जानलेवा प्रदूषण ….सांस के नए मरीजों की संख्या 10% बढ़ी, महिला कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के फेफड़ों तक पहुंच रहा सीमेंट
- सांस के कुल रोगियों में करीब 50% पुराने मरीज, परेशान कर रहा बढ़ा प्रदूषण
- 2019 में भारत में करीब 17 लाख लोगों की मृत्यु एयर पॉल्यूशन की वजह से
आजकल ज्यादा आंसू आ रहे हैं, थूक का रंग काला हो गया है, गले में लगातार खराश रहने लगी है, सांस से सीटी की आवाज आ रही है। पॉल्यूशन के बढ़े हुए स्तर के कारण ऐसी समस्याएं बढ़ी हैं। लैंसेट पत्रिका में 2020 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 2019 में भारत में करीब 17 लाख लोगों की मृत्यु एयर पॉल्यूशन की वजह से हुई थी।
कैसे परेशान कर रहा है पॉल्यूशन?
प्रदूषण के कारण सांस की नलियों में मौजूद म्यूकोसा बुरी तरह से प्रभावित हुई है। इनमें सूजन आने से ही सामान्य लोगों में खांसी-जुकाम की परेशानियां बढ़ी हैं। नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल की रेस्पिरेटरी और क्रिटिकल केयर की सीनियर कंसल्टेंट डॉ. विनी कांट्रो का कहना है कि हवा में बढ़े पॉल्यूटेंट्स के कारण अस्थमा, सीओपीडी, क्रोनिक पल्मोनरी लंग डिजीज के मरीजों की परेशानियां आम दिनों से 50% अधिक बढ़ी हैं।
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल और पारस हॉस्पिटल में सांस से जुड़े नए मरीजों की संख्या में 10% की बढ़त देखी जा रही है। पारस हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजी के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ. अरुणेश कुमार स्वीकारते हैं कि कुछ मरीजों को पहले कभी भी चेस्ट से जुड़ी परेशानियां नहीं हुई थीं।
स्मोकिंग जैसी खतरनाक है जहरीली हवा
स्मोकिंग को क्रोनिक ब्रोन्काइटिस के लिए जिम्मेदार माना गया है, लेकिन इन दिनों पॉल्यूटेंट का जहरीलापन इस बीमारी की वजह बन रहा है। इस मौसम में तेज हवा न बहने के कारण हवा में मौजूद प्रदूषण सांस से जुड़ा वायरल, बैक्टीरियल और फंगल इंफेक्शन को बढ़ाता है। इम्युनिटी के मामले में कमजोर लोगों को ये बीमारियां आसानी से जकड़ लेती हैं।
कंस्ट्रशन साइट्स का हाल-बेहाल
दिल्ली में 2021 में हुई महिला हाउसिंग ट्रस्ट की स्टडी में पाया गया कि कंस्ट्रशन साइट्स पर काम करने वाली महिलाएं स्कोलिओसिस का शिकार हो गई हैं। यह सांस से जुड़ा रोग है। इतना ही नहीं, वे सिर पर गारा, सीमेंट जैसी कंस्ट्रक्शन सामग्री ढोती हैं जो उनके चेहरे पर गिरता है। इसे भी उनकी सांस से जुड़ी बीमारियों की बड़ी वजह माना गया है। इन साइट्स पर काम करने वाली महिलाएं पुनर्वास कॉलोनियों (थानेश्वर अदिगौर) के तंग घरों में रहती हैं। ईंट से तैयार चूल्हे पर खाना बनाने के दौरान निकलने वाला धुआं भी इनकी सेहत पर बुरा असर डाल रहा है। पर्पस, क्लीन एयर फंड और सीएमएसआर कंसल्टेंट के सहयोग से हुई यह स्टडी बताती है कि कंस्ट्रक्शन साइट्स पर मां के साथ रहने वाले बच्चों के फेफड़ों पर भी खराब असर पड़ रहा है।
क्या करें फिर?
कंस्ट्रक्शन के कारण होने वाले पॉल्यूशन की वजह से सरकार कई बार निर्माण कार्यों पर रोक लगा चुकी है। इस स्टडी से जुड़ी सीनियर रिसर्चर रोशनी दिवाकर का कहना है कि काम रुक जाने पर ये औरतें बेरोजगार हो जाती हैं। चूंकि इनमें से ज्यादातर के पति भी यहीं काम करते हैं। इसलिए पूरे परिवार की रोजी-रोटी छिन जाती है। यहां काम करने वाली महिलाओं में बहुत सारी विधवाएं (10%) हैं और कुछ तलाकशुदा। कुछ महिलाएं पति से अलग भी रह रही हैं। काम नहीं रहने पर यह और भी बुरे हाल में पहुंच जाती हैं। इस स्टडी में शामिल 77% महिला वर्कर्स को पता है कि कंस्ट्रक्शन साइट्स की प्रदूषित हवा के कारण उनके फेफड़े खराब हो सकते हैं। 52% की आंखें लाल रहती हैं, 49% को सांस से जुड़ी तकलीफें हो गई हैं। करीब 45% को त्वचा रोग हो जाते हैं। यहां तक कि करीब 4% हार्ट प्रॉब्लम्स की शिकार हैं।
प्रेग्नेंसी में खतरा और भी ज्यादा
स्टडीज में पाया गया है कि लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से गर्भ में पल रहे शिशु के डीएनए पर खराब असर होता है। किडनी, हार्ट, दिल और दिमाग की बीमारियों से परेशान लोगों में रेस्पिरेटरी रोगों के बढ़ने की आशंका अधिक हो जाती है। प्रेग्नेंसी के दौरान किसी ऐसी जगह पर जा सकते हैं, जहां पॉल्यूशन कम हो, तो जरूर जाएं। संभव हो, तो प्रेग्नेंट महिलाओं के कमरे में एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें।
सितंबर-अक्टूबर में लगवाएं एनुअल फ्लू वैक्सीन
- एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर आंवला खाएं। इसमें विटामिन ‘सी’ होता है। मूलेठी खाने का भी अच्छा असर पड़ता है।
- इस समय मॉर्निंग वॉक करने से बचें। सुबह ठंडी हवा भारी होने के कारण नीचे आ जाती है। दोपहर के बाद हवा गर्म होने के कारण ऊपर उठ जाती है, इसलिए वॉक के लिए दोपहर के बाद और शाम से पहले का समय सही है।
- कार्डियोवैस्कुलर और डायबिटीज के पेशेंट में सांस से जुड़े संक्रमण अधिक होने की आशंका होती है। इसलिए दिवाली में बहुत मिठाइयां खाई हैं, तो अब वजन कंट्रोल करने पर ध्यान दें।
- डॉक्टर से पूछ कर एनुअल फ्लू का इंजेक्शन लिया जा सकता है। इस इंजेक्शन में हर बार नए वैरिएंट्स को देखते हुए नए बदलाव किए जाते हैं। इसे सितंबर-अक्टूबर के महीने में लगवाया जा सकता है। खासकर वो लोग लंबे समय से दिल, दिमाग, किडनी, लंग्स की बीमारी से परेशान हैं, वो इसे ले सकते हैं।