डाबर के ब्रांड बनने की कहानी ….. 1884 में एक वैद्य के शौक से शुरुआत, आज 1 लाख करोड़ की कंपनी; कोरोना में सेल्स स्ट्रेटेजी से मचा तहलका

अप्रैल 2020, गाजियाबाद के कौशांबी स्थित डाबर का कॉर्पोरेट ऑफिस। मीटिंग रूम में कुछ ऐसी आवाजें सुनाई दे रही थी…

‘मैं ब्रेड नहीं बेचता, बिस्किट नहीं बेचता, तेल नहीं बेचता, यहां तक की नमक और आटा भी नहीं बेचता।’

इस वक्त तक भारत में महामारी ने दस्तक दे दी थी। देश लॉकडाउन की गिरफ्त में था। लोग सिर्फ जरूरी चीजों की खरीदारी कर रहे थे। जिसमें डाबर के च्यवनप्राश, शहद, हाजमोला, हेयर ऑयल और रियल जूस जैसे प्रोडक्ट शामिल नहीं थे। इस हालत में डाबर के मीटिंग रूम से ऐसी आवाजें आना लाजिमी थी। डाबर के पास दो रास्ते थे। पहला, जैसा चल रहा है चलने दिया जाए। दूसरा, इस आपदा को अवसर बनाया जाए।

डाबर के CEO मोहित मल्होत्रा ने दूसरा रास्ता चुना। महामारी के दौरान उन्होंने ताबड़तोड़ करीब तीन दर्जन नए प्रोडक्ट लॉन्च कर दिए। हम यहां उन सभी प्रोडक्ट के बारे में बताएंगे। लेकिन उससे पहले डाबर के यहां तक पहुंचने की रोचक कहानी जान लेते हैं। साल 1884 में एक वैद्य का शुरू किया डाबर आज 9.5 हजार करोड़ की सालाना आमदनी वाला ब्रांड कैसे बना?

136 साल पहले एक वैद्य का विजन

कहानी की शुरुआत होती है कलकत्ता से। वहां डॉ एस के बर्मन नाम के एक वैद्य हुआ करते थे। अपनी छोटी सी क्लीनिक में वो लोगों का आयुर्वेदिक इलाज करते थे। 1884 में उन्होंने आयुर्वेदिक हेल्थकेयर प्रोडक्ट बनाने शुरू किए। डॉक्टर का ‘डा’ और बर्मन का ‘बर’ लेकर उन्होंने ब्रांड का नाम डाबर रखा।

कलकत्ता की एक क्लीनिक से डाबर की शुरुआत करने वाले डॉ एस के बर्मन
कलकत्ता की एक क्लीनिक से डाबर की शुरुआत करने वाले डॉ एस के बर्मन

1896 तक डाबर के प्रोडक्ट इतने लोकप्रिय हो गए कि उन्हें एक फैक्ट्री लगानी पड़ी। कारोबार में खूब तरक्की हो रही थी, तभी 1907 में डॉ एस के बर्मन की मौत हो गई। अब कंपनी की बागडोर उनके बेटे सी एल बर्मन के हाथ में आ गई। उन्होंने रिसर्च लैब शुरू की और डाबर के प्रोडक्ट्स का विस्तार किया।

21 गुना ओवर सब्सक्राइब्ड डाबर का IPO

1972 में डाबर का ऑपरेशन कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट हो गया। साहिबाबाद में विशाल फैक्ट्री, रिसर्च और डेवलपमेंट सेंटर बनाया गया। 1994 में डाबर अपना शेयर जारी किया। लोगों का कंपनी पर इस कदर भरोसा बन चुका था कि ये IPO 21 गुना ज्यादा सब्सक्राइब किया गया।

1996 में डाबर को तीन हिस्सों में बांट दिया गया- हेल्थकेयर, फैमिली प्रोडक्ट और आयुर्वेदिक प्रोडक्ट। 1998 में डाबर परिवार से निकालकर प्रोफेशनल्स के हाथों में सौंप दी गई। पहली बार कंपनी को नॉन फैमिली प्रोफेशनल CEO मिला। साल 2000 में कंपनी का टर्नओवर पहली बार 1 हजार करोड़ के आंकड़े के पार पहुंचा।

21वीं सदी में डाबर की ग्रोथ स्टोरी

2005 में डाबर ने बल्सरा ग्रुप का 143 करोड़ रुपए में अधिग्रहण किया। यही कंपनी ओडोनिल जैसे हाइजीन प्रोडक्ट बनाती है। 2006 में डाबर का मार्केट कैप 2 बिलियन डॉलर पार कर गया। 2008 में कंपनी ने फेम केयर फार्मा का अधिग्रहण कर लिया। 2010 में डाबर ने होबी कॉस्मेटिक नाम की पहली विदेशी कंपनी का अधिग्रहण किया। 2011 में डाबर ने प्रोफेशनल स्किन केयर मार्केट में एंट्री की। इसी साल अजंता फार्मा की 30-प्लस का अधिग्रहण किया।

डाबर ने महामारी के दौरान क्या किया?

अब वापस आते हैं उस घटना पर जहां से इस लेख की शुरुआत हुई थी। लॉकडाउन के दौरान डाबर प्रोडक्ट की बिक्री घटी तो उनके CEO ने बहुत आक्रामक तरीके से प्रोडक्ट लॉन्च करने का फैसला किया।

डाबर के 9 प्रमुख ब्रांड हैंः डाबर च्यवनप्राश, डाबर हनी, डाबर हनीटस, डाबर पुदीन हरा, डाबर लाल तेल, डाबर आंवला, डाबर रेड पेस्ट, रियल जूस और वाटिका। इन्हीं 9 सेगमेंट में नए-नए प्रोडक्ट लॉन्च किए गए।

डाबर का फोकस इनोवेशन और तुरंत फैसले लेने पर रहा है। यही वजह है कि कॉम्पिटीटर के शुरू करने से पहले ही डाबर अपना प्रोडक्ट लॉन्च कर देता है। इसके नए प्रोडक्ट कितना कमाल कर पाते हैं, ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन नेचुरल प्रोडक्ट की बढ़ती मांग के बीच डाबर का बिजनेस लगातार बढ़ना तय माना जा रहा है।

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