ये है सरकारी ढर्रा:चार लाइन की चिट्ठी लिखाने में लगे महीनों, केस की मंजूरी में 3 साल, तारीखें निकलती गईं, प्रशासन हारता गया हजार करोड़ की जमीन
कनाड़िया रोड पर पटेल बंधुओं के 15 हेक्टेयर पर अवैध निर्माण तो टूट गए, लेकिन एक हजार करोड़ से ज्यादा की इस जमीन पर कब्जा अभी दूर की कौड़ी है। जिला से सुप्रीम कोर्ट तक शासन हार चुका है। क्योंकि कभी अफसरों ने समय सीमा में अपील पेश नहीं की। हद यह है कि हाईकोर्ट में पहली अपील के लिए तीन साल पत्राचार चला।
दूसरी अपील में फिर एक साल पत्राचार हुआ, जबकि अपील की मंजूरी के लिए शासन को केवल 4 लाइन का पत्र भेजना था। हालत यह है कि अपील टाइप होने में तीन महीने लग गए। लिमिटेशन एक्ट 1905 का है, इसमें अपील की समय सीमा है। अफसर मानते हैं कि देरी के लिए भले जिम्मेदारों पर कार्रवाई की जाए, मगर समय सीमा से छूट मिलना चाहिए।
अफसरों की लेटलतीफी का जिंदा दस्तावेज, कभी वकील से इसलिए नहीं मिले क्योंकि हाफ डे था
- 1976-77 में सीलिंग एक्ट के बाद बेली नायता (पटेल) की जमीन चिह्नित हुई। 1981 में इसे सीलिंग एक्ट में लेने की प्रक्रिया शुरू हुई।
- मार्च 1993 में 15.47 हेक्टेयर जमीन सीलिंग में घोषित की गई। कब्जा लेने धारा 10 (1) का नोटिस जारी हुआ (3 साल अधिकारी सोते रहे)
- जुलाई 1996 में कब्जा देने के आदेश हुए, लेकिन मैदान में किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई।
- पटेल ने संभागायुक्त को अपील की, 4 पुत्रों के नाम वसीयत हो गई है, इसलिए सीलिंग लागू नहीं। हालांकि उनकी यह अपील खारिज हुई।
- मार्च 1999 में कब्जा लिया। सितंबर 1999 में रिकॉर्ड में जमीन सरकारी सीलिंग में दर्ज की गई (अप्रैल 1997 में बेली नायता की मौत हो गई)
- 2002 में पटेल ने सिविल कोर्ट में सीलिंग एक्ट को चुनौती दी। कब्जे को गलत बताया क्योंकि जमीन मालिक की उससे दो साल पहले मौत हो गई थी।
- प्रशासन को अपील की खबर ही नहीं लगी। अगस्त 2007 में पटेल के पक्ष में एकतरफा डिक्री हो गई। अपील नबी बक्ष, सिकंदर, नूर मोहम्मद, बली मोहम्मद, बाबू , रुस्तम, खातून बी, बानो बी और शेरान बी ने की थी।
- 2008 पटेल के वारिसों ने प्रशासन के पास नामांतरण का आवेदन लगाकर रसीद अपने पास रख ली।
- तब प्रशासन को डिक्री का पता चला। अपील की मंजूरी के लिए शासन को कई चिट्ठी लिखी।
- 2011 में मंजूरी आई। जिला कोर्ट में अपील हुई। जो जनवरी 2016 में समयसीमा बाहर होने से खारिज।
- फरवरी 2016 में आदेश की कॉपी मिली। हाईकोर्ट में अपील के लिए फिर सरकार को चिट्ठी लिखी।
- छह माह अधिकारी व सरकारी वकीलों में पत्राचार, मुलाकात चली। कभी इसलिए नहीं मिल पाए क्योंकि शनिवार का हाफ डे आ गया।
- सरकारी वकील इस मामले में विधि विभाग की मंजूरी के बगैर अपील को राजी नहीं हुए।
- अक्टूबर 2016 में विधि विभाग को पत्र भेजा, जवाब फरवरी 2017 में आया कि कलेक्टर नहीं राजस्व विभाग पत्र भेजे।
- मई 2017 में मंजूर होकर फाइल राजस्व विभाग, फिर जून 2017 में कलेक्टोरेट आई।
- अपील टाइप होने में 3 माह लगे। 27 सितंबर 2017 को कोर्ट में पेश की। जो सितंबर 2018 में समयसीमा के बाद होने से खारिज हो गई
कैसी-कैसी दलीलें
हाईकोर्ट के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट जाना था, लेकिन फाइल फिर दो साल अटकी रही। जूनी इंदौर एसडीएम, तहसीलदार को जिम्मेदारी दी गई। 2019 में चुनाव में व्यस्तता फिर माफिया अभियान के कारण अपील नहीं होने की बात कही गई। फिर कोविड आ गया। 2020 के अंत में सुप्रीम कोर्ट में अपील हुई, हार गए। रिव्यू पिटीशन भी करीब दो माह पहले हारे।
एक बार फिर से पूरी फाइल का अध्ययन कर रहे हैं
एक बार फिर से पूरी फाइल का अध्ययन किया जा रहा है। विधिक सलाह भी ली जा रही है। इसके बाद फिर नए सिरे से कानूनी प्रक्रिया की जाएगी। किसके द्वारा लापरवाही हुई है यह भी रिकॉर्ड में देखा जा रहा है।
– मनीष सिंह, कलेक्टर