विकास कार्य सवालों के घेरे में:वाराणसी में गंगा पार रेत में बनाई जा रही नहर को लेकर विशेषज्ञ चिंतित, अर्धचंद्राकार स्वरूप प्रभावित होने की आशंका, जल प्रवाह में आ सकती है कमी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में गंगा में काई की समस्या के बाद घाटों के दूसरी ओर रामनगर की तरफ 5.3 किलोमीटर लंबी और 45 मीटर चौड़ी नहर के निर्माण कार्य को लेकर विवाद गहराता ही जा रहा है। नदी विशेषज्ञ प्रो. यूके चौधरी के बाद हाल ही में वाराणसी आए जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने भी इस निर्माण कार्य पर गंभीर सवाल उठाए। राजेंद्र सिंह का कहना है कि गंगा के समानांतर बालू में खोदी गई नहर और बालू के टीले तबाही के सबब बन सकते हैं। प्राकृतिक स्वरूप से छेड़छाड़ से वाराणसी में गंगा घाटों से दूर हो जाएंगी। यह स्थिति वाराणसी के लिए ठीक नहीं है।
घाट किनारे जमा होगी गाद, जल प्रवाह में आएगी कमी
गंगा को लेकर वर्षों से काम करने वाले प्रो. यूके चौधरी ने नहर परियोजना को सवालों के घेरे में खड़ा करते हुए हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा था। प्रो. चौधरी के अनुसार, रेत पर नहर में डिस्चार्ज की गणना कैसे हुई। क्रॉस सेक्शन और ढलान कैसे निर्धारित किया गया। रेत में रिसाव के दर की गणना कैसे हुई। इस तरह के मनमाने प्रयोग से जैसे गंगा अस्सी घाट से दूर हो गई हैं, वैसे ही अन्य घाटों से भी दूर हो जाएगी। घाटों के आसपास पानी की गहराई कम होने के साथ ही जल प्रवाह कम हो जाएगा।
इसके चलते वाराणसी में गंगा का अर्धचंद्राकार स्वरूप नहीं रहेगा। गौरतलब है कि वाराणसी के दो-तिहाई लोग पीने के पानी के लिए गंगा पर ही निर्भर हैं। ऐसे में घाटों के दूसरे छोर पर बन रही नहर बाढ़ के पानी के वेग को सहन नहीं कर पाएगी। वैज्ञानिक सिद्धांतों की अनदेखी कर बनाई जा रही नहर की वजह से गंगा में पानी की गहराई कम होना शुरू हो जाएगी। इसके चलते गंगा के जल प्रवाह में कमी आने के साथ ही घाटों के किनारे भारी मात्रा में गाद जमा होना शुरू हो जाएगी। साथ ही गंगा का संपर्क घाटों से छूट जाएगा। प्रो. चौधरी के अनुसार गंगा पार रेत में बनने वाली नहर की डिजाइन मानक के अनुरूप नहीं है। बालू क्षेत्र में नहर का डिस्चार्ज और स्लोप कितना है इसकी जानकारी किसी को नहीं है। किसी वैज्ञानिक अध्ययन के बगैर नहर का निर्माण कराया जा रहा है। वाराणसी में कछुआ सैंक्चुरी हटाए जाने के बाद रेत उत्खनन की आड़ में गंगा के समानांतर नहर बनाना कतई सही नहीं है।
आईआईटी के प्रोफेसर और जल पुरुष ने जताई यह आपत्ति
आईआईटी बीएचयू के प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र के अनुसार नहर के चलते वाराणसी में गंगा के अर्धचंद्राकार स्वरूप को खतरा पैदा होगा। जैसे अस्सी घाट से गंगा दूर हुई हैं वैसा ही हाल फिर राजघाट तक हो जाएगा। गंगा पार रेत में नहर बनाने का काम कई समस्याओें को जन्म देगा। गंगा में बाढ़ आएगी तो नहर नष्ट हो जाएगी। इससे भूजल का स्तर और गंगा का इको सिस्टम प्रभावित होगा। इस नहर के साथ ही गंगा की धारा के बीच बांध बन जाएगा, जिसके चलते मिट्टी का भयावह जमाव होगा। मिट्टी का यह जमाव अस्सी से राजघाट तक के इलाके को विशेष रूप से प्रभावित करेगा। ऐसे में गंगा घाटों को छोड़ना शुरू कर देगी। घाट के नीचे जो कटाव क्षेत्र उत्पन्न हुआ है, वह भूजल के तीव्रता से रिसाव के कारण हुआ है। गंगा के संरक्षण के नाम पर मनमाना काम हो रहा है। इसके परिणाम बेहद ही गंभीर होंगे। वहीं, हाल ही में शहर आए जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा था कि बनारस के लोगों को निडर होकर गंगा के साथ हो रहे खिलवाड़ के खिलाफ खड़ा होना होगा। गंगा में हाल ही में काई की समस्या से यह स्पष्ट हो चुका है कि केंद्र सरकार के प्रोजेक्ट नदी के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा पैदा कर रहे हैं। इसके साथ ही वाराणसी में गंगा के अर्धचंद्राकार स्वरूप में बदलाव आ रहा है। इसके साथ ही गंगा में पाए जाने वाले जलचरों के लिए भी बड़ा खतरा हो सकता है।
क्या कहना है परियोजना प्रबंधक और डीएम का
गंगा पार रेत में नहर बनाने की परियोजना के प्रबंधक पंकज वर्मा के अनुसार विषय विशेषज्ञों के परामर्श के आधार पर 1195 लाख रुपये की लागत से करीब 5.3 किमी लंबी और 45 मीटर चौड़ी नहर बनाई गई है। नहर और गंगा के बीच बालू पर आईलैंड बनाया जाएगा और इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। वहीं जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा के अनुसार गंगा के पक्के घाटों के नीचे कटान हो रहा है। जांच में यह सामने आया है कि गंगा घाटों के पत्थरों के नीचे का हिस्सा पोपला हो गया है। समस्या के स्थायी समाधान के लिए सिंचाई विभाग और विषय विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर गंगा पार रेत में नहर बनाने की योजना बनाई गई। इससे गंगा के प्रवाह आदि को लेकर किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होगा।