पेगासस की जांच भी आसान नहीं:पेगासस मामले में इजराइल ने फंसाया पेंच, कई देशों में जांच लटकी; मेक्सिको में 4 साल बाद भी कोई कार्रवाई नहीं

भारत में भी अब पेगासस जासूसी मामले की जांच हो रही है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया है। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आरवी रवींद्रन इसके अध्यक्ष होंगे। इससे पहले मैक्सिको, फ्रांस और इजराइल में पेगासस और दूसरे जासूसी सॉफ्टवेयर से जु़ड़ी जांच चल रही हैं, लेकिन वहां अब तक इन जांचों का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है। आइए एक-एक करके जानते हैं कि पेगासस को लेकर अब तक किन देशों में जांच कहां तक पहुंची है और वहां कोई कार्रवाई हुई है या नहीं…

मेक्सिको में ना किसी की गिरफ्तारी ना किसी पर कार्रवाई

सबसे पहले 2016 में मेक्सिको में पेगासस की जांच शुरू हुई थी। वहां की सरकार ने स्वीकार किया है कि इस पर करीब 16 करोड़ डॉलर की राशि अब तक खर्च हो चुकी है, लेकिन यह साफ नहीं हो सका है कि देश में किस पैमाने पर जासूसी हुई और कुल कितना पैसा इस पर खर्च हुआ। जांच के 4 साल बाद भी ना तो कोई गिरफ्तारी हुई है और ना ही किसी को पद गंवाना पड़ा है। इसको लेकर मेक्सिको को जांच में इजराइल की तरफ से कोई सहयोग नहीं मिलना भी एक वजह बताई जा रही है।

पेगासस और दूसरे जासूसी सॉफ्टवेयर के खिलाफ इजराइल में अभियान चला रहे मानवाधिकार अधिवक्ता ईते मैक कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि इजराइल किसी भी जांच में सहयोग नहीं करेगा। ना ही भारत में शुरू हुई जांच में और ना ही किसी और देश में चल रही जांच में। इजराइल ने अपने इतिहास में सिर्फ एक बार 1980 के दशक में अमेरिका के साथ ईरान-कोंट्रा स्कैंडल की जांच में सहयोग किया है। इसके अलावा वह कभी भी किसी विदेशी जांच में शामिल नहीं हुआ है।’

एक्सपर्ट मानते हैं कि मेक्सिको की जांच दिशाहीन हो गई है और बीते 4 सालों में बहुत कुछ हासिल नहीं कर सकी। डिजिटल अधिकार NGO R3D के निदेशक लुइस फर्नांडो गार्सिया ने मैक्सिको में पेगासस जासूसी का मुद्दा उठाया। उनके काम की वजह से ही मेक्सिको में पेगासस की जांच शुरू हुई थी। गार्सिया कहते हैं कि चार साल की जांच का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकल सका है।

जासूसी सॉफ्टवेयर की जांच बेहद जटिल है। इसमें जांचकर्ताओं को ये साबित करना होगा कि सरकार की एजेंसी ने सॉफ्टवेयर खरीदा और उसका आम नागरिकों के खिलाफ गैर जरूरी इस्तेमाल किया। इसमें कई चुनौतियां हैं। हालांकि मेक्सिको के अभियोजकों को उम्मीद है कि वो जल्द ही मामले को अदालत तक ले जा सकेंगे।

फ्रांस में जांच हो रही है, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई

 

फ्रांस में इमेनुएल मैक्रों सरकार के 5 मंत्रियों के अलावा कई पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता भी पेगासस सॉफ्टवेयर के निशाने पर थे। फ्रांस में इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म करने वाली संस्था मीडियापार के फाउंडर एडवी प्लेनेल और उनकी सहयोगी पत्रकार लीनाग ब्रेडॉ के नाम भी पेगासस के निशाने पर थे। उनकी शिकायत पर फ्रांस में पेगासस जासूसी की आपराधिक जांच शुरू हुई है। मीडियापार ने ही भारत के साथ हुए रफाल विमान समझौते में कथित भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया है।

लीनाग ब्रेडॉ कहती हैं कि जांच तो शुरू हो गई है, लेकिन अभी हमें नहीं पता है कि एजेंसियां किस हद तक पहुंची हैं। फ्रांस में अभी इस जांच को लेकर कोई खबर नहीं है। ब्रेडॉ ने अपनी शिकायत में निजता का मुद्दा सबसे प्रमुखता से उठाया था। एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब ने उनके फोन में पेगासस होने की पुष्टि की थी।

