दीपक’ में किसी ने नहीं डाला तेल ….. अजय को मिल गई विजय, सूट-बूट वाले अफसर कुर्ता-पायजामा पहनकर पढ़ाते हैं आध्यात्म का पाठ
एक साल 9 महीने के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार शिवराज सरकार ने निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्तियां कर दी हैं। इस सूची के जारी होने के बाद एक पूर्व मंत्री को जोर का झटका लगा है। उन्हें पूरी उम्मीद थी कि किसी बड़े निगम की कमान मिलेगी। उन्हें यह आश्वासन सत्ता और संगठन की तरफ से दिया गया था। उन्होंने उपचुनाव में पार्टी लाइन से हटकर मैदान में उतरने के लिए ताल ठोंक दी थी। चूंकि, कांग्रेस से BJP में आए विधायक को टिकट देना पार्टी की मजबूरी थी। फिर मूल विचारधारा के इस नेता की नाराजगी के चलते सीट जीतना टेढ़ी खीर से कम नहीं था। इतना ही नहीं, कांग्रेस में जाने की चर्चा से इनकार नहीं करना भी पार्टी के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं था।
सुना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने उन्हें सम्मानजनक पद देने का वादा किया था। यही वजह है कि वे तन-मन से अपने राजनैतिक विरोधी रहे उम्मीदवार को जीत दिलाने में जुट गए। उन्होंने अपने समर्थकों के बीच ढिंढोरा पीट दिया था- मंत्री न सही, मंत्री का दर्जा तो मिल जाएगा, लेकिन ऐसा हो न सका। उनका नाम सूची में नहीं आने पर एक वरिष्ठ नेता की टिप्पणी है- जनाब… जो समय के साथ करवट बदल ले, यही तो राजनीति है। बहरहाल, इस ‘दीपक’ के दिए में किसी ने भी तेल नहीं डाला।
अजय को कैसे मिली विजय? सब हैरान
अजय यादव को अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वित्त विकास निगम का उपाध्यक्ष बनाया गया है, लेकिन उनकी इस नियुक्ति से पार्टी के नेता हैरान हैं। उनका नाम सूची में देखकर कई नेता यहां-वहां फोन लगाकर पता करने लगे कि कई दावेदारों के नाम इस पद के लिए थे, फिर अचानक सबको पछाड़कर इन्हें कैसे कुर्सी मिल गई। भले ही उनके पिता देशराज सिंह यादव तीन बार के विधायक रहे, लेकिन वर्तमान में उनका नाम किसी खेमे से नहीं जुड़ा है। बहुत कवायद करने के बाद एक नेता को पता चला कि उपचुनाव के दौरान सिंधिया समर्थक को खबर मिली थी कि यादव परिवार को साधे बिना जीत नहीं मिल सकती है। लिहाजा फोन पर ही कुछ अच्छा मिलने का आश्वासन ‘सरकार’ की तरफ से मिल गया था। अभी तक यह राज ही रहा। अब पता चला कि अजय को विजय कैसे मिली।
संघ के लिए तोड़नी पड़ी हद
यह भी पहली बार हुआ, जब किसी विकास प्राधिकरण में जिला ही नहीं, बल्कि संभाग से बाहर के जिले के नेता को अध्यक्ष बना दिया गया। इस पद को पाने के लिए जिले के ही नेताओं में कॉम्पीटिशन था। दो नेताओं को उम्मीद थी कि यह पद उनके बीच में ही किसी एक को मिलेगा, लेकिन सूची जारी हुई तो दोनों में से किसी एक नाम तो दूर, संभाग के किसी नेता का नाम नहीं था। जो नाम था, उसे देखकर दोनों नेता मायूस हो गए, लेकिन अपनी पीड़ा किसी को बता भी नहीं पाए। वजह यह है कि जिस नेता को प्राधिकरण की कमान दी गई है, वह पृष्टभूमि संघ से है। इसके जिले की हद से बाहर जाना सरकार की मजबूरी थी।
जिसके कारण पद गया, उसे ही बचाने की कवायद
हाल ही में उद्यानिकी विभाग में हुए प्याज बीज घोटाले के कारण प्रमुख सचिव को लूपलाइन में जाना पड़ा। उनके अधीनस्थ की मूल विभाग में रवानगी दे दी गई। घोटाले को दोनों एक-दूसरे के खिलाफ थे। सरकार ने बीच कर रास्ता निकालकर दोनों को ही हटा दिया। सुना है कि अब प्रमुख सचिव के ही करीबी उस अफसर की पैरवी करने मुख्यमंत्री कार्यालय में कर रहे हैं। उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करने की सिफारिश की जा रही है। पता चला है कि पुलिस में रहने का लंबा अनुभव रखने वाले प्रमुख सचिव के इस करीबी नहीं चाहते कि तार को ज्यादा खींचा जाए।
और.. अंत में : IAS अफसर का आध्यात्मिक पाठ
मंत्रालय में एक आईएएस अफसर ने कई आध्यात्मिक किताबें लिखी हैं। अब उनका नया रूप देखकर बिरादरी भी आश्चर्यचकित है। उन्होंने कई मंचों पर इसका पाठ भी किया, लेकिन अब वे वर्चुअली लोगों को ट्रेनिंग दे रहे हैं। उनका दायर अब बढ़ने लगा है। अध्यात्म में रुचि रखने वाले विदेशी भी उनसे जुड़ गए हैं। पहले वे सूट-बूट में ट्रेनिंग देते थे, लेकिन वे कुर्ता-पायजामा में बैठकर किसी आध्यात्मिक गुरु की तरह इसका मतलब समझाने लगे हैं। वे कहते हैं- विदेशियों को भारत की पारंपरिक वेषभूषा प्रभावित करती है।