UP में पुराने केसों से दबी न्यायपालिका:इलाहाबाद हाईकोर्ट में 10 लाख पेंडिंग केस, जज महज 98; सभी बगैर छुट्‌टी लिए भी सुनवाई करेंगे तो निपटाने में 15 से 20 साल लग जाएंगे

इलाहाबाद हाईकोर्ट मुकदमों के बोझ तले दब गया है। यहां नए-पुराने करीब 10 लाख केसेज पेंडिंग हैं। इनमें कई मुकदमे 30 साल पुराने भी हैं। नए मुकदमों के बीच उनका नंबर ही नहीं आ रहा है। मतलब साफ है लोगों को न्याय पाने के लिए एक या दो साल नहीं बल्कि लंबा इंतजार करना पड़ रहा है।

मुकदमों की पेंडिंग लिस्ट बढ़ने का सबसे बड़ा कारण जजों की संख्या है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में केवल 98 जज हैं। इन जजों के भरोसे ये 10 लाख पेंडिंग केस हैं। यानी हर एक जज के भरोसे 10 हजार 204 मुकदमा। ऐसे में आने वाले नए मुकदमों को भी छोड़ दिया जाए तो भी इन पुराने मामलों को निपटाने में इन 98 जजों को कम 15 से 20 साल लग जाएंगे।

160 स्वीकृत पदों में से 62 पद अब भी खाली
इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ खंडपीठ में कुल जजों की संख्या 98 है। 160 जजों के पद स्वीकृत हैं और इनमें अभी 62 पद रिक्त चल रहे हैं। इनमें भी चीफ जस्टिस सहित कई न्यायाधीशों का रिटायरमेंट करीब है। मतलब अगले एक-दो साल में जजों की संख्या बढ़े या नहीं… घटनी तय है।
जस्टिस के स्वीकृत पदों पर नियुक्ति में हो रही देरी और कोरोना के कारण केवल अभी 16 बेंचों में ही सुनवाई चल रही है। इसके चलते पेंडिंग केस की संख्या कम होने की बजाय दोगुने रफ्तार से बढ़ रही है। एक मई 2021 तक हाईकोर्ट की प्रधानपीठ में 7 लाख 88 हजार 399 और लखनऊ बेंच में 2 लाख 24 हजार 316 मुकदमे पेंडिंग हो चुके हैं। जितने मुकदमे सुने नहीं जाते रोज उससे अधिक मुकदमे फाइल होते हैं। ऐसे में पेंडेंसी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। हर महीने एक से डेढ़ लाख नए मुकदमे फाइल होते हैं। पिछले दो महीने से सुनवाई न हो पाने के कारण करीब तीन लाख मुकदमे और बढ़ गए हैं। इस समय कुल पेंडेंसी 10 लाख के ऊपर हो गई है।

मुकदमों की बढ़ती संख्या के पीछे 3 बड़े कारण

1. 20 से 30 साल पुराने मुकदमे छूने से बचते हैं जज
रिटायर्ड जज ने बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में सबसे ज्यादा 10 से लेकर 30 साल तक के पुराने मुकदमे लंबित हैं। इन्हें कोई भी जज नहीं छूना चाहता। जब तक हर जज को हफ्ते में पांच से 10 मुकदमे पुराने नहीं एलॉट होंगे तब तक पुराने मुकदमे कभी नहीं खत्म होंगे। आंकड़ों पर गौर करें तो पांच से 10 साल पुराने मुकदमों की संख्या कुल लंबित मुकदमों में 22% है और 10 से 20 साल पुराने मुकदमों की संख्या सबसे ज्यादा 26% है।

2. जब तक जज बनते हैं, तब तक रिटायरमेंट की उम्र हो जाती है
98 जजों में से लगभग 40% जज जिला एवं सत्र न्यायालय से प्रमोट होकर आते हैं। इनमें से ज्यादातर की उम्र 55 साल के ऊपर होती है। कुछ जज रिटायर होने की कगार पर होते हैं। जब तक ये जज हाईकोर्ट की कार्यप्रणाली से वाकिफ होते हैं रिटायर होने का समय आ जाता है। ऐसे में इनमें से बहुत से जज अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाते। ऐसे में हाईकोर्ट के बाकी जजों पर काम का ज्यादा बोझ पड़ता है। इनमें से कुछ ही जज अच्छा काम कर पाते हैं।

