अखाड़ा परिषद और मठ से जुड़े संत सवालों से बच रहे थे, कभी फोन बंद कर देते तो कभी CBI जांच का हवाला देकर मिलने से मना कर देते थे

बाघंबरी मठ में महंत नरेंद्र गिरि की मौत पर संशय और सवाल अब तक मंडरा रहे हैं। मठ के हरेक व्यक्ति के पास महंत की मौत को लेकर अपनी एक कहानी है। महंत के सुसाइड के पीछे का सच क्या है? सुसाइड है भी या नहीं? महंत रहते हुए 16 सालों में 3 वसीयत, आखिर क्यों? बलबीर, आनंद और फिर बलबीर के नाम अंतिम वसीयत। एक गुरु और दो प्रिय शिष्यों के बीच यह पूरा मामला उलझा हुआ है। ऊहापोह के बीच बलबीर के नाम की घोषणा गद्दी के लिए हो गई है। उधर, आनंद जेल की सलाखों के पीछे हैं और CBI जांच जारी है।

हाल ही में भास्कर जर्नलिस्ट संध्या द्विवेदी ने प्रयागराज के बाघंबरी मठ जाकर पूरे मामले की पड़ताल की। वे तीन दिनों तक प्रयागराज में और 16 घंटे मठ में रहीं। उन्होंने अखाड़ा परिषद और मठ से जुड़े महंतों से बात की और घटना से जुड़े हर पहलू को समझने की कोशिश की। आइए पढ़ते हैं उनकी आंखों देखी रिपोर्ट…

मैं 25 सितंबर की सुबह प्रयागराज पहुंची। जेहन में महंत की मौत से जुड़े सवाल थे। रुकने के लिए होटल की खोज के साथ ही बाघंबरी मठ के संतों को फोन घुमाना शुरू किया। दो संतों ने मुलाकात का वक्त दिया। आनंद के मित्र और बलबीर के शिष्य भी बोलने को तैयार थे, लेकिन दोपहर होते-होते, कभी फोन स्विच ऑफ आने लगे तो कभी आउट ऑफ रीच। उठाते तो मिलने से कतराते। अब तक समझ में आ चुका था, संगम में जिस तरह से लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी को खोजना मुश्किल है, वैसा ही मुश्किल होगा, महंत की मौत के आसपास के किरदारों को खोजना।

इसके बाद अखाड़ा परिषद के पदाधिकारियों और दूसरे संतों को फोन लगाया। पूछा- गुरु जी क्या आज मुलाकात होगी? जवाब मिला, नहीं हम कुछ नहीं बोल सकते। जांच चल रही है। मुलाकात फिजूल होगी। मैंने कहा, पर आपने तो मुझे फोन पर समय दिया था। जवाब मिला-तब हालात कुछ और थे अब कुछ और। मुलाकात मुमकिन नहीं। मैंने आखिरी कोशिश की-ठीक है गुरु जी आप केस के बारे में बात मत कीजिएगा,पर आई हूं तो मुलाकात तो कीजिए। मिन्नतों के बाद गुरु जी तैयार हुए, लेकिन ठिकाना थोड़ा बदला था। तय हुआ हम आश्रम में नहीं बल्कि संगम में मिलेंगे। दोपहर, ठीक 3:30 बजे संगम पर। वहां पहुंचकर मैंने फोन घुमाया, कहा-गुरु जी मैं संगम पर हूं।

प्रयागराज स्थित बाघंबरी मठ का इतिहास 300 साल पुराना है। साल 2004 में नरेंद्र गिरि को इस मठ का महंत चुना गया था।
प्रयागराज स्थित बाघंबरी मठ का इतिहास 300 साल पुराना है। साल 2004 में नरेंद्र गिरि को इस मठ का महंत चुना गया था।

उन्होंने कहा- संगम में रहने दीजिए, आप आश्रम ही आ जाइए, लेकिन एक घंटे के भीतर। आश्रम का नाम और साथ में लैंडमार्क बताने के बाद फोन कट गया। इसके बाद मैंने एक ऑटो पकड़ा और एक घंटे में आश्रम पहुंच गई। वहां पहुंचने के बाद गुरुजी को फोन किया, मैंने पूछा- गुरु जी आप कहां हैं?आपने समय दिया था? जवाब मिला-मैं बाहर चला गया था। आप शाम 5:30 बजे मिलिए। दारागंज के आश्रम में। करीब 20 मिनट बाद मैं वहां पहुंच गई।

