लड़कियां जब मन का करती हैं तो बागी कहलाती हैं, मैंने ‘रस बनारसिया’ में पाया जीवन का रस और कहलाई विद्रोही
बनारस छोटा सा शहर है पर मेरे सपने आसमान के जितने बड़े हैं। इन्हें पूरा करने के लिए मैंने किसी से कुछ नहीं मांगा। मांगा तो अपने हिस्से के सपने देखने की, उन्हें बुनने की और उन्हें पूरा करने की आजादी। हम लड़कियां जब तक परिवार की हां में हां मिलाते हैं तब तक सभी के लिए अच्छे रहते हैं, पर परिवार के खिलाफ एक फैसला हमें बागी बना देता है। मैंने भी कुछ फैसले ऐसे लिए आज पहचान बागी और बिगड़ैल दोनों रूपों में है। मैंने अपने मन क काम किया और परिवार में लड़कियों के लिए सहुलियत वाली नौकरी करने से इतर जूस की दुकान खोल अपना स्टार्टअप शुरू किया।’ ये शब्द हैं वाराणसी की रहने वाली नेहा सिंह के।
29 साल की नेहा भास्कर वुमन से बातचीत में कहती हैं, ‘मेरे पापा सरकारी नौकरी में हैं और दादा जी भी सरकारी नौकरी में थे। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए मैंने भी सरकारी नौकरी की तैयारी की, लेकिन मन तो कुछ और चाहता था। बीएचयू से बीकॉम और सोशल वर्क में एमए किया। जेआरएफ क्वालिफाई किया। कई कॉलेज में प्रोफेसरी का मौका भी मिला, पर नहीं गई। बैंक पीओ का भी पेपर दिया, फिर बीएड का भी एंट्रेंस दिया। मतलब एक सरकारी नौकरी पाने के लिए जितने हाथ पैर मारने थे, खूब मारे, लेकिन कहते हैं जो आपके लिए अच्छा है वही आपको मिलता है।
‘परिवार की इच्छाओं पर चल रही थी’
अभी तक मैं जो भी कर रही थी वो कहीं न कहीं परिवार की इच्छाएं थीं, लेकिन मेरा मन शुरू से था कि कुछ अपना शुरू करूं। किसी की नौकरी करना मेरे बस में नहीं था। ये बात मैं सोशल वर्क के दौरान ही समझ गई थी। जेआरएफ इसलिए निकाला ताकि अर्निंग सोर्स बना रहे और जिस दिन अपना कुछ शुरू करूं उस दिन मुझे किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। आखिरकार लॉकडाउन में मुझे खुद के साथ बैठने का मौका मिला और बहुत सोचने विचारने के बाद समझ आया कि बनारस में ही जूस कॉर्नर शुरू किया जाए। पूरे बनारस में हाईजीन मेंटेन करने वाला जूस कॉर्नर था भी नहीं। इस शहर को मेट्रोपोलिटिन सिटी और हेल्दी लाइफस्टाइल देने की कोशिश की।
‘पापा को 10 दिन पहले बताया अपने काम के बारे में’
फैमिली में मम्मी के सिवाए किसी को नहीं मालूम था कि मैं अपनी शॉप शुरू कर रही हूं। पापा को लोकार्पण के 10 दिन पहले बताया कि मैंने अपना काम शुरू किया है। वो खुश नहीं हुए क्योंकि उन्हें मुझसे ज्यादा उम्मीदें थीं। उनके अनुसार मैंने ये शॉप खोलकर कोई महान काम नहीं किया। उन्हें आज भी इतनी शर्मिंदगी है किसी को बताते नहीं कि उनकी बेटी क्या करती है।
‘रिश्तेदारों ने बेशर्म कहा’
