दिल्ली पुलिस का इतिहास ईमानदारी से भरा पड़ा है ..! वर्तमान में दिल्ली पुलिस के किसी न किसी थाने में पुलिसकर्मी रिश्वत लेते हुए पकड़े जा रहे है
Police Files : ईमानदारी की कसौटी पर खरा उतरने पर मिलती थी कोतवाल को पदोन्नति, लोग देते थे मिसाल
दिल्ली पुलिस का इतिहास ईमानदारी से भरा पड़ा है। मुगलों व अंग्रेजों के समय में पुलिस की ईनामदारी की मिसालें दी जातीं थीं। ईमानदारी की कसौटी पर खरे उतरने वाले कोतवालों को ही पदोन्नति दी जाती थी।
दिल्ली का पहला कोतवाल..ईमानदारी की मिसाल
दिल्ली के पहले कोतवाल मलिक उल उमरा फखरूद्दीन थे। वह सन 1237 ईसवीं में 40 वर्ष की उम्र में वह कोतवाल बने। कोतवाल के साथ उन्हें नायब ए गिब्त(रीजेंट की गैरहाजिरी में) भी नियुक्त किया गया था। अपनी ईमानदारी के कारण ही वह तीन सुल्तानों के राज-काल में लंबे समय तक इस पद पर रहे। एक बार तुर्की के कुछ अमीर उमराओं की संपत्ति सुल्तान बलवन के आदेश से जब्त कर ली गई। इन लोगों ने सुल्तान के आदेश को बदलने के लिए कोतवाल फखरुद्दीन को रिश्वत की पेशकश की। तब कोतवाल ने कहा कि यदि में रिश्वत ले लूंगा तो मेरी बात का कोई वजन नहीं रह जाएगा। कोतवाल का पुलिस मुख्यालय उन दिनों किला राय पिथौरा यानी आज के महरौली में था।ईमानदारी से प्रभावित होकर सत्ता की चाबी सौंप दी
इतिहास में इसके बाद कोतवाल मलिक अलाउल मल्क का नाम दर्ज है। मलिक अलाउज को सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 1297 में तैनात किया था। सुल्तान खिलजी ने एक बार मलिक के बारे में कहा था कि इनको कोतवाल नियुक्त कर रहा हूं जबकि वह हैं वजीर(प्रधानमंत्री) पद के योग्य। कहा जाता है कि सुल्तान खिलजी ने जंग के लिए जाते समय कोतवाल मलिक को उनकी ईमानदारी व वफादारी के चलते शहर की चाबी सौंप गए थे। सुल्तान ने कोतवाल से कहा था कि जंग में जीतने वाले विजेता को वह यह चाबी सौंप दे और इसी ईमानदारी से काम करें। मुगल बादशाह शाहजहां ने 1648 में दिल्ली को अपनी राजधानी बनाने के साथ ही गजनफर खान को नए शहर शाहजहांनाबाद का पहला कोतवाल बनाया था। गजनफर खान को बाद में कोतवाल के साथ ही मीर-ए-आतिश (चीफ ऑफ ऑटिलरी) भी बना दिया गया था।पंडित नेहरू के दादा गंगाधर थे आखिरी कोतवाल
1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और उसी के साथ मुगलकालीन कानून व्यवस्था खत्म हो गई। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के काल में पंडित जवाहर लाल नेहरू के दादा और पंडित मोती लाल नेहरू के पिता पंडित गंगाधर नेहरू दिल्ली के कोतवाल थे। 1857 की क्रांति के बाद जब अंग्रेजों ने कत्लेआम शुरू कर दिया तो गंगाधर अपनी पत्नी जियो देवी और चार संतानों के साथ आगरा चले गए। फरवरी 1861 में आगरा में ही उनकी मृत्यु हो गई।अंग्रेजों ने पुलिस को संगठित रूप दिया
1857 में अंग्रेजों ने पुलिस को संगठित रूप दिया। उस समय दिल्ली पंजाब का हिस्सा हुआ करती थी। 1912 में राजधानी बनने के बाद तक भी दिल्ली में पुलिस व्यवस्था पंजाब पुलिस की देखरेख में चलती रही। उसी समय दिल्ली का पहला मुख्य आयुक्त नियुक्त किया गया। इसे पुलिस महानिरीक्षक यानि आईजी के अधिकार दिए गए थे। उनका मुख्यालय अंबाला में था।
