युवा पीढी नही देश का भविष्य बिगड़ रहा है ?
आज हमारी युवा पीढी को न जाने क्या हो रहा है माँ बाप और टीचरों की जरा जरा सी बातो और डाट फटकार पर खुदकुशी और मारपीट की खबरें बहुत तेजी से सुनने को मिल रही हैं। अभी पिछले दिनों ही एक छात्र की करतूत ने गुरू शिष्य परंपरा को ही कलंकित कर के रख दिया। अध्यापक के जरा सा डांटने पर गुस्साए छात्र ने उन्हे चाकू मार कर लहूलुहान कर दिया। ये घटना 3 अक्तूबर 2011 की सहारनपुर के बड़गांव के आदर्श इंटर कालेज के कक्षा 11 में भौतिक विज्ञान के अध्यापक जगदेव के साथ स्कूल के पहले घंटे में ही घटित हुर्इ। दरअसल अध्यापक जगदेव जैसे ही क्लास में पहुंचे तो उन्होने देखा कि क्लास में कुछ कुर्सियां उल्टी सीधी पडी थी उन्होने छात्रों से क्लास की उल्टी कुर्सियों को सीधा करने को कहा किन्तु कुर्सियां सीधी करने छात्र सुमित ने अपनी तोहीन समझा और उसने ऐसा करने से मना कर दिया। अध्यापक जगदेव ने उसे जब डाटा तो वो चिढ़ गया और उसने जेब से चाकू निकालकर अध्यापक जगदेव पर हल्ला बोल दिया। ये कोर्इ अकेली घटना नहीं अपने सहपाठियों और अध्यापकों के साथ कम उम्र युवाओं द्वारा हिंसक घटनाओं की तादाद दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही हैं। आखिर ऐसा क्यो हो रहा है। एक ओर जहां इन घटनाओं से बच्चों के परिजन परेशान हैं वही ये घटनाएँ देश और समाज के लिये भी चिंता का विषय बनता जा है। दरअसल इन घटनाओं की वजह बहुत ही साफ और सच्ची है जो बच्चे ऐसी घटनाओ को अन्जाम दे रहे हैं उन के आदर्श फिल्मी हीरो, हिंसक वीडियो गेम, माता पिता द्वारा बच्चो को ऐश-ओ-आराम के साथ महत्वाकांशी दुनिया की तस्वीरों के अलावा जिन्दगी के वास्तविक यथार्थ बताएं और दिखाये नही जा रहे हैं। संघर्ष करना नही सिखाया जा रहा। हां सब कुछ हासिल करने का ख्वाब जरूर दिखाया जा रहा हैं। वह भी कोर्इ संघर्ष किये बिना। दरअसल जो बच्चे संघर्षशील जीवन जीते हैं उनकी संवेदनाएं मरती नहीं हैं वे कठिन परिस्थितियों में भी निराश नहीं होते और हर विपरीत परिस्थिति से लडने के लिये तैयार रहते हैं। कुछ घटनाओं के पीछे शिक्षा और परीक्षा का दबाव है तो कुछ के पीछे मात्र अभिभावकों और अध्यापकों की सामान्य सी डाट, अपने सहपाठियों की उपेक्षा अथवा अंग्रेजी भाषा में हाथ तंग होना। मामूली बातों पर गम्भीर फैसले ले लेने वाली इस युवा पीढी को ना तो अपनी जान की परवाह है और ना ही उन के इस कदम से परिवार पर पड़ने वाले असर की उन्हे कोर्इ चिंता है।
यदि हम थोड़ा पीछे देखे तो 9 फरवरी 2010 को कानपुर के चकेरी के स्कूल के आर एजुकेशन सेंटर के कक्षा 11 के छात्र अमन सिह और उस के सहपाठी विवेक में किसी बात को लेकर मामूली विवाद हो गया। मामला स्कूल के प्रिंसीपल तक पहुँचा और उन्होने दोनों बच्चो को डाट कर समझा दिया किन्तु अगले दिन अमन सिंह अपने चाचा की रिवाल्वर बस्ते में छुपाकर स्कूल ले आया और उसने क्लास में ही अपने सहपाठी विवेक को गोली मार दी। स्कूल या कालेज में इस प्रकार की घटना का ये पहला मामला नही है। 18 सितम्बर 2008 को दिल्ली के लाडो सराये में एक छात्र द्वारा एक छात्रा की हत्या गोली मार कर कर दी गर्इ थी, 18 सितम्बर 2008 को ही मध्य प्रदेश के सतपाडा में एक छात्रा को उसके ही सहपाठियों ने जिन्दा जला दिया था, 16 फरवरी 2008 को गाजियाबाद के मनतौरा स्थित कालेज में एक छात्र ने अपने सहपाठी को गोली मार दी थी, 11 फरवरी 2008 को दिल्ली ही के कैंट सिथत सेंट्रल स्कूल में एक छात्र द्वारा अपने सीनियर को मामूली कहासुनी पर चाकू मार दिया था। नवंबर 2009 में जम्मू कश्मीर के रियासी जिले में आठवीं क्लास की मासूम छात्रा के साथ लगभग 18 साल की उम्र के आसपास के 7 स्कूली बच्चों ने रेप किया सब के सब आरोपी युवा बिगडे रर्इसजादे थे। बच्चों और युवाओं में दिन प्रतिदिन हिंसक दुष्प्रवृति बढती ही जा रही हैं। अभिभावक हैरान परेशान हैं कि आखिर बच्चों की परवरिश में क्या कमी रह रही है। अपने लाडलो को समझाने बुझाने में कहा खोट है कहा चूक रहे हैं हम।