मैंने पहले अखाड़ा परिषद के संत से बातचीत शुरू की। गुरु जी मैं तो आपके भरोसे यहां आई थी। हां, मैंने जब तुम्हें वक्त दिया था, तब इतनी पाबंदियां नहीं थीं। CBI नहीं चाहती हम अंदरूनी जांच करें। वे बार-बार यह कह रहे थे कि हम कुछ बोल नहीं सकते, लेकिन मानों बहुत कुछ बोलना चाहते हों। मैं चुप थी, क्योंकि जिस तरह से वे बिना सिरा जोड़े एक के बाद दूसरी बात कह रहे थे…उससे साफ था कि उन्हें सुनना इस केस की गुम हुई कड़ी की खोज में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

वे बोल रहे थे- महंत जी और आनंद के बीच झगड़ा था। कुम्भ के दौरान महंत जी ने कुछ-कुछ मुझे बताया भी था। आनंद यहां आया था। मैंने कहा था माफी मांग लो, सब ठीक हो जाएगा। शायद आनंद जल्दबाजी में था। हां, लेकिन वह गुरु जी के साथ कुछ गलत नहीं कर सकता। मैंने पूछा, और बलबीर? वह बेहद शांत व्यक्तित्व का था, पर इधर उसके शिष्यों की संख्या बढ़ी है। गुरु जी ने अपने एक सहयोगी का फोन नंबर मुझे दिया, कहा-आगे इन्हीं के फोन पर बात हो तो ज्यादा ठीक। मैंने पूछा क्यों? जवाब में बस उनकी चुप्पी थी।

उनसे बात चल ही रही थी कि मेरे फोन की घंटी बजी, मठ से मेरे दूसरे सूत्र यानी संत का फोन था। मैंने कहा, गुरु जी बस पहुंच रही हूं। नहीं मैं अभी आश्रम पहुंचा नहीं हूं। आज छोड़ते हैं कल मिलते हैं। मैंने जवाब दिया-आप जब भी पहुंचेंगे मैं आ जाऊंगी। आज ही मुलाकात हो जाएगी तो ठीक रहेगा। उन्होंने कहा, नहीं देर हो जाएगी। उनकी आवाज से साफ था कि वे मुझे किसी तरह टालना चाहते हैं। खैर मैं भागकर बाघंबरी मठ में पहुंची। वहां एक मठ के कर्मचारी से भेंट होनी थी। फोन किया, नहीं मैडम अब बात नहीं हो सकती। मुलाकात नहीं कर सकते। अच्छा तो फोन पर बात तो कर सकते हैं। नहीं-नहीं। और फोन कट…।

मठ के कैंपस में सुरक्षा व्यवस्था सख्त दिख रही थी, CBI अधिकारी कभी इधर तो कभी उधर लगातार आ-जा रहे थे।
मठ के कैंपस में सुरक्षा व्यवस्था सख्त दिख रही थी, CBI अधिकारी कभी इधर तो कभी उधर लगातार आ-जा रहे थे।

आश्रम के बाहर पुलिस थी। मैं आंगन में खड़ी, फोन पर फोन घुमाती रही, लेकिन उस कर्मचारी ने फिर जवाब नहीं दिया। उधर, वहां मौजूद कर्मचारियों से महंत की मौत के बारे में जैसे ही कुछ पूछो…उनमें से ज्यादातर यह कहकर पल्ला झाड़ लेते कि वे उस दिन आश्रम में नहीं थे। कुछ कहते, हम तो उनके करीब नहीं जाते थे। उनके निजी सेवक थे, वही महंत जी का ख्याल रखते थे। आनंद गिरि या बलबीर के बारे में कुछ पूछने पर कहते थे कि हमारा उनसे कुछ लेना-देना नहीं है। यानी हर व्यक्ति महंत की मौत के मामले में किसी भी सवाल से बचकर निकलता दिखा।

