Maharashtra Politics: ‘लाव रे तो वीडियो…’ क्या मुंबई में राज ठाकरे से गठबंधन का रिस्क उठायेगी बीजेपी?

उत्तर प्रदेश और बीएमसी के चुनाव लगभग एक साथ ही हैं. बीजेपी और एमएनएस दोनो ही पार्टियों को साथ आने में फायदा नजर आता दिख रहा है.

मुंबईः महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में इन दिनों राज ठाकरे और बीजेपी की नजदीकियां चर्चा का विषय बनीं हुईं हैं. बीते महीने भर के दौरान महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल दो बार राज ठाकरे से मुलाकात कर चुके हैं. दोनो ही पार्टियों के सूत्र संकेत दे रहे हैं कि ये मेल-मुलाकात अगले साल होने जा रहे मुंबई महानगरपालिका चुनावों को लेकर हो रही है.

राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस और बीजेपी दोनो ही आपसी गठबंधन की जरूरत महसूस कर रहे हैं. 2019 में शिव सेना के साथ छोड देने के बाद से बीजेपी राज्य में उसका विकल्प तलाश रही है. अगर एमएनएस साथ आ गई तो बीजेपी के पंडितों को लगता है कि शिव सेना के मराठी वोट काटने में मदद मिलेगी. 2017 के चुनाव में बीजेपी शिव सेना से बीएमसी पर उसकी तीन दशक पुरानी सत्ता छीनने के काफी करीब आ गई थी. 227 में से शिव सेना ने 84 सीटें जीतीं थीं, जबकि बीजेपी मात्र 2 सीट पीछे 82 पर थी. ऐसे में बीजेपी को लगता है कि अगले चुनाव में एमएनएस की मदद से उसने अगर हलका सा धक्का और दिया तो बीएमसी पर उसका झंडा लहरा सकता है. बीएमसी देश की सबसे बडी महानगरपालिका है और उसका बजट कई छोटे राज्यों के बजट से बडा होता है.

एमएनएस को भी लगता है कि बीजेपी के साथ हाथ मिलाना फायदे का सौदा हो सकता है. राज ठाकरे फिलहाल अपने आपको महाराष्ट्र की राजनीति में प्रासंगिक बनाये रखने के लिये संघर्ष कर रहे हैं और उनकी पार्टी एमएनएस अपना अस्तितव बरकरार ऱकने के लिये जूझ रही है. साल 2009 में एमएनएस ने अपनी स्थापना के बाद पहला विधान सभा चुनाव लडा था, जिसमें उसे 13 सीटें मिलीं थीं लेकिन उसके बाद हुए चुनावों में उसकी बडी दुर्गति हुई. 2014 में उसका सिर्फ एक ही विधायक आया और 2019 में भी पार्टी सिर्फ एक ही सीट जीत पाई. महानगरपालिकाओं से भी एमएनएस को निराशा हाथ लगी. नासिक महानगरपालिका से उसकी सत्ता छिन गई. 2017 के बीएमसी चुनाव में उसके 7 पार्षद जीते, जिनमें से 6 को शिव सेना ने अपने पाले में तोड लिया.

राज ठाकरे और बीजेपी के रिश्ते नरम-गरम रहते आये हैं. जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब राज ठाकरे गुजरात के दौरे पर गये और मोदी मॉडल की जमकर तारीफ की लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले उनके विचार मोदी और बीजेपी के प्रति एकदम विपरीत थे. राज ठाकरे ने राज्य भर में सभाएं ले लेकर मोदी के खिलाफ प्रचार किया. उनके मंच से मोदी के पुराने बयानों के वीडियो दिखाये जाते थे जिनके जरिये ठाकरे ये बताने की कोशिश करते थे कि मोदी की करनी और कथनी में कितना फर्क है. ठाकरे की ये वीडियो सभाएं ‘लाव रे तो वीडियो’ नाम से चर्चित हुईं थीं. तत्कालीन मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने आरोप लगाया कि राज ठाकरे ये सब एनसीपी के कहने पर कर रहे हैं. उन्होने शरद पवार का बिना नाम लिये कहा कि राज ठाकरे बारामती के तोते हैं जो वहां से बताई गई स्क्रिपट पढते हैं.

…लेकिन राजनीति में कोई किसी का स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता. अगर शिव सेना और कांग्रेस जैसे जानी दुश्मन साथ आ सकते हैं तो एमएनएस और बीजेपी के गठबंधन से भी इंकार नहीं किया जा सकता. वैसे हाल के सालों में एमएनएस मराठी के मुद्दे पर नरम पडते दिखी है. 2019 में राज  ठाकरे ने पार्टी के एजेंडे के तौर पर हिंदुत्व को अपनाते हुए कहा था कि हिंदुत्व उनके डीएनए में है. उन्होने पार्टी का चौरंगा झंडा भी बदल कर उसे भगवा कर दिया. सियासी हलकों में माना जा रहा है कि हिंदुत्व की जिस गोंद ने तीन दशकों तक बीजेपी और शिव सेना का जोडे रखा वही हिंदुत्व अगर बीजेपी और एमएनएस को साथ ले आये तो ताज्जुब की बात नहीं होगी.

उत्तर प्रदेश और बीएमसी के चुनाव लगभग एक साथ ही हैं. दोनो ही पार्टियों को साथ आने में फायदा नजर आता है. सियासी पंडितों की नजर में बीजेपी-एमएनएस गठबंधन के बीच सिर्फ एक ही रोड़ा है– राज ठाकरे का वो इतिहास जहां उन्होंने उत्तर भारतियों के प्रति नफरत भरे भाषण दिये और पर प्रांतियों के प्रति हिंसा का समर्थन किया. सवाल उठता है कि ऐसी इमेज वाले नेता के साथ अगर बीजेपी मुंबई में गठबंधन करती है तो उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इसका असर क्या नहीं होगा? हो सकता है कि गठबंधन की जमीन तैयार करने के लिये राज ठाकरे कुछ ऐसा कह दें या कर दें जिससे उनके अतीत में अपनाये गये रूख पर पानी फिर जाये.

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