फिर बड़ा खतरा बन सकते हैं अल-कायदा और ISIS जैसे आतंकी संगठन, जानें तालिबानी राज आने से दुनिया पर और क्या असर होगा?

दो दशक से अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने का दावा कर रहा अमेरिका अपना मिशन पूरा किए बिना ही लौट गया है। इधर अमेरिकी सेना की वापसी हुई और उधर अफगानिस्तान पर तालिबान का दोबारा कब्जा हो गया। दुनियाभर के देश काबुल में अपना दूतावास खाली कर रहे हैं, अपने नागरिकों को अफगानिस्तान से निकालने में जुटे हैं। काबुल एयरपोर्ट पर अफरा-तफरी का माहौल है।

बदले हालात में दुनिया के सामने कई सवाल हैं। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से दुनिया पर क्या असर होगा? क्या आतंकवाद बढ़ेगा? तालिबान चीन और पाकिस्तान की जुगलबंदी को कितना मजबूत करेगा? इस बदलाव का भारत पर क्या असर पड़ेगा?

इन सवालों का जवाब जानने के लिए हमने दो एक्सपर्ट्स से बात की। पहले, रहीस सिंह, जो विदेशी मामलों के विशेषज्ञ हैं और इस विषय पर कई किताबें लिख चुके हैं। दूसरे, सुधीर सुथार जो जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज में प्रोफेसर हैं। आइए इन्हीं से समझते हैं…

क्या दुनिया में आतंकवाद बढ़ेगा?

1996 से 2001 के दौरान जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर शासन किया था, तब तालिबान ने अल-कायदा जैसे आतंकी संगठनों को खूब फलने-फूलने का मौका दिया। इसी दौरान ओसामा बिन लादेन ग्लोबल टेररिस्ट बनकर उभरा।

इस बार तालिबान भले ही दुनिया के सामने शांति की बात कर रहा हो, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि अल-कायदा और तालिबान एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकेंगे। तालिबान के शासन में अल-कायदा और ISIS जैसे संगठनों को पर्दे के पीछे से मदद मिलती रहेगी। इससे आशंका है कि दुनिया में आतंकवाद बढ़ सकता है।

रहीस सिंह कहते हैं कि तालिबान के 60 हजार लड़ाकों ने जिस तरह अफगान सिक्योरिटी फोर्सेज के 3 लाख से भी ज्यादा लड़ाकों को भागने पर मजबूर कर दिया उससे आतंकी समूहों का हौसला तो बढ़ेगा। लगभग मर चुका ISIS फिर से खड़ा हो सकता है। दक्षिण अफ्रीका के कई देशों में फैले छोटे आतंकी संगठनों में तालिबान की ये जीत एक नई ऊर्जा का संचार कर सकती है। अगर ये सब मिलते हैं तो दुनिया में आतंकवाद का बढ़ना तय है। अल-कायदा, बोको हराम, अल सहाब, तहरीक-ए-तालिबान, हक्कानी गुट जैसे कई संगठन एकजुट हो सकते हैं। इसके साथ ही पाकिस्तान में सक्रिय रहने वाले जैश-एमोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठन भी सिर उठा सकते हैं।

चीन ने तो तालिबान सरकार को मान्यता दे दी है, क्या आने वाले समय में चीन का भी दखल बढ़ेगा?

तालिबान 1.0 की तुलना में तालिबान 2.0 खुद को दुनिया के सामने ज्यादा प्रजातांत्रिक साबित करने की कोशिश कर रहा है। तालिबान 1.0 के दौरान अफगानिस्तान दुनिया से अलग-थलग था। मात्र 3 देशों ने ही तालिबानी शासन को मान्यता दी थी। इस बार तालिबान को मान्यता देने वालों में चीन सबसे पहला और बड़ा देश है।

चीन तालिबान के साथ दोस्ताना संबंध स्थापित करने के इरादे जाहिर कर चुका है। चीन को अफगानिस्तान के जरिए पश्चिमी एशिया और मिडिल ईस्ट के लिए नया दोस्त मिल जाएगा। इस इलाके में चीन एक बड़ी शक्ति बनकर उभर सकता है।

प्रोफेसर सुधीर सुथार कहते हैं कि चीन के लिए अफगानिस्तान निवेश की एक नई जमीन है। इसलिए चीन अफगानिस्तान के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध जरूर बनाना चाहेगा। पाकिस्तान पहले से ही चीन के साथ है। फिलहाल जो स्थिति है, उसमें चीन के दोनों हाथों में लड्डू है।

वहीं, रहीस सिंह का कहना हैं कि आगे चलकर तालिबान खुद चीन के लिए भी खतरा बन सकता है। तालिबान आगे चलकर प्रयास कर सकता है कि उइगर मुसलमानों को चीन के खिलाफ भड़काया जाए। चीन, भारत और अमेरिका के साथ अपने संबंधों को देखते हुए फिलहाल तालिबान का साथ देना बेहतर समझता है।

पाकिस्तान को इस बदलाव से क्या फायदा हो सकता है?

