हीरो साइकिल के ब्रांड बनने की कहानी…..बंटवारे में पाकिस्तान जा रहे एक मुस्लिम शख्स से लिया ब्रांड का नाम, चार भाइयों ने मिलकर ऐसे खड़ा किया दो पहियों का साम्राज्य

मैं छठवीं क्लास में गया था, जब मेरे पैरेंट्स ने मुझे पहली साइकिल गिफ्ट की। सीखने के दौरान घुटने फोड़े, हाथ रगड़े। जब साइकिल लेकर अकेले सड़क पर निकला तो लगा अब मैं बड़ा हो गया हूं।

मुझे अपनी पहली साइकिल का ब्रांड भले ही याद नहीं, लेकिन आजादी के पहले से शुरू हुआ देसी ब्रांड हीरो साइकिल बचपन के ऐसे लाखों पलों का हिस्सा रहा है। आज हम भारत के एक छोटे शहर से शुरू होकर दुनिया की सबसे बड़ी साइकिल कंपनी बनने वाले हीरो की कहानी पेश कर रहे हैं…

चार भाई, भारत-पाक बंटवारा और हीरो

ये सब शुरू हुआ था ब्रिजमोहन लाल मुंजाल और उनके तीन भाइयों, दयानंद, सत्यानंद और ओमप्रकाश के साथ। वो पंजाब के टोबाटेक सिंह जिले (अब पाकिस्तान) के कस्बे कमलिया के रहने वाले थे। बंटवारे से पहले ही वो अमृतसर आ गए और साइकिल के पार्ट्स का बिजनेस करने लगे। एक दिन ब्रिजमोहन ने अपने भाइयों के सामने साइकिल बनाने का प्रस्ताव रखा। कुछ सवाल करने के बाद भाई तैयार हो गए और लुधियाना में काम शुरू करने का फैसला किया।

यहां एक किस्सा बड़ा रोचक है। जब अमृतसर से मुंजाल बंधु अपना सामान बांधकर लुधियाना जाने की तैयारी कर रहे थे, तो एक मुस्लिम शख्स करीम दीन पाकिस्तान जा रहे थे। करीम दीन का साइकिल सैडल्स बनाने का धंधा था और उन्होंने अपना ब्रांड नेम खुद तैयार किया था। जब वो अपने दोस्त ओमप्रकाश मुंजाल से आखिरी बार मिलने पहुंचे, तो ओमप्रकाश ने करीम दीन का ब्रांड नेम इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी। करीम दीन ने हां कर दिया। आपने ठीक पहचाना। यही ब्रांड था- ‘हीरो’

कैसे तैयार हुई हीरो साइकिल

मुंजाल ब्रदर्स साइकिल के सभी पार्ट खुद तैयार करना चाहते थे। वो विदेशी पार्ट्स पर निर्भर नहीं रहना चाहते थे, क्योंकि उनके दाम ज्यादा थे और समय पर सप्लाई भी नहीं हो पाती थी। आगे हम आपको बता रहे हैं कि कैसे अलग-अलग देसी पार्ट से हीरो साइकिल तैयार हुई।

साइकिल की कमानीः मुंजाल ब्रदर्स ने पहला प्रयोग 1954 में साइकिल फोर्क (जिस हिस्से से साइकिल का पहिया जुड़ा होता है) बनाने का किया। कई बार फेल होने के बाद आखिरकार उन्होंने तैयार कर लिया।

साइकिल का हैंडलः मुंजाल ब्रदर्स ने साइकिल का हैंडल बनाने के लिए रामगढ़िया समुदाय के पास गए। ये पारंपरिक मिस्त्री होते थे। शुरुआत में गड़बड़ी होने के बाद फाइनल प्रोडक्ट बेहतरीन बन गया।

साइकिल का फ्रेमः मुंजाल ब्रदर्स भारत की जमीनी हकीकत को जानते थे। इसलिए वो ऐसा फ्रेम बनाना चाहते थे जो मजबूत हो। जिससे साइकिल में दो-तीन लोग बैठकर चल सकें। उन्होंने ऐसा फ्रेम तैयार कर लिया।

मडगार्ड और हैंडल बार्स भी देसी कारखानों में तैयार हुए। आखिरकार आगे से पीछे तक 100% हीरो मेड साइकिल तैयार हो गई। ब्रिजमोहन लोल मुंजाल ने इस खूबसूरत साइकिल में पैडल भरी और अपनी खुशी जाहिर करने परिवार की तरफ चल पड़े। 1956 में उन्होंने बैंक से 50 हजार का लोन लेकर पंजाब सरकार से साइकिल बनाने की फैक्ट्री का लाइसेंस हासिल कर लिया।

IPO लाने की योजना, ई-साइकिल पर फोकस

अब कंपनी की कमान ओम प्रकाश मुंजाल के बेटे पंकज मुंजाल के हाथों में है। वे कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। पंकज मुंजाल का कहना है कि हीरो साइकिल का IPO लाया जाएगा, लेकिन अभी इसकी समय सीमा तय नहीं की गई है। 2024 तक इसके IPO को लेकर फैसला लिया जा सकता है। हम हीरो साइकिल को पब्लिक कंपनी बनाने का प्लान कर रहे हैं।

अभी हीरो साइकिल के टर्नओवर का 50% भारत के बाहर से मिलता है। उनकी कंपनी ने पिछले कुछ सालों में हीरो इंटरनेशनल के माध्यम से यूरोप में अपनी उपस्थिति मजबूत की है। हीरो मोटर्स और यामाहा मोटर कंपनी ने मजबूत प्रोडक्ट पोर्टफोलियो के साथ एक ग्लोबल ई-साइकिल ड्राइव यूनिट कंपनी बनाने के लिए एक करार किया है।

इसके तहत ग्लोबल मार्केट के लिए ई-साइकिल ड्राइव मोटर्स के निर्माण के लिए भारत में एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को स्थापित किया जाएगा। नवंबर 2022 तक पहले मॉडल का प्रोडक्शन शुरू करने की उम्मीद है।

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