3. जजों की टाइमिंग देखने वाला कोई नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट से रिटायर्ड एक जज बताते हैं कि जब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ साहब थे तो सुबह 10 बजे सभी जज एकत्र होकर चाय पीते थे। यह परंपरा बहुत पुरानी थी। इससे सभी सुबह 10 बजे पहुंच जाते थे। अब वो परंपरा खत्म हो चुकी है। अब कौन कितने बजे आ रहा है और जा रहा है कोई नहीं पूछता। उन्होंने कहा कि चीफ जस्टिस को भी सुबह 10 से चार बजे तक बैठना होगा और लीडरशिप लेनी होगी। तब मुकदमों की ये लंबी कतारें कुछ कम हो सकती हैं।

फिजिकल हियरिंग न होने से और बढ़ा बैकलाॅग
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अमरेंद्र नाथ सिंह कहते हैं कि हमारी मांग है कि अब फिजिकल हियरिंग शुरू की जाए पर अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की ई-कमेटी ने हमारी फिजिकल हियरिंग की मांग को ठुकरा दिया है। लिहाजा इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमों को ऑनलाइन सुना जा रहा है।
तकनीकी दिक्कतों और अधिवक्ताओं का यूज टू न होना भी बैरियर का काम कर रहा है। जहां पहले एक जज फिजिकल मुकदमों की सुनवाई 50 से 60 तक हो जाती थी अब 15 से 20 भी नहीं निस्तारित हो रहे हैं। हर बेंच के सामने रोज 100 से 200 मामले सुनवाई के लिए लिस्टिंग होती है। इसके बावजूद लंबित केसों की संख्या बहुत ज्यादा है। एडवोकेट श्रवण त्रिपाठी कहते हैं कि ऑनलाइन मुकदमों की सुनवाई से बहुत समस्या आ रही है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि जल्द ही चीफ जस्टिस के निर्देश पर हाईकोर्ट में फिर से मुकदमों की सुनवाई की पुरानी व्यवस्था बहाल होगी।

ऐसे भी जज जिन्होंने एक दिन में निपटाए 500 से 700 मुकदमे
इलाहाबाद हाईकोर्ट में कई ऐसे भी जज रहे रहे हैं जिन्होंने एक दिन में 500 से 700 मुकदमे निपटाने का कीर्तिमान बनाया है। इनमें प्रमुख रूप से जस्टिस बीके नारायण, जस्टिस शशिकांत गुप्ता, जस्टिस रवींद्र, जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस अरुण टंडन, जस्टिस बीके शुक्ला, जस्टिस तरुण अग्रवाल शामिल रहे हैं। ये सभी जज रिटायर हो चुके हैं। इस समय हाईकोर्ट में बहुत कम ही ऐसे जज हैं जो एक दिन में 200 से 300 मुकदमा निपटा देते हों।

इन 10 पॉइंट्स पर काम हो तो हाईकोर्ट का सिस्टम ही सुधार जाए

  • जजों व अन्य स्टाफ के सभी रिक्त पदों को जल्द से जल्द भरा जाए।
  • सीनियर जजों को पांच-पांच सबसे पुराने मुकदमे अटैच किए जाएं।
  • चीफ जस्टिस खुद भी पुराने मुकदमे सुनें और बाकी जजों से फीडबैक लें।
  • काम का बंटवारा जजों के काम और उनके अनुभव के नेचर के हिसाब से हो।
  • नए जजों को सीनियर जजों के साथ बैठाया जाए, ताकि तेजी से काम सीखें।
  • चीफ जस्टिस भी सीनियर जजों के साथ बैठकर मंत्रणा करें और सलाह लें।
  • हाईकोर्ट में समय से आने और जाने का अनुपालन हो।
  • टीमवर्क की तरह सीनियर और जूनियर जज करें काम।
  • अनुभव और एक्सपर्टीज के लिहाज से हो काम का बंटवारा।
  • वीकली मॉनिटरिंग का सिस्टम बने और फीडबैक जरूरी हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *