यूपी में POCSO एक्ट के सबसे ज्यादा मामले दर्ज, बच्चों से अपराध के मामले में 6,898 केस के साथ अव्वल नंबर पर- NCRB

यूपी में दर्ज किए गए 6,898 मामलों में से 2,630 मामले पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) की धारा 4 और 6 से अप्राकृतिक यौन संबंध और बच्चों के साथ पूरी तरह से यौन संबंध से संबंधित थे.

देश भर में यौन शोषण (Child Sexual Offences) और चाइल्ड पोर्नोग्राफी के प्रसार पर नकेल कसने के लिए सीबीआई तमाम कोशिशों में जुटी हुई है. सीबीआई ने मंगलवार को 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 77 जगहों पर छापेमारी की. इस दौरान बच्चों से यौन अपराधों के मामले में करीब 10 लोगों को हिरासत में लिया. सीबीआई (CBI) ने यूपी के बहुत से जिलों में करीब 11 जगहों पर छापेमारी की थी. बता दें कि अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से बाल यौन शोषण सामग्री को कथित रूप से पोस्ट करने और प्रसारित करने के लिए पिछले दो दिनों में 83 आरोपियों के खिलाफ 23 FIR दर्ज की गई हैं. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों में यूपी अव्वल नंबर पर है.

सितंबर महीने में एनसीआरबी (NCRB) के आंकड़े जारी किए थे. जिसमें कहा गया था कि पॉक्सो अधिनियम के तहत देश के 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों में यौन अपराधों से संबंधित 47,221 मामले दर्ज किए गए. साल 2020 में यूपी में पॉक्सो एक्ट के सबसे ज्यादा 6,898 मामले दर्ज किए गए. यूपी के बाद महाराष्ट्र में करीब 5,687, मध्य प्रदेश में 5,648, तमिलनाडु में 3,090 और पश्चिम बंगाल में 2,657 मामले पॉक्सो एक्ट (POCSO)  के तहत दर्ज किए गए.

UP में पोक्सो एक्ट के तहत 2,630  मामले दर्ज

देशभर के आंकड़ों से पता चला है कि यूपी में दर्ज किए गए 6,898 मामलों में से 2,630 मामले पोक्सो एक्ट की धारा 4 और 6 से अप्राकृतिक यौन संबंध और बच्चों के साथ पूरी तरह से यौन संबंध से संबंधित थे. पीड़ितों में 2,533 लड़कियां और 97 लड़के शामिल हैं. यूपी में कुल मामलों में करीब 3,897 केस बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न और गंभीर यौन उत्पीड़न से संबंधित थे. जिनमें 3,881 पीड़ित लड़कियां और 16 लड़के शामिल थे.

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 68 मामले सोडोमी से संबंधित थे. पीड़ितों में एक लड़की भी शामिल थी. लखनऊ में बाल अधिकार कार्यकर्ता उमेश गुप्ता ने कहा कि कोरोना लॉकडाउन के दौरान पीडोफाइल और चाइल्ड पोर्नोग्राफी वेब कंटेंट के जरिए परोसी गई. उन्होंने कहा कि आसपास रहने वाले बच्चों के लिए यह बहुत ही असुरक्षित प्रवृत्ति है. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान माता-पिता को अपने बच्चों का अतिरिक्त ख्याल रखने की जरूरत है. उन्होंने सरकार से इस जोखिम को उजागर करते हुए विशेष दिशानिर्देश जारी करने की भी अपील की है.

‘यूपी में बच्चों के खिलाफ अपराध काफी कम’

लखनऊ की एक अन्य बाल अधिकार कार्यकर्ता और लखनऊ बाल कल्याण समिति की पूर्व सदस्य संगीता शर्मा ने कहा कि रिपोर्ट्स के मुताबिक यह बहुत ही चिंता की बात है. इससे पहले संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस तरह की प्रवृत्ति के बारे में भारत सरकार और पुलिस को सचेत किया था. लेकिन उसके बाद भी यह बढ़ता रहा. उन्होंने कहा कि इस पर लगाम कसने के लिए सरकार और स्वतंत्र एजेंसियों के अपने बाल संरक्षण नेटवर्क को मजबूत करने की जरूरत है.

यूपी पुलिस के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने पहले कहा था कि यूपी में बच्चों के खिलाफ अपराध की दर 8.1 प्रति लाख जनसंख्या, बच्चों के खिलाफ अपराध की राष्ट्रीय दर 10.6 प्रति लाख जनसंख्या की तुलना में काफी कम है. उन्होंने कहा कि हाल के सालों में यौन अपराधों से संबंधित बच्चों के खिलाफ अपराध की दर में कमी आई है. फिलहाल यूपी देश भर के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 24 वें स्थान पर है.

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