दिनदहाड़े गोलीकांड और अपनी ही कोर्ट में 3-3 मौत के मुकदमें में क्या खुद ‘जज साहब’ होंगे चश्मदीद गवाह?
घटनास्थल से चंद कदम दूर मौजूद रहे और अपने कानों से गोलियां चलने की आवाजें सुनने वाले सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया (Supreme Court of India) के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ एपी सिंह के मुताबिक मौके पर कोर्ट में मौजूद स्पेशल जज साहब को चश्मदीद गवाह तो बनना चाहिए.
हिंदुस्तान की राजधानी दिल्ली की रोहिणी जिला अदालत में शुक्रवार को दिनदहाड़े हुए गोलीकांड ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. सवाल राजधानी सहित देश की बाकी तमाम अदालतों की सुरक्षा पर. सवाल दिल्ली राज्य पुलिस के खुफिया तंत्र पर. सवाल खाकी पर भारी पड़ते खूंखार अपराधियों की दिन-ब-दिन बढ़ती हैसियत या कहिए उनकी ताकत का. रोहिणी जिला कोर्ट में घुसे बेखौफ दो कुख्यात बदमाशों ने पहले तो भरी कोर्ट में अपने दुश्मन गैंगस्टर जितेंद्र मान ‘गोगी’ को गोलियों से भून डाला. उसके बाद कोर्ट के भीतर मौके पर ही घेर लिए गए दोनों हमलावरों को दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के शूटर्स ने गोलियों से भूनकर निपटा दिया.
यहां तक तो दुनिया ने जो देखा-सुना वही सच है. इस तमाम शोरगुल के बीच मगर इससे भी बड़ा और चौंकाने वाला जो तथ्य कहिए या फिर सच, जो छिपा हुआ ही रह गया है. ये सच है अदालत में किसी अपराधी से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहे जज साहब, क्या अब अपनी अदालत में दिनदहाड़े बिछा दी गई तीन-तीन लाशों के मामले की पड़ताल और मुकदमे में चश्मदीद गवाह बनेंगे? वजह, शुक्रवार को दिल्ली की रोहिणी जिला अदालत की जिस स्पेशल कोर्ट नंबर 207 में हुए खूनी खेल के दौरान तीन-तीन लाशें बिछा दिए जाने का तांडव हुआ. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक उस वक्त स्पेशल जज गगनदीप सिंह खुद ही कोर्ट रूम में गैंगस्टर और छह लाख के इनामी बदमाश जितेंद्र मान उर्फ गोगी के मुकदमे की सुनवाई कर रहे थे.
कोर्ट में वो गोलीकांड जिसने छोड़े तमाम सवाल
चाहे जैसे भी सही मगर वकील के भेष में कोर्ट के भीतर पहुंचे विरोधी गुट के शार्प शूटर्स ने दुश्मन को जज के सामने गोलियों से भूनकर हिसाब बराबर कर लिया. खबरों के मुताबिक कत्ल-ए-आम चूंकि जज के सामने भरी अदालत में हुआ था. लिहाजा ऐसे में भला पुलिस (दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के शार्प शूटर्स) वाले भी हमलावरों को जिंदा कैसे निकल जाने देते? लिहाजा दोनों हमलावरों को मौके पर ही पुलिस ने गोलियों से भूनकर गोली का जवाब गोली और खून का जवाब खून करके दे दिया ताकि आइंदा कोई और बदमाश देश की किसी अदालत में इस तरह की दुस्साहसिक घटना को अंजाम देने की हिमाकत करने से पहले सौ बार सोचे. घटना क्यों हुई, कैसे हुई? घटना को रोका जा सकता था या नहीं रोका जा सकता था? इस गोलीकांड के लिए जिम्मेदारों को तलाशने का काम आइंदा होने वाली तफ्तीश में होता रहेगा. शुक्रवार को हिंदुस्तान की राजधानी की रोहिणी जिला अदालत में घटित इस खूनी घटना ने मगर, एक महत्वपूर्ण सवाल जरूर अपने पीछे छोड़ दिया है.