पहले दिन कोई क्लू नहीं, कोई स्टोरी नहीं। झोला भर सवाल लाई थी अब उनका बोझ बढ़कर बोरा भर हो गया था। मीडिया की फौज सारा दिन मठ में। CBI मठ में बैरिकेड के इस पार और मीडिया उस पार। कभी अधिकारी, ऊपर जाते। कभी कोई साधु पूछताछ के लिए बुलाया जाता। कर्मचारियों से पूछताछ। CBI टीम कभी इस कमरे तो कभी उस कमरे। महंत जी के कमरे, गेस्ट हाउस, बाहर का कमरा…और उनसे जुड़े मठ के हर कोने से सैंपल बटोरती।

25 सितंबर को बस अखाड़ा परिषद के संत से और वसीयत लिखने वाले वकील से मुलाकात हुई। यकीन मानिए वहां मौजूद हर स्थानीय पत्रकार भी उतना ही क्लूलेस था जितना मैं। मठ के परिसर से लाइव जा रहा था, लेकिन किसी को कुछ नहीं पता चल रहा था कि आखिर महंत की मौत की जांच किस दिशा में जा रही है!

26 सितंबर। गुरु जी से मिलने की आस के साथ फिर मठ में पहुंची, लेकिन गुरु जी का फोन ही नहीं उठा। सुबह 11 बजे का टाइम देने के बाद तकरीबन 3 बजे बात हुई। इस दौरान साढ़े दस बजे से शुरू हुई CBI की जांच जारी थी। फिर वही, मठ के हर साधु को एक कमरे में बुलाया जाता। कुछ मिनट बातचीत फिर दूसरा, तीसरा, चौथा…बस यह सिलसिला चलता रहा। CBI के अधिकारियों की चुस्ती उनकी भागदौड़ में दिख रही थी।

मीडिया इस भागदौड़ को देखती और कयास लगाती। बलबीर से इस दौरान दो बार पूछताछ हुई। टीवी पत्रकारों के लिए यह ब्रेकिंग थी। टीवी पत्रकार कैमरे के सामने, चिल्लाते- ब्रेकिंग बलबीर पर CBI का कसता शिकंजा। उनसे CBI ने दो बार पूछताछ की।

CBI जांच के बीच मीडिया भी पूरी मुस्तैदी के साथ एक-एक हलचल को कवर कर रही थी। हालांकि अंदर क्या चल रहा है, यह किसी को पता नहीं चल पा रहा था।
CBI जांच के बीच मीडिया भी पूरी मुस्तैदी के साथ एक-एक हलचल को कवर कर रही थी। हालांकि अंदर क्या चल रहा है, यह किसी को पता नहीं चल पा रहा था।

इधर CBI का ड्रोन मठ के आसमान पर घन-घन कर मंडरा रहा था। मठ के कर्मचारी, संत कभी यहां तो कभी वहां। दौड़भाग। CBI ने महंत की मौत का सीन रिक्रिएट किया, लेकिन जांच एजेंसी की पड़ताल के बीच यह देखना थोड़ा हैरानी भरा था कि हमेशा पर्दादारी बरतने वाली CBI सब कुछ मीडिया के सामने कर रही थी। खैर, अगर CBI यूं जांच न करती तो पता कैसे चलता कि इस मामले में जांच एजेंसी अति सक्रिय रही है।

CBI की इस सघन जांच के बीच शाम के साढ़े छह बच चुके थे। मैंने फिर फोन घुमाया, गुरु जी क्या मुलाकात होगी? नहीं, अभी तो CBI है, बात मुमकिन नहीं। मुझे लगता है कि 8 बजे तक तो यह टीम रहेगी। अब मेरे पास, इंतजार के सिवाय कोई विकल्प भी तो नहीं था। मैं फिर महंत की मौत की जांच में लगी टीम की सतर्कता देखने लगी। CBI वैसे ही सतर्क। भागदौड़, जांच-पड़ताल जारी। फोरेंसिक टीम तकरीबन शाम 7:30 बजे रवाना हो चुकी थी, लेकिन CBI अब भी मुस्तैद थी।

एक बार फिर रात 8 बजे। क्या, अब गुरु जी हम मिल सकेंगे। नहीं आज मुमकिन नहीं। हम रात में बात करें? मेरे पास, गुरु जी के निर्देश को मानने के सिवाय कोई विकल्प भी तो नहीं था? रात के साढ़े दस बजे CBI टीम रवाना हुई।

