2019 ईओडब्ल्यू ने इस घोटाले में प्राथमिकी दर्ज की थी. आईएएस राधेश्याम जुलानिया और हरिरंजन राव सवालों के घेरे में आए.

ई-टेंडरिंग से जुड़ी 2 निजी कंपनियों को नोटिस भेजा
एमपीएसईडीसी के तत्कालीन एमडी मनीष रस्तोगी ने ई-टेंडरिंग से जुड़ी 2 बड़ी निजी कंपनियों को 6 जून 2019 को नोटिस भेजा. इसी महीने उनका तबादला हो गया. मध्य प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रॅानिक डेवलपमेंट कॉरपोरेशन में डेढ़ साल में 6 एमडी बदले गए.

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