NGT ने नरेला, बवाना इलाकों में उद्योगों के खिलाफ की गई कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी
नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने मंगलवार को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) को नरेला एवं बवाना इलाकों में चूक करने वाले उद्योगों को बंद करने की दिशा में की गई कार्रवाई की रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है. ये उद्योग जूते के सोल और प्लास्टिक का सामान बनाते हैं.
एनजीटी प्रमुख न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने डीपीसीसी को इन इकाइयों द्वारा दिए जाने वाले मुआवजे का तीन माह में आकलन करने को कहा है.
अधिकरण ने यह स्पष्ट किया कि जल (प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 और वायु (प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण अधिनियम), 1981 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत मुआवजा वसूलने का अधिकार विशेष रूप से डीपीसीसी के पास है. इसे एसडीएम या नगर निगम के जरिए लागू नहीं किया जा सकता है.
हरित पैनल ने कहा, ‘हालांकि, एसडीएम और नगर निगम नगरपालिका अधिनियम या दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत अपनी वैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र हैं. डीपीसीसी किसी भी एजेंसी की सहायता ले सकती है लेकिन कानून के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी डीपीसीसी पर है.’
इस मामले की सुनवाई के दौरान एनजीटी को सूचित किया गया कि कचरे से बिजली बनाने वाले संयंत्र पर ठोस कचरा फेंका जा रहा है. कचरा फेंकने या जलाने वाली 244 इकाइयों को 50-50 हजार रुपये के पर्यावरण मुआवजे का भुगतान करने को कहा गया है. अधिकरण अब 12 सितंबर को मामले की अगली सुनवाई करेगा.
हरित पैनल ने राष्ट्रीय राजधानी के रहने वाले अरूण कुमार नामक व्यक्ति की अर्जी पर यह सुनवाई की है. कुमार ने ईमेल के जरिए आवेदन भेजकर नरेला और बवाना इलाकों में जूते के सोल और प्लास्टिक के अन्य सामान बनाने वाली कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी.
कुमार की याचिका में कहा गया है कि कंपनियां अपना कचरा इधर-उधर फेंक रही हैं. इससे इलाके के लोगों और पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है.