27 सितंबर की सुबह गुरु जी का फोन आया। बात हुई। उन कागजों को लेकर, जो मठ के प्राचीन वसीयत से संबंधित थे, जिन्हें मठ के लोग महंत की मौत और वसीयत के रहस्य से परदा हटाने के लिए निकलवाने वाले थे। आज मठ के संत यानी गुरु जी कुछ खुश थे। वे कह रहे थे, कागज मिल जाएंगे। सब कुछ साफ हो जाएगा। मुलाकात और बात खुलकर हुई। मेरे हाथ एक ब्रेकिंग स्टोरी थी। वे कागज एक खुलासे की तरफ इशारा कर रहे थे।

CBI की जांच जारी है। पूछताछ के लिए साधु-संत बारी-बारी से बुलाए जा रहे हैं, लेकिन कोई कुछ कहने को तैयार नहीं है।
CBI की जांच जारी है। पूछताछ के लिए साधु-संत बारी-बारी से बुलाए जा रहे हैं, लेकिन कोई कुछ कहने को तैयार नहीं है।

28 सितंबर दोपहर तक सब कुछ वैसा ही था, लेकिन शाम होते-होते मुझसे बात करने वाले दोनों संतों के फोन बंद। 29 की सुबह बलबीर का नाम गद्दी के उत्तराधिकारी के लिए घोषित हो चुका था। फोन किया। उधर, से आवाज आई। फोन पर कुछ नहीं कहेंगे। मठ की प्रतिष्ठा दांव पर है। बलबीर का नाम घोषित न करते तो मठ की छवि को बहुत धक्का पहुंचता। वैसे भी बहुत फजीहत हो चुकी है। मैंने कहा, लेकिन उन कागजों का क्या हुआ? उनके हिसाब से अभी भी मैं वही कहूंगा जो सच है।

महंत नरेंद्र गिरि जी की वसीयत मठ की परंपरा के मुताबिक नहीं है, लेकिन कानूनी वसीयत को चैलेंज करने से मठ की छवि बिल्कुल धूमिल हो जाएगी। मैं सुन रही थी और शायद उन्हें अंदाजा था कि मैं उनकी मजबूरी में गुम हो चुकी उनकी दृढ़ता को भांप रही हूं। लिहाजा उन्होंने खुद का बचाव करते हुए कहा, इस बार मठ के महंत पर सुपर एडवाइजरी बोर्ड का अंकुश होगा। उसके चाल-चलन और रहन-सहन पर सुपर एडवाइजरी बोर्ड की निगाह होगी। वह बोर्ड से सलाह लिए बिना मठ की संपत्ति बेच नहीं सकेगा।

गुरु जी वह सब कुछ बोल रहे थे, जो महंत नरेंद्र गिरि ने किया। शायद वह कहना चाह रहे थे कि अगर महंत के ऊपर एडवाइजरी बोर्ड होता, तो इस तरह वसीयत बार-बार न बदलती। साफ है कि वसीयत में लिखे लोगों को दी गई मठ की संपत्ति पर उन्हें ऐतराज था। अब वे यह सब दोबारा नहीं दोहराना चाहते थे, इसलिए नए महंत पर सुपर एडवाइजरी बोर्ड का अंकुश लगाया था, लेकिन क्या एडवाइजरी बोर्ड मठ की परंपरा के खिलाफ होने वाले किसी भी फैसले पर वाकई अंकुश लगा पाएगा? वसीयत के मुताबिक घोषित गद्दी का दावेदार क्या कानूनी रूप से बोर्ड की सलाह मानने के लिए बाध्य होगा?

3 दिन प्रयागराज में और 16 घंटे मठ में गुजारने के बाद अभी भी इन सवालों को लेकर सस्पेंस बरकरार है। महंत के मौत की मिस्ट्री की हिस्ट्री तलाशते यह भी पता चला कि एक समय आनंद और बलबीर की दोस्ती मठ में मशहूर थी, लेकिन धीरे-धीरे दोनों दूर होते गए। वसीयत बदलते ही आनंद के शिष्यों ने भी पाला बदल लिया। आजकल वे सभी बलबीर की शरण में हैं।

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