किसी दूसरे से मदद लेने से अच्छा है हम खुद योग्य बन जाएं

कहानी – नारद मुनि ने एक कन्या को देखा। उसका नाम था विश्वमोहिनी। वह बहुत सुंदर थी। उसका स्वयंवर हो रहा था। विश्वमोहिनी को देखकर नारद मुनि के मन में विचार आया कि क्यों न अब घर बसा लिया जाए और अगर ये कन्या मुझे पसंद कर ले तो काम आसान हो जाएगा।

नारद मुनि ने सोचा कि स्वयंवर का मामला है तो कन्या उसे ही पसंद करेगी जो दिखने में सुंदर हो, मुझे विष्णु जी के पास जाना चाहिए और उनसे थोड़ा सौंदर्य मांग लेना चाहिए।

नारद मुनि ने विष्णु जी को याद किया तो भगवान वहीं प्रकट हो गए। भगवान ने याद करने की वजह पूछी तो नारद जी बोले, ‘मुझे आपका रूप दे दीजिए।’

विष्णु जी हंसते हुए कहा, ‘बिल्कुल, मैं आपको वह रूप दूंगा, जिससे आपका भला होगा।’

विष्णु जी ने नारद जी को वानर बना दिया। जब वे वानर के रूप में स्वयंवर में पहुंचे तो उनका बहुत अपमान हुआ। उस समय नारद जी को बहुत गुस्सा आया।

नारद जी ने विष्णु जी से पूछा, ‘आपने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?’

विष्णु जी बोले, ‘जब कोई व्यक्ति बीमार हो तो वैद्य उसे कड़वी दवाई ही देता है, भले ही बीमार को वह दवा अच्छी न लगे। आप जैसे संत के भीतर कामभावना जाग गई थी और वासनाओं की वजह से आप उस कन्या को पाना चाहते थे। आप सौंदर्य भी उधार मांग रहे हैं।’

नारद जी को विष्णु जी की बात समझ आ गई।

सीख – सुंदरता, योग्यता और सुख-सुविधाएं उधार की नहीं होनी चाहिए। हमारी मौलिक होनी चाहिए। सुख-सुविधाएं खुद की मेहनत से अर्जित करनी चाहिए। हमारे पास बहुत कुछ ऐसा है, जिसका हम सही उपयोग करें तो हमारी सुंदरता और योग्यता निखर सकती है और सारी सुख-सुविधाएं प्राप्त की जा सकती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *