डकैतों से नहीं अब ‘पंचनद कुंभ’ से जाना जाएगा बीहड़ ……. विरासत सहेजने को बन रही डॉक्यूमेंट्री, देश-विदेश के कई फिल्म समारोह में की जाएगी प्रदर्शित
औरैया में बीहड़ का नाम आते ही दुर्दांत डाकुओं की तस्वीर जहन में आ जाती है। इस कारण यहां पंचनद (पांच नदियों का संगम) का ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व दब के ही रह गया। केंद्र व यूपी सरकार यहां पंचनद बैराज बनवा रही है तो दस्तावेजी फिल्म निर्देशक शाह आलम यहां पंचनद कुंभ डॉक्यूमेंट्री फिल्म बना रहे हैं। डॉक्यूमेंट्री को देश-दुनिया के कई फिल्म समारोह में प्रदर्शन के लिए अभी से आमंत्रण मिल रहा है।
चंबल के अंचल के धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यटन के ऐतिहासिक महत्व के प्रसिद्ध स्थल पंचनद का मेला दशकों बाद भी राष्ट्रीय स्तर के मेले का दर्जा नहीं पा सका। देशभर के श्रद्धालु और पर्यटक यहां आते हैं और चंबल के प्राकृतिक और सांस्कृतिक सौंदर्य से अभिभूत होते हैं। बावजूद इसके यहां पर्यटन को बढ़ावा नहीं मिल सका। पूरी दुनिया बीहड़ को महज डाकुओं के नाम से ही जानती है।
अब सिंध, पहुंज, क्वारी, चंबल और यमुना नदियों के अनोखे और पवित्र संगम पर सदियों पुराने ‘पंचनद कुंभ’ को ‘राष्ट्रीय मेला’ का दर्जा दिलाने के लिए चंबल फाउंडेशन के पदाधिकारी हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं। वहीं चंबल परिवार के संस्थापक और चर्चित फिल्मकार शाह आलम ‘पंचनद कुंभ’ नाम से दस्तावेजी फिल्म का निर्माण कर रहे हैं।
बागियों (डकैतों) की शरणस्थली मानी जाने वाली पचनद घाटी में बन रही यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म देश-विदेश के फिल्म समारोहों में प्रदर्शन के लिए भेजी जाएगी। अभी से कई फिल्म समारोह से आमंत्रण भी आ रहा है। शाह आलम बताते हैं कि उनकी कोशिश है कि पूरी दुनिया इस बीहड़ को धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व से जाने। यहां पर्यटन को भी बढ़ावा मिले। फिल्म में स्थानीय कलाकारों को भी मौका दिया जाएगा।