इजराइल से फ्रांस ने समझौता कर लिया है

हाल ही में फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रों के एक शीर्ष सलाहकार ने इजराइली सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से पेगासस को लेकर गुप्त बातचीत की है। पेगासस जासूसी कांड ने इजराइल और फ्रांस के आपसी संबंधों को भी प्रभावित किया है। ये बातचीच इसी संकट को समाप्त के लिए हुई है। दरअसल फ्रांस के पांच मंत्रियों के फोन में पेगासस मिलने के बाद इजराइल और फ्रांस के बीच राजनयिक संकट पैदा हो गया था। रिपोर्टों के मुताबिक फ्रांस और इजराइल के बीच एक समझौता भी हुआ है। इसके तहत फ्रांस के मोबाइल नंबरों को इजराइल में निर्मित जासूसी सॉफ्टवेयर से टारगेट नहीं किया जाएगा।

ईते मैक कहते हैं कि फ्रांस के राष्ट्रपति निगरानी की समस्या के समाधान के बजाय इजराइल की सरकार से समझौता करने में लगे थे। फ्रांस ये चाहता था कि इजराइल ये गारंटी दे कि NSO सिस्टम फ्रांस के नंबरों के खिलाफ इस्तेमाल न हो पाए। इजराइल का इसी तरह का समझौता अमेरिकी सरकार के साथ भी है, लेकिन इसमें समस्या है। सबसे पहले तो फ्रांस के उन नागरिकों को टारगेट किया जा सकता है, जो किसी दूसरे देश का नंबर इस्तेमाल कर रहे हों। समस्या ये भी है कि इससे भेदभाव भी होता है। कुछ नागरिकों को तो इस सिस्टम से सुरक्षा मिलती है, जबकि कुछ देशों के नागरिक इसके दायरे में आते हैं।

इजराइल में जांच को लेकर दायर याचिकाएं रद्द हो गईं

फ्रांस के आरोपों के बाद इजराइल की सरकार ने कहा था कि वह पेगासस मामले की जांच करेगी, लेकिन जांच के बारे में भी बहुत कुछ सार्वजनिक नहीं है। ईते मैक ने पेगासस की जांच को लेकर दो याचिकाएं दायर की थीं, जो रद्द कर दी गई हैं। मैक बताते हैं, ‘पहली याचिका 2017 में मैक्सिको के नागरिकों के खिलाफ पेगासस के इस्तेमाल को लेकर दायर की और मैक्सिको के लिए पेगासस के एक्सपोर्ट लाइसेंस रद्द करने की मांग की थी। दूसरी याचिका 2018 में एमनेस्टी इंटरनेशनल के कार्यकर्ता के साथ मिलकर दायर की थी। इसमें एमनेस्टी के कर्मचारियों के खिलाफ पेगासस के इस्तेमाल पर रोक और एनएसओ का एक्सपोर्ट लाइसेंस रद्द करने की मांग की थी।

इजराइल की अदालतों ने ये दोनों ही याचिकाएं रद्द कर दीं। मैक कहते हैं कि इस तरह की जांच में कई साल लग जाते हैं। अभी तक मुझे इस बारे में अटॉर्नी जनरल से कोई जवाब नहीं मिला है। दक्षिण सूडान में गृहयुद्ध में हुए नरसंहार में इजराइली तकनीक के इस्तेमाल की आपराधिक जांच के लिए मैंने कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी है। ये प्रक्रिया 6 सालों से चल रही है और अभी तक इस दिशा में कुछ ठोस परिणाम नहीं निकला है।

इजराइल के हारेत्ज अखबार के खोजी पत्रकार ओेडेड यारोन कहते हैं कि फ्रांस के नेताओं के फोन में पेगासस सॉफ्टवेयर मिलने के बाद फ्रांस का दबाव था और उसी के तहत रक्षा मंत्री बेनी गैंट्ज ने बयान दिया कि इजराइल में इसकी जांच चल रही है। कई रिपोर्टों के मुताबिक इजराइल में इस समय पेगासस और अन्य खुफिया साइबर सिस्टम को लेकर जांच चल रही है, लेकिन ये यकीन करना मुश्किल है कि इन जांच से कुछ ठोस निकल पाएगा।

इजराइल सरकार सुरक्षा से जुड़े मुद्दे का हवाला देकर जानकारी साझा नहीं कर रही है

इजराइली की सुरक्षा कंपनी NSO ग्रुप पर वहां का रक्षा मंत्रालय कड़ी निगरानी रखता है और उसकी अनुमति के बाद ही पेगासस सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट किया जाता है। हालांकि पेगासस किन-किन देशों और एजेंसियों को दिया गया है, इसकी जानकारी हासिल करना आसान नहीं है।

