एक जुनूनी लड़की जिसने लड़ी मुर्दाघर बनवाने की लड़ाई, करीब 400 ई-मेल, 1000 फोन कॉल और 50 मीटिंग्स के बाद मिली सफलता

बचपन से ही मुझमें समाज सेवा के लक्षण दिखने लगे थे। 8वीं में थी कि अपनी और सहेलियों की किताबें जुटाकर लाइब्रेरी बना डाली। पिता एअरफोर्स में थे जिस वजह से उनकी पोस्टिंग के साथ हमारे स्कूल बदलते रहे। मैं 10 स्कूलों में पढ़ी। दिल्ली में सर्वेंट क्वार्टर्स में रहते हुए कॉलोनी के बच्चों को जमाकर ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। तब मैं खुद 10 साल की थी। बड़ी हुई तो डिबेट, कविताएं और भरतनाट्यम भी किया। स्कूल की ये चंचल लड़की जब जवान हुई तो कहीं भी गलत होता देख झंडा बुलंद करने या रैलियों में नारे लगाने के बजाए कागज-कलम उठाकर संबंधित विभाग को पत्र लिख भेजती। आज उन्हीं पत्रों और जिद का फल है कि महाराष्ट्र सरकार ने सेंट जॉर्जस अस्पताल में नया मुर्दाघर और पोस्टमार्टम सेंटर बनाने का निर्णय लिया गया है। ये सफलता है चार्टेड अकांटेंट, भरतनाट्यम डांसर और चेंजमेकर रेणु कपूर की।

रेणु कपूर।
रेणु कपूर।

66 साल की रेणु भास्कर वुमन से बातचीत में कहती हैं, ‘मुंबई के सेंट जॉर्जस सरकारी अस्पताल में मुर्दाघर बनवाने की लड़ाई एक दिन में नहीं जीती बल्कि तीन साल लग गए। ये लड़ाई शुरू कुछ ऐसी हुई कि 2017 में मेरे ड्राइवर मनोज की सेप्टिसीमिया की बिमारी से सेंट जॉर्जस अस्पताल में मृत्यु हो गई। जब मैं अस्पताल में उसकी बॉडी लेने गई तो हमें पोस्टमार्टम रिपोर्ट लाने को कहा गया और कहा गया कि धोबीघाट के पास मॉर्चरी है वहां से रिपोर्ट मिलेगी।
‘लाशों को सीमेंट की बोरी तरह रखा गया था’
धोबीघाट के पास का वो मुर्दाघर मुझे मेरी आंखों में आज भी बसा है। मुंबई में एक ऐसी जगह है जहां लाशों को सीमेंट की बोरियों की तरह, एक के ऊपर एक रखा गया है। मानो मौत के बाद इंसान के शरीर का कोई सम्मान ही नहीं है। मैंने उस कमरे को देखा है, जहां लाशों को निर्ममता से रखा जाता है। ये कमरा, जिसमें रोशनी के नाम पर एक दम तोड़ता बल्ब है, इसकी छत से पानी टपकता है और इस कमरे में कोई खिड़की भी नहीं है।
सेंट जॉर्जस अस्पताल के मुर्दाघर का ये हाल देखकर मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि मैं मुंबई में हूं। मनोज जैसे बेहद ईमानदार और मेहनती इंसान की मौत के बाद उसकी लाश के साथ ऐसा दुर्व्यवहार देखकर मेरी रूह कांपने लगी।
‘मुर्दाघर की इमारत जर्जर थी’
स्टाफ क्वार्ट्स के पास बने इस मुर्दाघर में केवल लाशों के साथ गलत व्यवहार ही नहीं किया जा रहा था बल्कि जिस इमारत में ये काम हो रहा था वो जर्जर थी, छत भी टूटी हुई और कोई दरवाजा नहीं था। पोस्टमॉर्टम वाले कमरे में दो मार्बल के प्लेटफॉर्म हैं, जिन पर लाशों को रखा जाता है, इसी कमरे में पोस्टमॉर्टम से जुड़े प्रशासनिक काम भी होते हैं। यहां पोस्टमार्टम करने के लिए प्रशिक्षित स्टाफ भी नहीं है। मनोज की बॉडी लेते समय मैंने वहां एक व्यक्ति को देखा, जिसके हाथ में एक औजार था और जो लुंगी पहने हुए था। आसपास पूछने पर पता चला कि पोस्टमार्टम का काम चपरासी करते हैं।

