ऐसे सिकुड़ गई यादवों के इन 2 हीरों की राजनीति..

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 में देश के दो बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में एक जैसे रिजल्ट आए हैं. दोनों राज्यों लंबे समय तक सरकार चलाने वाले यादव परिवार का लगभग खात्मा हो चुका है. इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के मुलायम सिंह यादव और बिहार के लालू प्रसाद यादव  के परिवार का राजनीतिक रूप से पतन हो गया है. हालांकि ये भी कहा जा सकता है कि राजनीति में कभी भी किसी का पतन नहीं होता है, जनता कब किसे राजा बना दे कोई नहीं जानता.

इन दोनों नेताओं के उत्थान और पतन की कहानी एक जैसी है. दोनों राजनीतिक परिवारों को बैकफुट पर ढकेलने वाली पार्टी भी एक ही बीजेपी है. दोनों नेताओं के बेटे पिता की राजनीतिक विरासत संभालने की कोशिश कर रहे है, लेकिन शुरुआत में ही इन्हें बीजेपी ने बड़े झटके दे रही है. हालांकि दोनों नेताओं की राजनीति में सत्ता के साथ लांचिंग हुई थी. अखिलेश यादव की राजनीति में वास्तविक एंट्री उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में मुख्यमंत्री के रूप में हुई थी तो तेजस्वी 30 से भी कम की उम्र में बिहार के उपमुख्यमंत्री बने थे. कहते हैं राजनेता की असली परख विपक्ष में होती है, यही इन दोनों के साथ हो रहा है.

दो बड़ी घटनाओं ने लालू-मुलायम को बनाया था सेक्युलर नेता
लालू प्रसाद यादव  और मुलायम सिंह यादव  अपने-अपने प्रदेशों में  (मुस्लिम+यादव) समीकरण के बूते सत्ता में आते रहे हैं. इन दोनों नेताओं ने दो ऐसे राजनीतिक फैसले लिए जिसकी वजह से मुस्लिमों के बीच ये काफी लोकप्रिय हैं. 30 अक्टबूर, 1990 को यूपी के तत्तकालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव  के आदेश पर अयोध्या में कारसेवकों पर गोलियां चलाई गई थीं, जिसमें 5 लोगों की मौत हुई थीं.

वहीं साल 1990 में ही बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी देशभर में रथयात्रा पर निकले थे. देशभर में उनके रथ को कहीं नहीं रोका गया, लेकिन बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव (Lalu prasad yadav) ने 23 अक्टूबर को आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया था और इस तरह रथयात्रा खत्म हो गई. आडवाणी अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर स्थापित करने के लिए जनसमर्थन जुटाने निकले थे. इन दोनों घटनाओं ने इन दोनों नेताओं को मुस्लिमों के बीच काफी लोकप्रिय बना दिया था. इस बार के लोकसभा चुनाव परिणाम में बीजेपी की विकासवादी और राष्ट्रवादी राजनीति के सामने लालू+मुलायम की जातिवादी और धर्म आधारित राजनीति पूरी तरह से सिकुड़ गई.

लोहिया-जेपी आंदोलन से निकले हैं लालू-मुलायम
बिहार में जय प्रकाश नारायण और उत्तर प्रदेश में राममनोहर लोहिया दो ऐसे नेता रहे, जिन्होंने इस देश में ‘समाजवाद’ के नारे को बुलंद किया. इंदिरा गांधी की इमरजेंसी के खिलाफ जयप्रकाश नारायण ने पटना के गांधी मैदान से जेपी आंदोलन की शुरुआत की जो देशव्यापी साबित हुई थी. इसी आंदोलन से लालू प्रसाद यादव  और मुलायम सिंह यादव राजनीति की लाइम लाइट में आए. 1990 के दशक में दोनों नेता अपने-अपने राज्यों सत्ता में आए. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद दोनों ने अपने बेटों के हाथ में पार्टी की बागडोर सौंपनी शुरू कर दी थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों के बेटों की अगुवाई में पार्टी की दुर्गति हुई है.

अखिलश यादव और तेजस्वी यादव ने बीजेपी से मुकाबले के लिए इस बार ऐसा गठबंधन तैयार किया था, जिसमें जातीय समीकरण का खास ख्याल रखा गया था. दोनों ने ज्यादा से ज्यादा अपने रिश्तेदारों को टिकट दिया था, लेकिन बीजेपी के सामने इनकी सारी प्लानिंग फेल साबित हुई है. मुलायम की समाजवादी पार्टी तो जैसे-तैसे पांच सांसद जुटा भी पाई, लेकिन लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल तो शून्य पर पहुंच गई है.दोनों परिवारों ने अपनों को काफी लाभ पहुंचाया
मुलायम और लालू दोनों ने मौका मिलते ही ज्यादा से ज्यादा अपने परिवार के लोगों को सत्ता का स्वाद चखाया. 2014 के लोकसभा चुनाव में तो मुलायम के परिवार से पांच सांसद बने थे. इसके अलावा उनके बेटे अखिलेश यादव राज्य में मुख्यमंत्री और भाई शिवपाल सिंह यादव सरकार में मंत्री थे. लालू ने तो अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया था. फिलहाल लालू की बड़ी बेटी मीसा भारती राज्यसभा में हैं.1996 से 1999 के बीच जब देश में गठबंधन की सरकार का दौर था तब दोनों नेताओं ने प्रधानमंत्री बनने की काफी कोशिश की, लेकिन दोनों ने ही एक-दूसरे को इस कुर्सी पर जाने से अड़ंगा लगा दिया.

दोनों ही परिवारों में आंतरिक कलह
दिलचस्प बात यह है कि इस वक्त दोनों नेताओं की पार्टी सत्ता से दूर है और दोनों के परिवारों में कलह है. मुलायम सिंह यादव (Mulayam singh yadav) के परिवार में उनके भाई शिवपाल सिंह यादव अलग पार्टी बना चुके हैं तो अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष बने हैं. इस बार के चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को हराने में शिवपाल यादव काफी हद तक सफल हुए. वहीं लालू के परिवार में दोनों बेटों तेजस्वी और तेजप्रताप के बीच ठनी हुई है. तेजप्रताप ने कई सीटों पर आरजेडी के नेताओं को हराने के लिए प्रचार किया था. तेज प्रताप ने आरजेडी के प्रत्याशी और अपने ससुर चंद्रिका राय के खिलाफ काफी प्रचार किया. दोनों भाई किसी भी चुनावी सभा में साथ नहीं दिखे. दिलचस्प बात यह है कि मुलायम और लालू रिश्तेदार भी हैं.

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