नेतापुत्रों की नजर तीन विधानसभा सीटों पर

प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए काफी समय है, लेकिन कमलदल में टिकट के लिए अभी से चौसर बिछना शुरू हो गई है।

प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए काफी समय है, लेकिन कमलदल में टिकट के लिए अभी से चौसर बिछना शुरू हो गई है। नेतापुत्र शहर की दक्षिण, पूर्व व भितरवार सीट पर नजर गढ़ाए हैं। दक्षिण पर पूर्व राज्यसभा सदस्य के पुत्र की नजर है तो पूर्व पर राजपरिवार से जुड़े पूर्व मंत्री का बेटा नजर गढ़ाए है। भितरवार सीट पर होम मिनिस्टर के चिरंजीव ने सक्रियता बढ़ा दी है। इसी बीच युवराज के राजनीति की तरफ पहला कदम बढ़ाने से नेतापुत्रों में खलबली मची हुई है। नेतापुत्रों की सक्रियता से अभी से टिकट के समीकरण बनना शुरू हो गए हैं। इन विधानसभा क्षेत्रों में पहले से सक्रिय कमलदल के नेता भी चिंतित हैं। हालांकि उन्हें भरोसा है कि कमलदल में वंशवाद की बजाय कार्यकर्ता की राय को अहमियत दी जाती है। इसी भरोसे पर यह नेता अपना मन समझा रहे हैं।

तोड़फोड़ की आशंका से कांग्रेस में खलबली

एक बार फिर दतिया के पंडितजी के संपर्क में कांग्रेस के एक प्रमुख नेता के होने से कांग्रेस खेमे में खलबली मची हुई है, क्योंकि दस के लगभग कांग्रेस विधायक अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए कमलदल के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। इन्हीं पंडितजी की सक्रियता से कांग्रेस के हाथ से सत्ता पहले ही जा चुकी है। हालांकि तोड़फोड़ से कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ बचा नहीं है और कमलदल को कुछ हासिल होने वाला नहीं है। इसलिए कमलदल का शीर्ष नेतृत्व दुविधा में है। कमलदल में चर्चा है कि इन बाहरी नेताओं के लिए दरवाजा खोलने से हमें कोई लाभ होने वाला नहीं है। संगठन में खींचतान और बढ़ जाएगी। भले ही फिलहाल कुछ न हो। इनसे मिल रहे कांग्रेसियों पर प्रदेश्ा नेतृत्व की नजर है। अब कांग्रेस खेमे में दतिया वाले पंडितजी के नाम की दहशत है।

बजरंगी दादा ने हिंदुत्व का परचम उठाने के संकेत दिए

बजरंगी दादा का अंचल की राजनीति का मूल आधार जगजाहिर है। यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। संगठन की आघोषित पाबंदियों से दादा के शब्दवाण तरकश में जंग खाने लगे हैं। इसलिए दादा ने कार्तिक माह की द्वादशी को महाआरती का आयोजन कर अपने पुराने अवतार में लौटने के संकेत दिए हैं। देशभर में दादा की पहचान श्रीराम मंदिर व बजरंगदल से है। इसलिए इस महाआरती के राजनीति से जुड़े अपने मायने निकल रहे हैं। हालांकि दादा ने संकेतिक भाषा में स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि यह आयोजन पूर्ण रूप से उनकी आस्था से जुड़ा है। इसके अलावा और कुछ नहीं है। चूंकि दादा राजनीति में हैं, इसलिए हर आयोजन को राजनीति की दृष्टि से देखना भी व्यवहारिक है। भले ही उनकी मंशा कुछ भी हो। महाआरती राजनीति गलियारे में चर्चा का विषय बन गई है।

ललितपुर वाले नेताजी को क्या हो गया?

ललितपुर कालोनी वाले नेताजी की महत्वकांक्षा पूरी हो गई। फिलहाल वे अपने नए दल में अपनी जड़ें मजबूत करने के साथ- साथ क्षेत्र में सक्रियता दिखा रहे हैं। नेताजी ने महाराज के साथ एक मंच साझा किया। उम्मीद थी कि नेताजी महाराज के सामने उनके साथ प्रशासन स्तर पर हो रहे सौतले व्यवहार पर खरी-खरी सुनाने से नहीं चूकेंगे, लेकिन हुआ इसके विपरीत। नेताजी ने महल के कसीदे पढ़ना शुरू कर दिए। अब नेताजी के भाषण का कांग्रेसी अलग-अलग अर्थ निकाल रहे हैं। कुछ का कहना है कि नेताजी ने सार्वजनिक मंच का सम्मान किया है। उनके भाषण का अलग अर्थ निकालना बेमानी है। राजनीति में सकारात्मक सोच के साथ नकारात्मक सोच वाले लोग भी हैं। इसलिए विचार भी अलग हो सकते हैं। कुछ का कहना है कि राजनीतिक भविष्य को देखते हुए नेताजी महल से सीधा पंगा लेने से बच रहे हैं।

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