अपने आसपास जो परेशानी देख रहे हैं उसे बदलने के लिए शुरुआत खुद करें।
अपने आसपास जो परेशानी देख रहे हैं उसे बदलने के लिए शुरुआत खुद करें।

‘नया मुर्दाघर बनाने की डाली याचिका’
मुझे मेरी आंखों पर ही भरोसा नहीं हो रहा था और मैंने वहां की फोटो खींच ली। उसी फोटो के कारण आज हमें सफलता मिली। 2017 में याचिका दायर की कि नया मुर्दाघर और पोस्टमार्टम सेंटर बनाया जाए। 2021 में मुर्दाघर बनाने का वर्क ऑर्डर महाराष्ट्र सरकार ने जारी कर दिया है। ये सफलता आसान नहीं थी। इसके लिए मैंने 2018 में चेंजडॉटओरआजी पर भी पिटीशन डाली। इससे पहले कुछ 400 ई-मेल, हजार फोन कॉल करे होंगे। मैं रोज जैसे दांत ब्रेश करते हैं वैसे विभाग में चार से पांच कॉल्स करती थी। 50 फिजिकल मीटिंग की होंगी। पर हम आज यहां तक पहुंचे हैं तो इसके पीछे मेरे 41 लोगों का समूह है जो मेरे साथ खड़े रहे।
‘बदलाव के लिए खुद कदम उठाएं’
मैंने अपने प्रयासों से देखा है कि अपने आसपास मैं जैसा चेंज देखना चाहती हूं उसके लिए कदम पहले मैंने ही उठाया। मैंने पीएमओ की वेबसाइट पर करीब 66 शिकायतें डालीं। उनमें से 60 का हल मिल गया है। ऐसे प्रयास देश के बाकी नागरिक भी कर सकते हैं और जैसा बदलाव वे अपने आसपास देखना चाहते हैं वैसी दुनिया बना पाएंगे। महिलाओं को मैं यही गुरु मंत्र देना चाहूंगी कि मैं हमेशा से जिद्दी रही। दूसरा मुझे कागज-कलम की ताकत मालूम है और उसी का सहारा लेकर ये सफलताएं हासिल करा पाई हूं।

समाज सेवा, भरतनाट्यम और चार्टर्ड अकाउंटैंसी साथ-साथ किया।
समाज सेवा, भरतनाट्यम और चार्टर्ड अकाउंटैंसी साथ-साथ किया।

महिलाओं के लिए गुरु मंत्र
महिलाओं को भी अपने अधिकारों को लेकर जागरुक होने की जरूरत है। उनके पास आने वाला हर कागज चाहें वो छोटा या हो बड़ा, उसे पढ़कर ही साइन करें। महिलाएं खुद को डिग्रेड न करें, वे सबसे ज्यादा खूबसूरत हैं ये सोचें। खुद को अटेंशन दें। इसके अलावा उन्हें फाइनेंशियल इंडिपेंडेंट होने की जरूरत है ताकि अपनी दुनिया अपने हिसाब से रच सकें।
‘तीन किताबें लिख चुकी हूं’
मैं शादी के बाद जिस तरह के परिवार में आई वहां महिलाएं नौकरी नहीं करती थीं, लेकिन मैंने की। मैंने अपने सपने उन्हें बताए तो फैमिली मान गई। कुछ लोग कहते हैं कि तुम्हारे हस्बैंड सपोर्टिव हैं, लेकिन मुझे लगता है कि मेरे हस्बैंड में एक अच्छा दोस्त है जो हमेशा मेरे साथ रहता है। अब तक सेरेंडिप्टि मंत्राज फॉर अ फैमिली, घूंघरूज इन द सी और जस्ट अ गेम किताबें लिख चुकी हूं और वुमन पावर ऐंड एजुकेशन के अवॉर्ड भी मिल चुके हैं।

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