इस स्टार्टअप को शुरू करने से पहले जब फैमिली में मालूम हो गया था कि मैं अपना बिजनेस शुरू कर रही हूं तो खूब झगड़े हुए। रिश्तेदारों ने मुझे बेशर्म, बिगड़ैल लड़की कहा। पूरे बनारस में कोई लड़की दुकान खोलकर नहीं बैठती, ये लड़की बैठेगी हमारी नाक कटाएगी। तमाम ताने-फब्तियां सुनने को मिलीं। उन दिनों मुझे भी लगा कि कहीं मैं सच में दूसरों को दुख तो नहीं पहुंचा रही, लेकिन ये दुख कुछ क्षण का होता था फिर सब ठीक हो जाता। अपनी पतंग का मांजा अपने हाथ में रखना था, इसलिए ये कड़वे बोल सहे और अपने मिशन पर आगे बढ़ती गई।
‘खुद की कमाई से खोला जूस कॉर्नर’
ये पहला मौका नहीं था जब मुझे परिवार या रिश्तेदारों की तरफ से ‘तारीफें’ सुनने को मिली हों। इससे पहले जब मैंने साइंस से इतर कॉमर्स स्ट्रीम को पढ़ाई का हिस्सा बनाया, तब भी फैसले का स्वागत बहुत अच्छे से नहीं हुआ। एमए करने के बाद एक संस्था में काम करने का मौका मिला। इसी के साथ बाल सुधार गृह और अनाथालय में बच्चों के साथ काम किया। इस काम से ही कुछ कमाई हुई। इस दौरान मैंने पीएचडी का भी एंट्रेंस क्लिअर कर लिया था, लेकिन जब संस्था वाली नौकरी मिल गई तो उसे छोड़ दिया। इसी सेविंग से ‘रस बनारसिया’ शुरू किया।
‘कुछ लोग अभी भी नाखुश हैं’
मकड़ी के जालों से भरी दुकान को अपने हाथों से साफ किया। उसमें खूब रंग भरे, चित्रकारी की। रंग-बिरंगे और सेहत से भरे फलों से काउंटर को सजाया और जब पहली बार अपने कर्मचारियों से मालकिन शब्द सुना तो शरीर में गर्व की ऐसी सरसराहट हुई कि उसे बयां नहीं कर सकती। कस्टमर्स के पॉजिटिव रिस्पॉन्स सुन मेरे काम करने की स्पीड और बढ़ गई। घर में भी सूरज ढलने से पहले पहुंचने का नियम है, लेकिन जब से स्टार्टअप शुरू किया है तब से रात 11 बजे तक घर पहुंचती हूं। मैं तो अपने काम से खुश हूं लेकिन अभी भी कुछ लोग नाखुश हैं।
‘शादी का लिया फैसला’
घर में जिन दिनों मैं अपने हिस्से की जमीन तलाशने में लगी थी उन दिनों घर वालों को लगा कि अब इसकी शादी करवा दो, सब ठीक हो जाएगा, लेकिन शादी हर मर्ज का सैटेलमेंट नहीं होता। परिवार ने कह दिया कि हम तुम्हारे लिए लड़का नहीं ढूंढ़ेंगे। लड़के वालों को क्या बताएंगे कि हमारी बेटी क्या करती है? उन्हें मेरे काम पर गर्व नहीं है। उनकी इस बात के बाद मैंने खुद अपने लिए लड़का चुना और मेरी इस पसंद पर सभी को नाज है। लड़का भी मैंने बनारस का ही चुना ताकि मेरा ‘रस बनारसिया’ चलता रहे।
‘खुद पर भरोसा करें’
ये स्टार्टअप तो शुरू हो गया है। अब इसे जल्द ही बनारस से आगे बढ़ाना है। खुद पर लगाई गई लानत-मलानत के बाद भी मैं आने वाली यंग आंत्रप्रेन्योर को यही कहूंगी कि आपको जो करना है उसे करें। खुद पर भरोसा रखें। आपने जो आइडिया सोचा है उस पर काम करें और पूरी मेहनत व विश्वास के साथ आगे बढ़ें। अगर आप सही हैं तो किसी से डरने की जरूरत नहीं हैं।