आज देशभर के शिक्षकों, मनोचिकित्सकों, और माता पिताओ के सामने बच्चो द्वारा की जा रही रोज रोज स्कूलो में हिंसक घटनाओं से नर्इ चुनौतियाँ आ खडी हुर्इ हैं। आज बाजार का सब से अधिक दबाव बच्चो और युवाओ पर है। दिशाहीन फिल्में युवाओ और बच्चो को ध्यान में रखकर बनार्इ जा रही हैं। जब से हालीवुड ने भारत का रूख किया है स्थिति और बद से बदतर हो गर्इ हैं। बे सिर पैर की एक्शन फिल्मे सुपरमैन, डै्रकूला, ट्रमीनेटार, हैरीपौटर जैसी ना जाने कितनी फिल्मे बच्चो के दिमाग में फितूर भर रही हैं। वहीं वान्टेड, दबंग, बाडीगार्ड, बाबर, अब तक छप्पन, वास्तव, आदि हिंसा प्रधान फिल्मे युवाओ की दिशा बदल रही हैं। आज का युवा खुद को सलमान खान, शाहरूख खान, अजय देवगन, रितिक रोशन, शाहिद कपूर, अक्षय कुमार की तरह समझता हैं और उन्ही की तरह एक्शन भी करता है। ये तमाम फिल्मे संघर्षशीलता का पाठ पढाने की बजाये यह कह रही हैं कि पैसे के बल पर सब कुछ हासिल किया जा सकता है, छल, कपट, घात प्रतिघात, धूर्तता, ठगी, छीना झपटी, कोर कोई अवगुण नही हैं इस पीढी पर फिल्मी ग्लैमर, कृत्रिम बाजार और नर्इ चहकती दुनिया, शारीरिक परिवर्तन, सैक्स की खुल्लम खुल्ला बाजार में उपलब्ध किताबें, ब्लू फिल्मो की सीडी डीवीडी व इन्टरनेट और मोबार्इल पर सेक्स की पूरी क्रियाओं सहित जानकारी हमारे किशोरों को बिगाडने में कही हद तक जिम्मेदार हैं। इस ओर किशोरों का बढता रूझान ऐसा आकर्षण पैदा कर रहा हैं जैसे भूखे को चंद रोटी की तरह नजर आता है।
गुजरे कुछ वर्षों मे हमारे घरो की तस्वीर तेजी से बदली हैं पिता को बच्चो से बात करने की, उनके पास बैठने और पढार्इ के बारे में पूछने की फुरसत नहीं। माँ भी किट्टी पार्टियों, शापिंग घरेलू कामो में उल्झी हैं। आज के टीचर को शिक्षा और छात्र से कोर्इ मतलब नही उसे तो बस अपने ट्यूशन से मतलब है। फिक्र है बडे बडे बैंच बनाने की एक एक पारी में पचास पचास बच्चो को ट्यूशन देने की। शिक्षा ने आज व्यापार का रूप ले लिया हैं। दादा दादी ज्यादातर घरों में हैं नही। बच्चा अकेलेपन, सन्नाटे, घुटन और उपेक्षा के बीच बडा होता है। बच्चे को ना तो अपने मिलते हैं और ना ही अपनापन। लेकिन उम्र तो अपना फर्ज निभाती हैं बडे होते बच्चो को जब प्यार और किसी के साथ, सहारे की जरूरत पडती हैं तब उस के पास मा बाप चाचा चाची दादा दादी या भार्इ बहन नही होते। होता है अकेलापन पागल कर देने वाली तनहाई या फिर उस के साथ उल्टी सीधी हरकते करने वाले घरेलू नौकर।
ऐसे में आज की युवा पीढी को टूटने से बचाने के लिये सही राह दिखाने के लिये जरूरी है कि हम लोग अपनी नैतिक जिम्मेदारी को समझे और समझे की हमारे बच्चे इतने खूंखार इतने हस्सास क्यो हो रहे हाइना। जरा जरा सी बात पर जान देने और लेने पर क्यो अमादा हो जाते हैं इन की रगो में खून की जगह गरम लावा किसने भर दिया है। इन सवालो के जवाब किसी सेमीनार, पत्र पत्रिकाओ या एनजीओ से हमे नही मिलेंगे। इन सवालो के जवाबो को हमे बच्चो के पास बैठकर उन्हे प्यार दुलार और समय देकर हासिल करने होंगे। वास्तव में घर को बच्चे का पहला स्कूल कहा जाता है। आज वो ही घर बच्चो की अपनी कब्रगाह बनते जा रहे हैं। फसल को हवा पानी खाद दिये बिना बढिया उपज की हमारी उम्मीद सरासर गलत है। बच्चो से हमारा व्यवहार हमारे बुढापे पर भी प्रश्न चिन्ह लगा रहा है। आज पैसा कमाने की भागदौड में जो अपराध हम अपने बच्चो को समय न देकर कर रहे हैं वो हमारे घर परिवार ही नही देश और समाज के लिये बहुत ही घातक सिद्ध हो रहा है।