जानिए मुकदमें में कौन-कौन बन सकता है गवाह
सवाल है कि चूंकि घटना कोर्ट के अंदर स्पेशल जज की मौजूदगी में घटी है. कोर्ट रूम के अंदर हुए कत्ल-ए-आम की आगे की जांच भी जाहिर सी बात है कि होगी ही. थाने में पुलिस यही मुकदमा लिखेगी, जो घटनाक्रम शुक्रवार को जमाने ने देखा-सुना. ऐसे में जो लोग घटना के वक्त कोर्ट में या फिर कोर्ट के बाहर मौजूद थे, उन सबको पड़ताली एजेंसी यानी दिल्ली पुलिस चश्मदीद गवाह भी बनाएगी ही. इनमें सबसे मजबूत गवाहियां होंगी दिल्ली पुलिस के उन शार्प शूटर्स की, जिन्होंने मौके पर ही दोनों हमलावरों को ढेर कर दिया. उसके बाद उन सब गवाहों की गवाहियां महत्वपूर्ण होंगी और मुकदमे को मुकाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका अदा करेंगी, जैसे कोर्ट का स्टाफ या फिर कोर्ट में मौजूद रहे लोग. वो चाहे वकील हों या फिर किसी अन्य मामले में अदालतों में मौजूद मुलजिम अथवा मुवक्किल.
ऐसे में यहां सबसे बड़ा मुद्दा ये उभरकर आ रहा है कि जब और जिन स्पेशल जज की कोर्ट के भीतर तीन-तीन लाशें बिछीं. दिन-दहाड़े अंधाधुंध गोलियां चलीं. वो स्पेशल जज खुद भी मौके पर घटना के चश्मदीद रहे. जैसा शुक्रवार को पूरे दिन खबरों में छाया रहा. अगर ऐसा है तो क्या मुकदमे के ट्रायल के दौरान दिल्ली पुलिस या फिर कोई भी जांच एजेंसी, संबंधित अदालत के स्पेशल जज को भी बतौर और मजबूत गवाह (चश्मदीद) की लिस्ट में शामिल करेगी? कानूनी विशेषज्ञों और दिल्ली पुलिस के ही एक पूर्व और मौजूदा अफसर का तो कमोबेश एक सा ही कथन इसे लेकर है, “अगर जज साहब की कोर्ट में उन्हीं के सामने जब घटना घटित हुई तो संबंधित जज, आखिर खुद को चश्मदीद होने से इनकार कैसे कर सकते हैं?”
पूर्व पुलिस अधिकारी क्या कहते हैं?
“उनकी (चश्मदीद स्पेशल जज जिनकी कोर्ट में गोलीकांड को अंजाम दिया गया) गवाही से तो केस के कहीं और भी ज्यादा मजबूती से न्याय के अंतिम पड़ाव तक पहुंचने की प्रबल संभावनाएं ही बनेंगी.” दिल्ली पुलिस के संयुक्त आयुक्त पद से रिटायर होने वाले एक पूर्व आईपीएस अधिकारी के मुताबिक, “जो कुछ मैने रोहिणी कोर्ट गोलीकांड में टीवी पर खबरों में दिन भर देखा-पढ़ा सुना है और अगर कोर्ट रूम में डायस पर जज साहब मौजूद थे, तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि जांच एजेंसी उन्हें चश्मदीद गवाह न बनाए. जहां तक मुझे याद आ रहा है, मेरे ख्याल से तो ये गोलीकांड वो भी जज के सामने उन्हीं की अदालत में हुआ, देश का शायद ऐसा पहला मामला होना चाहिए जिसमें अपनी अदालत में तीन लोगों की मौत के मामले में खुद जज साहब ही चश्मदीद बनेंगे!”
इस संभावना को भी नजरंदाज नहीं करना चाहिए
दूसरी ओर घटनास्थल से चंद कदम दूर मौजूद रहे और अपने कानों से गोलियां चलने की आवाजें सुनने वाले सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ एपी सिंह के मुताबिक मौके पर कोर्ट में मौजूद स्पेशल जज साहब को चश्मदीद गवाह तो बनना चाहिए. मगर ये तभी संभव होगा जब जज साहब जांच एजेंसी के सामने इसकी तस्दीक करेंगे कि उन्होंने आंखों से अपनी कोर्ट में तीन तीन मौतें होती देखी हैं. हां इस आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगर जज साहब ने कह दिया कि गोलियां चलते ही वो डायस ( या अपनी कुर्सी) से उतर नीचे की ओर छिप गए थे. तो ऐसे में इस जघन्य गोली और हत्याकांड में संबंधित जज को चश्मदीद बना पाना जांच एजेंसी के लिए टेढ़ा काम हो जाएगा.