International Youth ……… युवा शक्ति को सही दिशा और कौशल की जरूरत

International Youth  : हर क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव कर सकता है युवा। उस पर भरोसा करें…

International Youth : ‘युवा शब्द’ सुनते ही मन में एक ऐसी सक्रिय, नव-नवोन्मेषी और गतिशील पीढ़ी की छवि उभरती है जिसमें प्रेरणा, स्फूर्ति, ऊर्जा और कुछ करने की लगन होती है। देश के आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। स्मरणीय है कि युवा पीढ़ी ने बढ़-चढ़ कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था और अपनी जान की परवाह किए बिना अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लिया था। इसलिए देश-निर्माण की बात उठने पर सबका ध्यान युवाओं की ओर ही जाता है। इस समय भारत की जनसंख्या में युवा समुदाय का अनुपात लगभग चौंतीस प्रतिशत है। तुलनात्मक दृष्टि से यह अनुमानित है कि भारत आगामी दशक में चीन से युवतर बना रहेगा। इस तरह भारत के लिए युव जन एक बड़ा अवसर उपलब्ध करा रहे हैं। यह स्थिति देश के लिए अमूल्य संसाधन हो सकती है, बशर्ते युवा वर्ग को प्रशिक्षित किया जाए। टोक्यो ओलम्पिक खेलों में खिलाडिय़ों के ऐतिहासिक प्रदर्शन से इस बात की बखूबी पुष्टि हुई है।

International Youth Day 2021: युवा शक्ति को सही दिशा और कौशल की जरूरत

International Youth Day 2021: युवा शक्ति को सही दिशा और कौशल की जरूरत

यहां यह प्रश्न उठता है कि भारत के स्वतंत्र होने के करीब साढ़े सात दशक बाद भी आज हम कहां खड़े हैं? इस विषय में कुछ सरकारी आंकड़ों को देखना आंखें खोलने वाला होगा। आज औसत जेंडर अनुपात प्रति एक हजार पुरुषों पर 904 महिलाओं का है। महिलाओं की विवाह की औसत आयु बढ़ कर 22.3 वर्ष हो गई है। औसत साक्षरता 73 प्रतिशत है, जिसमें महिलाओं की औसत साक्षरता 64.6 प्रतिशत है। चिंताजनक बात यह है कि जितने लोग आत्महत्या करते हैं, उनमें से लगभग तंैतीस प्रतिशत युवा होते हैं। युवा वर्ग के स्वास्थ्य, उनके लिए संसाधन, प्रशिक्षण की सुविधा, रोजगार की उपलब्धता, नागरिक जीवन में अवसर आदि की स्थिति चिंताजनक है।

सरकार इन मुद्दों को लेकर सक्रिय हो रही है। वर्ष 2014 में राष्ट्रीय युवा नीति बनी थी। ऐसे ही कुशलता और नवाचार की नीति भी 2015 में आई थी। कहना न होगा कि इन नीतियों के आलोक में कार्य की गति बड़ी धीमी है। अजादी के बाद हर आंख के आंसू पोछने की बात कही गई थी। इसके लिए कड़ी मेहनत और अनुशासन का आह्वान भी किया था। विचार करने पर यही लगता है कि जिन सपनों को लेकर आजादी की लड़ाई लड़ी गई और जिन वीर युवाओं की शहादत की देश को आजादी दिलाने में बड़ी भूमिका थी, उनके सपने अब भी अधूरे हैं। हम स्वतंत्र भारत को उन सपनों के सांचे में नहीं ढाल पाए। सामाजिक न्याय, समता और समानता की जगह भेद-भाव, विषमता, मन-मुटाव और अवसरों की असमानता से असंतोष भी है। आज जब देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए संकल्प लिया जा रहा है, तो युवा वर्ग की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

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