युवाओं की नसों में घुलता नशा:भोपाल में ऑनलाइन ड्रग्स तस्कर इंजीनियर के पास एक हजार की डिमांड थी; पैसे की कमी के कारण 25% ही माल बुला पाता था
भोपाल में ड्रग्स के नशे का कारोबार बढ़ता ही जा रहा है। अकेले प्रखर के पास ही 15 दिन के अंदर एक हजार से अधिक युवा संपर्क कर इसकी डिमांड करते थे। पैसों की कमी होने के कारण तस्कर इंजीनियर प्रखर सिर्फ 25% मांग ही पूरी कर पाता था, क्योंकि ऑनलाइन डिमांड करने के बाद माल उस तक कम से कम 15 दिन बाद ही पहुंच पाता था।
यह पूरा ड्रग्स का कारोबार इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन चल रहा है, जहां ना खरीदने वाला जानता है कि वह किस से माल ले रहा है और ना ही बेचने वाले को पता होता है कि उस तक माल कैसे पहुंचेगा। सब कुछ ऑनलाइन होता है। इसमें कोई चेहरा नहीं होता। सिर्फ एक मैसेज पर यह पूरा खेल चलता है। इसका खुलासा खुद प्रखर ने पिपलानी पुलिस की पूछताछ में किया।
महीने में दो बार बुलाता था माल
उसने बताया कि वह महीने में दो बार इस तरह का माल बुलाता था। इसके लिए साइबर कैफे का उपयोग करता था। वहां से एक ई-मेल के माध्यम से वह अपना ऑर्डर प्लेस करता था। ऑर्डर होने के बाद वह ऑनलाइन ही पेमेंट करता था, जो डॉलर और बिटकॉइन के माध्यम से होती थी।
उसे एडवांस में पैसा देना होता था। पैसों की कमी के कारण वह ज्यादा ऑर्डर नहीं ले पाता था। उसके पास संपर्क करने वाले युवाओं से वह 25% को ही माल सप्लाई कर पाता था। वह वाट्सअप के माध्यम से इन लोगों से जुड़ा रहता था और मुख्य रूप से पार्टियों और लेट नाइट चलने वाली पार्टियों में वह यह सप्लाई करता था।
तस्कारों की नजर छात्रों पर
पिपलानी पुलिस के हत्थे चढ़ा ड्रग्स हाई सोसाइटी का ड्रग्स माना जाता है। इसके लिए ड्रग्स तस्कर छात्रों के संपर्क में रहते हैं। पहले उनसे दोस्ती की जाती है। उन्हें पार्टियों में ले जाया जाता है। नशे की लत लगने के बाद उन्हें इसमें धकेल दिया जाता है। इस धंधे की खास बात यह है कि जो इसके ग्राहक हैं वही सप्लायर भी बन जाते हैं।
इसमें लड़कियों का भी उपयोग किया जाता है। उन्हीं के माध्यम से पार्टी आयोजित की जाती है। उसमें छात्र-छात्राओं को बुलाया जाता है। लत लगने के बाद छात्र खुद ही नशे को पूरा करने के लिए दूसरों को भी इसमें लेकर आते हैं। इसके एवज में उसे कई बार फ्री में ड्रग्स मिल जाती है। इस तरह यह नेटवर्क बढ़ता जाता है।
पुलिस की कमजोरी
ड्रग्स मामले में पुलिस की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि मुख्य आरोपी तक कभी नहीं पहुंच पाते हैं। एक तो यह पूरा नेटवर्क ऑनलाइन चलता है। दूसरा इसमें मुख्य रूप से नशा करने वालों को ही शामिल किया जाता है। उन्हें नशे के अलावा किसी और की जानकारी नहीं होती है।
ऐसे में उनके पकड़े जाने पर भी पुलिस को कोई खास जानकारी नहीं मिल पाती है। यही समस्या प्रखर को पकड़ने के बाद भी पुलिस के सामने आ रही है। 24 घंटे की पूछताछ के बाद भी पुलिस प्रखर से कोई खास जानकारी हासिल नहीं कर पाई है।
रेड जोन के क्षेत्र बन गए
भोपाल में ड्रग तस्करों की नजर में कुछ खास इलाके चिन्हित है। इनमें अशोका गार्डन, पिपलानी, एमपी नगर, गोविंदपुरा, होशंगाबाद रोड और आउटर के इलाके, क्योंकि यहां पर कॉलेजों की संख्या अधिक है। बाकी इलाकों में स्टूडेंट काफी संख्या में रहते हैं।
इसी कारण तस्कर इन इलाकों में ज्यादा सक्रिय है। क्राइम ब्रांच भी पिछले कुछ दिनों में अशोका गार्डन से कुछ तस्कर गिरफ्तार कर चुकी है, जिसमें कई लड़कियों के भी नाम सामने आए थे। पुलिस के लिए यह इलाके रेड जोन है।
पुलिस थाने के पास तक छिपाकर रखते थे ड्रग्स
शिखर ने पुलिस को बताया कि ऑर्डर करने के बाद उसे पता नहीं होता था कि माल कब और कहां आएगा? ऑटोजेनरेट एक मैसेज आता था और उसे उस जगह का पता मिलता था। जहां वह माल रखा होता था। कई बार तो माल थाने के पास भी रख दिया जाता था।
इसका मुख्य कारण यह था कि वहां संदेह कम रहता है और दूसरा माल गायब होने की संभावना कम रहती है। आरोपी मुख्य रूप से सार्वजनिक स्थानों का उपयोग ज्यादा करते थे। SMS के करीब 1 घंटे के अंदर यह पूरा माल डिलीवर हो जाता था।