कच्ची शराब का कारोबार:सख्ती की तो 15 दिन में एक करोड़ से ज्यादा की नष्ट कराई लेकिन पकड़ा कोई नहीं
- शहर की कई कॉलोनियों में हो रहा कच्ची शराब का धंधा
- मुरैना कांड के बाद सरकार ने सख्ती दिखाई तो आबकारी विभाग सक्रिय
- डबरा व भितरवार अंचल में बड़े पैमाने पर किया जा रहा कच्ची शराब का निर्माण
डबरा-भितरवार अंचल में सालों से बड़े पैमाने पर कच्ची शराब बनाए जाने का धंधा चल रहा है। हालत यह है कि शहर की कालोनियों में भी यह शराब खपाई जा रही है। सरकार की सख्ती के बाद आबकारी विभाग की टीम ने विगत पंद्रह दिनों में ही एक करोड़ से ज्यादा की शराब नष्ट की है। लेकिन किसी भी जगह से सैंपल जांच के लिए नहीं भेजे गए हैं जिससे यह पता नहीं चल पाया कि इसमें क्या मिलाया जाता है।
दरअसल मुरैना जिले में जहरीली शराब पीने से हुई लोगों की मौत के बाद सरकार द्वारा कार्रवाई करने के आदेश दिए गए हैं। इसके चलते आबकारी व पुलिस सक्रिय दिखाई दे रही है। यही वजह है कि विगत पंद्रह दिनों में ही खुफिया जगहों पर बड़े पैमाने पर कच्ची शराब बनते हुए पकड़ी गई। अभी तक करीब एक करोड़ से ज्यादा की अवैध शराब व गुड लहान नष्ट कराया जा चुका है।
खास बात यह है कि जिन जगहों पर अवैध शराब बनते हुए पकड़ी गई है वहां पर कई सालों से यह काम चल रहा था। यही इसके अलावा भी कई क्षेत्र तो ऐसे हैं जहां पर अभी भी शराब बनाने का काम किया जा रहा है। यहां पर बनाए जाने के बाद डबरा व भितरवार शहर में पहुंचती है जिससे खुलेआम बेचा जाता है। इस तरह कच्ची शराब बिकने के चलते कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है।
कोरोनाकाल से बढ़ा देशी शराब बनाने का कारोबार
अंचल में कच्ची शराब का धंधा वैसे तो कई सालों से चल रहा है। लेकिन कोरोना काल में शराब की दुकानें बंद होने की वजह से कच्ची शराब की डिमांड एकाएक बढ़ गई थी। इस वजह से शराब माफियाओं द्वारा भारी मात्रा में शराब का निर्माण कर शहरों में भेजी जा रही थी। अकेले डबरा व भितरवार सहित आसपास के अंचल के अलावा यह कच्ची शराब दतिया, शिवपुरी, ग्वालियर, झांसी के अलावा अन्य जिलों में भी पहुंचती है।
कार्रवाई में कंजरों के डेरों से पकड़ी जाती है शराब, नहीं मिलता माफिया
आबकारी विभाग व पुलिस द्वारा विगत पंद्रह दिनों से लगातार कार्रवाई की जा रहीं हैं। लेकिन हर बार मौके पर बनी हुई शराब, गुड लहान व शराब बनाने का सामान ही मौके पर मिलता है। शराब बनाने वाला एक भी व्यक्ति अभी तक गिरफ्त में नहीं आ सका है। टीम के पहुंचने से पहले ही शराब माफियाओं को इसकी जानकारी लग जाती है और वह भागने में कामयाब हो जाते हैं।
अधिकांश मामलों में तो इनकी पहचान तक नहीं हो पाती है। क्योंकि यह ऐसी जगह पर शराब बनाने का काम करते हैं जो सुनसान और खाली पड़ी होती है। रविवार को ही ग्राम गोहिंदा में कंजरों के डेरा पर कार्रवाई में जमीन में 60 ड्रमों मेंं और 6 होदों में भरकर छिपाई गई 30 लाख कीमत की करीब 5800 लीटर कच्ची शराब, और 35000 किलो गुड़लहान पकड़ा गया था। लेकिन मौके पर पहुंची आबकारी व पुलिस की टीम को एक भी आरोपी नहीं मिला, जिसके चलते अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।
वैध ठेकेदार एमआरपी से ज्यादा में बेच रहे शराब, इसलिए ज्यादा डिमांड
शहर में अंग्रेजी व देशी शराब की एक दर्जन से ज्यादा दुकानें हैं। लेकिन यहां पर ठेकेदार द्वारा एमआरपी से काफी ज्यादा रेट पर शराब बेची जा रही है। यही वजह है कि शहरों में गांवों से बनकर आने वाली कच्ची शराब की कीमत कम होने से ज्यादा डिमांड रहती है। वहीं एमआरपी से ज्यादा कीमत में शराब बेचे जाने की जानकारी की लोगों द्वारा आबकारी विभाग के अधिकारियों से भी शिकायत की। लेकिन इसके बाद भी कार्रवाई नहीं की जा रही है। कच्ची शराब का ग्रामीण क्षेत्रों भारी मात्रा में बिक्रय किया जाता है।
माफिया पर कार्रवाई कर मामले भी दर्ज किए गए हैं
अवैध रूप से बनाई जा रही शराब को लेकर हम निरंतर कार्रवाई कर रहे हैं। कुछ लोगों के खिलाफ मामला भी दर्ज किया गया है। जहां तक एमआरपी से ज्यादा रेट में शराब बेचे जाने की बात है तो मैं इसका पता करवाता हूं। – संदीप शर्मा, जिला आबकारी अिधकारी, ग्वालियर