ओडेड यारोन कहते हैं कि यहां कोई पारदर्शिता नहीं है। सरकार इस तरह के एक्सपोर्ट को जनता की नजरों से दूर रखने का हर संभव प्रयास करती है और इसके लिए अपनी हर शक्ति का इस्तेमाल करती है।

यारोन कहते हैं, “मेरे सहकर्मी अमितेय जीव ने हाल ही में एक लेख में दावा किया है कि ये कंपनियां बहुत पहले से इजराइल की कूटनीति का हिस्सा रही हैं। इजराइल में सुरक्षा और खुफिया उद्योग से जुड़ी कितनी कंपनियां हैं इसकी जानकारी भी सार्वजनिक नहीं है। इन कंपनियों की संख्या सैकड़ों में है। जबकि रक्षा मंत्रालय के एक्सपोर्ट लाइसेंस से जुड़े विभाग में 10 से भी कम लोग काम करते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या रक्षा विभाग इन कंपनियों के सभी सौदों की निगरानी कर सकता है?

इजराइल में जब भी पेगासस या ऐसे सॉफ्टवेयर के एक्सपोर्ट लाइसेंस के बारे में सवाल किया जाता है तो आमतौर पर रक्षा मंत्रालय अपने जवाब में कहता है -रक्षा मंत्रालय सुरक्षा से जुड़े कूटनीतिक और रणनीतिक कारणों से सुरक्षा एक्सपोर्ट नीति के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं देता है। NSO और दूसरी सुरक्षा कंपनियां भी सवालों के जवाब में इसी तरह की ही भाषा का इस्तेमाल करती हैं। अधिकारिक तौर पर ये पता नहीं चल पाता है कि पेगासस जैसे सॉफ्टवेयर किन-किन देशों को दिए गए हैं और किस-किस के खिलाफ इनका इस्तेमाल हुआ है।

यारोन कहते हैं कि इसराइल में कंपनियों के खिलाफ मुकदमे चले हैं, कंपनियों ने लाइसेंस भी गंवाए हैं, लेकिन ये कंपनियां कौन है और किस-किस पर एक्शन हुआ है इस बारे में जानकारी सार्वजनिक नहीं है।

भारत की जांच अहम साबित हो सकती है

इजराइल के भारत के साथ बहुत नजदीकी संबंध हैं, खासकर 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से। इजराइल ने भारत के पुलिसकर्मियों और सुरक्षा एजेंटों को ट्रेनिंग भी दी है। साथ ही दोनों देश खुफिया जानकारियां भी साझा करते हैं। भारत इजराइल की रक्षा तकनीक का बड़ा खरीददार भी है। वहां की रक्षा कंपनियां भारत में उत्पादन भी कर रही हैं।

योडेड यारोन कहते हैं, “इजराइल की तकनीक का भारत में सुरक्षा व्यवस्था में इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन बहुत संभव है कि इसमें से कुछ तकनीक का देश के भीतर भी इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे में NSO पर लगे आरोप हैरान नहीं करते हैं। अब उम्मीद है कि इन आरोपों की जांच से कुछ ठोस निकल पाएगा।”

वहीं ईते मैक कहते हैं कि पेगासस से जुड़े आरोपों की जांच का भारत के सुप्रीम कोर्ट का फैसला बहुत अहम है। हमें लगता है कि ये दूसरे देशों के लिए एक नजीर साबित होगा कि आम नागरिकों, विपक्ष के नेताओं और पत्रकारों के खिलाफ पेगासस के इस्तेमाल की कैसे जांच की जाए।

भारत सरकार ने अधिकारिक तौर पर ना ही पेगासस के इस्तेमाल को स्वीकार किया है और ना ही इसका खंडन किया है। अब तक भारत सरकार सुरक्षा हितों का हवाला देकर पेगासस से जुड़े सवालों से बचती रही थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होने वाली जांच में भारत सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी पड़ सकती है।

मैक कहते हैं, कि ये भारत में सरकार और स्वतंत्र संस्थानों के बीच विरोधाभास नजर आता है। सवाल ये भी है कि क्या सरकार, खुफिया एजेंसियां और गृह मंत्रालय जांच में सहयोग करेगा और किस हद तक जानकारियां मुहैया कराएगा या राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल का हवाला देकर जानकारियां छुपा ली जाएंगी।

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