दिल्ली के पहले कोतवाल मलिक उल उमरा फखरूद्दीन थे। वह सन 1237 ईसवीं में 40 वर्ष की उम्र में वह कोतवाल बने। कोतवाल के साथ उन्हें नायब ए गिब्त(रीजेंट की गैरहाजिरी में) भी नियुक्त किया गया था। अपनी ईमानदारी के कारण ही वह तीन सुल्तानों के राज-काल में लंबे समय तक इस पद पर रहे। एक बार तुर्की के कुछ अमीर उमराओं की संपत्ति सुल्तान बलवन के आदेश से जब्त कर ली गई। इन लोगों ने सुल्तान के आदेश को बदलने के लिए कोतवाल फखरुद्दीन को रिश्वत की पेशकश की। तब कोतवाल ने कहा कि यदि में रिश्वत ले लूंगा तो मेरी बात का कोई वजन नहीं रह जाएगा। कोतवाल का पुलिस मुख्यालय उन दिनों किला राय पिथौरा यानी आज के महरौली में था।ईमानदारी से प्रभावित होकर सत्ता की चाबी सौंप दी
इतिहास में इसके बाद कोतवाल मलिक अलाउल मल्क का नाम दर्ज है। मलिक अलाउज को सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 1297 में तैनात किया था। सुल्तान खिलजी ने एक बार मलिक के बारे में कहा था कि इनको कोतवाल नियुक्त कर रहा हूं जबकि वह हैं वजीर(प्रधानमंत्री) पद के योग्य। कहा जाता है कि सुल्तान खिलजी ने जंग के लिए जाते समय कोतवाल मलिक को उनकी ईमानदारी व वफादारी के चलते शहर की चाबी सौंप गए थे। सुल्तान ने कोतवाल से कहा था कि जंग में जीतने वाले विजेता को वह यह चाबी सौंप दे और इसी ईमानदारी से काम करें। मुगल बादशाह शाहजहां ने 1648 में दिल्ली को अपनी राजधानी बनाने के साथ ही गजनफर खान को नए शहर शाहजहांनाबाद का पहला कोतवाल बनाया था। गजनफर खान को बाद में कोतवाल के साथ ही मीर-ए-आतिश (चीफ ऑफ ऑटिलरी) भी बना दिया गया था।पंडित नेहरू के दादा गंगाधर थे आखिरी कोतवाल
1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और उसी के साथ मुगलकालीन कानून व्यवस्था खत्म हो गई। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के काल में पंडित जवाहर लाल नेहरू के दादा और पंडित मोती लाल नेहरू के पिता पंडित गंगाधर नेहरू दिल्ली के कोतवाल थे। 1857 की क्रांति के बाद जब अंग्रेजों ने कत्लेआम शुरू कर दिया तो गंगाधर अपनी पत्नी जियो देवी और चार संतानों के साथ आगरा चले गए। फरवरी 1861 में आगरा में ही उनकी मृत्यु हो गई।अंग्रेजों ने पुलिस को संगठित रूप दिया
1857 में अंग्रेजों ने पुलिस को संगठित रूप दिया। उस समय दिल्ली पंजाब का हिस्सा हुआ करती थी। 1912 में राजधानी बनने के बाद तक भी दिल्ली में पुलिस व्यवस्था पंजाब पुलिस की देखरेख में चलती रही। उसी समय दिल्ली का पहला मुख्य आयुक्त नियुक्त किया गया। इसे पुलिस महानिरीक्षक यानि आईजी के अधिकार दिए गए थे। उनका मुख्यालय अंबाला में था।
पहले वायरलैस सैट से गांधी की शव यात्रा का प्रसारण किया गया
दिल्ली पुलिस में वायरलैस सेवा वर्ष 1944 में शुरू हो गई थी। ये वायरलैस सैट सबसे पहले इसी वर्ष कोतवाली थाने में रखा गया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अंतिम शव यात्रा का ऑल इंडिया रेडियो से सीधा प्रसारण इसी वायरलैट सैट के जरिए किया गया। ये वायरलैस अभी भी रखा हुआ है।