प्रोफेसर सुथार कहते हैं कि यूरेशिया (यूरोप और एशिया) में अभी जिस तरह से रूस, चीन, अमेरिका, भारत और नाटो की उपस्थिति है, उसमें पाकिस्तान की भूमिका बहुत सीमित है। तालिबान के आने के बाद से ये स्थिति पूरी तरह बदलने के आसार हैं। अब इस पूरे इलाके में पाकिस्तान की भूमिका बढ़ेगी।

पाकिस्तान अब चीन के साथ-साथ अमेरिका के लिए भी स्ट्रैटजिक देश के रूप में काम करेगा, क्योंकि अफगानिस्तान से लगे हुए ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान जैसे उत्तरी देशों को रूस अपना बफर जोन मानता है। इस वजह से अमेरिका के लिए इन इलाकों में बढ़त बनाने की संभावना कम है। अमेरिका के लिए पाकिस्तान ही एकमात्र ऐसा इलाका है, जहां वो रणनीतिक बढ़त बनाने की कोशिश करेगा।

अमेरिका और चीन की पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति है। पाकिस्तान के प्रति रूस का रवैया भी न्यूट्रल रहा है। इस वजह से पाकिस्तान जो पिछले करीब 2 दशकों से इंटरनेशनल पॉलिटिक्स का हॉटस्पॉट नहीं था, वो अब केंद्र में आ जाएगा। रूस, अमेरिका और चीन को अफगानिस्तान और पाकिस्तान को लेकर विदेश नीति में बदलाव करना होगा।

अफगानिस्तान में महिलाओं और बच्चों के मानवाधिकारों का क्या होगा?

तालिबान अपने बर्बर फैसलों के लिए कुख्यात है। तालिबान 1.0 के दौरान महिलाओं पर बुर्के की सख्ती और काम करने की पाबंदी थी। अपराधियों को सरेआम बीच चौराहे पर सजा दी जाती थी। वही स्थिति दोबारा लौटने की आशंका है।

दीवारों पर बनी महिलाओं की पेटिंग पर सफेद रंग पोत दिया गया है, घरों की तलाशी ली जा रही है और उन्हें लूटा जा रहा है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि अफगानिस्तान में मानवाधिकारों का हनन बढ़ जाएगा। ऐसे लोग जिन्होंने अमेरिकी सेना की मदद की थी, वो अब तालिबान के निशाने पर होंगे।

अफगानिस्तान मामले में यूएन का क्या कहना है?

अफगानिस्तान में मौजूदा हालात को लेकर 16 अगस्त को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने आपात बैठक की थी। बैठक में यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा कि दुनिया को वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने की जरूरत है। गुटेरस ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकजुट होकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अफगानिस्तान का इस्तेमाल आतंकी संगठनों के लिए एक सुरक्षित ठिकाने के रूप में न हो।

एंटोनियो गुटेरेस ने तालिबान से कहा है कि वह संयम बरतते हुए लोगों की जिंदगी की रक्षा करे और मानवीय जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान दे।

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के एक दिन बाद ही संयुक्त राष्ट्र ने अफगानिस्तान में मिलिट्री कॉनफ्लिक्ट में बच्चों की मौत पर एक रिपोर्ट भी जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2019 से दिसंबर 2020 तक सशस्त्र संघर्ष की वजह से अफगानिस्तान में 1635 बच्चे मारे गए हैं और 4,135 बच्चे शारीरिक तौर पर विकलांग हो गए हैं। 2021 के शुरुआती 6 महीनों में ये आंकड़ा सबसे ज्यादा है। इस दौरान मारे जाने वाले या घायल होने वाले हर 3 में से एक 1 बच्चा है। इस दौरान बच्चों के अधिकारों के हनन के 6,470 मामले दर्ज किए गए हैं, इनमें से आधे मामलों के लिए सीधे तौर पर तालीबान जिम्मेदार है।

भारत को आगे क्या करना होगा?

प्रोफेसर सुथार कहते हैं कि इस पूरी स्थिति में भारत के पास बहुत ज्यादा विकल्प नहीं है। अगर भारत तालिबान के साथ संबंध बनाता भी है तब भी ऐसा नहीं है कि तालिबान भारत के प्रति बहुत ज्यादा वफादार हो जाएगा। इसकी सीधी-सीधी वजह तालिबान में पाकिस्तान और चीन का दखल है। तालिबान के पहले अफगानिस्तान में भारत की अहम भूमिका थी और चीन पाकिस्तान की भूमिका नहीं थी, लेकिन अब मामला एकदम उल्टा हो गया है। भारत ने पिछले कुछ सालों से जिस तरह अमेरिका से नजदीकी बढ़ाई है और रूस से दूरी बनाई है उसका भी सीधा असर भारत पर होना है। भारत के लिए खतरा है कि वो फिर से 90 के दशक वाली स्थिति में पहुंच सकता है। वो कहते हैं कि भारत के लिए फिलहाल वेट एंड वॉच ही बेहतर रणनीति होगी।

रहीस सिंह कहते हैं कि भारत को प्रत्यक्ष तौर पर तालिबान से कोई खतरा नहीं है। भारत के लिए फिलहाल बड़ा खतरा चीन है। चीन किस तरह से तालिबान के साथ संबंध बनाता है, भारत के लिए ये ज्यादा जरूरी है। भारत के लिए एक और खतरा पीओके का इलाका है। 370 हटने के बाद जिस तरह भारत ने कश्मीर को कंट्रोल कर रखा है वो भारत के लिए अच्छी बात है, लेकिन पीओके के इलाके में पाकिस्तान और चीन को देखते हुए भारत को अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत है।

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