भारत-पाकिस्तान बॉर्डर से रिपोर्ट-2 .? पंजाब के इन इलाकों में हर किसी की अपनी कहानी है, अपना दर्द है; लेकिन एक बात कॉमन है, वो है नशा
पंजाब की ज्यादातर आबादी ड्रग्स की चपेट में है। खास करके पाकिस्तान से सटे इलाकों में शायद ही कोई परिवार होगा जो इस सफेद पुड़िया के अंधियारे में न डूबा हो। हमने अपनी पहली रिपोर्ट में बताया था कि तमाम सुरक्षा व्यवस्था के बाद भी यहां आसानी से ड्रग मिल जाता है। खुद भास्कर रिपोर्टर पूनम कौशल ने ड्रग खरीद कर हकीकत की पड़ताल की थी। आज उनकी दूसरी रिपोर्ट में पढ़िए कि ड्रग्स कैसे पंजाब के लोगों के सपने छीन रहा है…
हरप्रीत कौर का चेहरा सूख गया है। आंखें डूब गई हैं। पति जगजीत सिंह की तस्वीर पर हाथ फेरते ही उनकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं। 18 अक्टूबर को ड्रग की वजह से उनके पति की मौत हो गई थी। पति की मौत से पहले भी उनकी जिंदगी बहुत आसान नहीं थी, लेकिन अब और भी मुश्किल हो गई हैं। 26 साल की हरप्रीत नहीं जानतीं कि आगे उनका और उनके 4 साल के बेटे का क्या होगा। जब उनकी शादी हुई थी तब जगजीत एक गबरू जवान थे, जो उन्हें बहुत प्यार करते थे, लेकिन फिर उन्हें ड्रग की लत लग गई।
हरप्रीत कहती हैं, “वो 4 साल से नशा कर रहे थे। उन्होंने घर का सब कुछ बेच दिया। गहने, गेहूं, कपड़ा, आटा-चावल कुछ नहीं छोड़ा। नशा बहुत गंदी चीज है, ये सब कुछ बर्बाद कर देता है।”
भारत पाकिस्तान वाघा बॉर्डर के करीब हरदो रतन गांव के जगजीत ने 18 अक्टूबर को गांव के श्मशान में अपने दोस्तों के साथ नशे का इंजेक्शन लगाया। ओवरडोज के कारण वो बेहोश हो गए। मुंह से झाग निकलने लगा। उनके साथ मौजूद लड़के भाग गए। उनके चाचा टहल सिंह को जब पता चला तो वो जगजीत को लेकर अस्पताल दौड़े, लेकिन उनकी जान नहीं बच पाई। जगजीत सिंह इससे पहले भी कई दफा ड्रग के ओवरडोज का शिकार हुए थे। हाल ही में उनके इलाज पर परिवार के 40 हजार खर्च हुए थे।
जगजीत के पिता की बचपन में ही मौत हो गई थी। उनके चाचा टहल सिंह और दादी ने ही उन्हें पाला। जवानी में गांव के लड़कों के साथ उसे ड्रग की लत लग गई। टहल सिंह कहते हैं, “हमने उसे नशा मुक्ति केंद्र में रखा। इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। गांव में आकर फिर से नशा करना शुरू कर दिया।”
इतनी आसानी से मिलता है नशा कि चाहकर भी कोई उसे छोड़ा नहीं पाता है

हरप्रीत कहती हैं, “हमारे पिंड में नशा इतनी आसानी से मिलता है कि कोई छोड़ना भी चाहे तो छोड़ नहीं पाता। जगजीत ने कई बार नशा छोड़ने की कोशिश की। कुछ दिन इससे दूर भी रहा, लेकिन फिर वो घर से बाहर निकलता, उसे इंजेक्शन मिलता और वो फिर शुरू हो जाता।”
जगजीत का बेटा पिता की तस्वीर हाथ में लिए खामोश खड़ा है। शायद उसे अभी ये अहसास भी नहीं है कि उसके सिर से पिता का साया उठ चुका है। पाकिस्तान सीमा से करीब 3 किलोमीटर दूर बसे करीब 1200 की आबादी के हरदो रतन गांव का शायद ही ऐसा कोई घर होगा जो ड्रग्स से प्रभावित ना हो। यहां हर किसी की अपनी अलग कहानी है, अपना अपना अलग दर्द है, लेकिन हर कहानी में एक बात कॉमन है, वो है नशा।
26 साल की संदीप कौर अपने तीन बच्चों और सास के साथ गांव के गुरुद्वारे में रह रही हैं। उनका घर नशे ने छीन लिया है। उनके पति धर्मेंद्र सिंह ने चार साल पहले नशा लेना शुरू किया था। वो गांव के ही हैप्पी (हरप्रीत) नाम के एक युवक के साथ नशा ले रहे थे। ओवरडोज से हैप्पी की मौत हो गई और धर्मेंद्र पर मुकदमा हो गया।
संदीप बताती हैं, “हमारे देवर ने मुकदमे की पैरवी में पैसा खर्च किया और फिर मुझे और मेरे बच्चों को धक्के मारकर घर से निकाल दिया। उनका कहना है कि जो पैसा उन्होंने खर्च किया उसमें घर में मेरा हिस्सा खत्म हो गया।” उनकी सास भी उन्हीं के साथ गुरुद्वारे में रह रही हैं।
संदीप कहती हैं, “नशे ने मेरा सब कुछ छीन लिया है। मुझे नहीं पता कि हम यहां कितने दिन रह पाएंगे। यहां से लोगों ने निकाल दिया तो हम कहां जाएंगे? पति हमेशा नशे में रहता है, मार-पीट करता है। इन बच्चों को भी देखने वाला कोई नहीं है।”

नशे की लत लगी तो पिता ने घर से निकाल दिया
यहीं के रहने वाले गुरसेवक ने 10 साल पहले जब ड्रग्स लेनी शुरू की थी तब वो मुश्किल से 14-15 साल के थे। शुरुआत दोस्तों के साथ नशा लेने से हुई और फिर आसानी से उपलब्ध चिट्टा उनकी नसों में घुल गया। नशे की लत के कारण गुरसेवक को उनके पिता ने घर से निकाल दिया। अब उनके चाचा-चाची और दादा-दादी उनका ध्यान रख रहे हैं। वो एक तरह से घर में नजरबंद हैं। उनकी मोटसाइकिल को चेन से बांध दिया गया है। वो कुर्सी पर बैठे हैं और बुजुर्ग दादा पहरा दे रहे हैं। उनकी दादी गुहार लगाते हुए कहती हैं, “कोई हमारे लाल को इस जाल से निकाल दे।”
गुरसेवक कहते हैं, “नशे की लत पूरी करने के लिए मैंने हर काम किया। घर में चोरी की, बाहर चोरी की। जो मिला वो बेच दिया। आटा-चावल तक नहीं छोड़ा। चाची के सूट-सलवार तक बेच दिए। काम था नहीं, ऐसे ही डोलते फिरते हुए गलत लाइन में पड़ गए। काम धंधे से लगे होते तो इस नशे कि गिरफ्त से बच गए होते।”
उनकी बांह पर अब हर जगह इंजेक्शन के निशान हैं। वे कहते हैं, “बहुत बार कोशिश की, लेकिन ये नशा छूटता नहीं। नशा ना लो तो पूरा शरीर टूटता है। जब नसों का दर्द बर्दाश्त से बाहर हो जाता है तो नशा लेना ही पड़ता है। नशे की कोई कीमत नहीं है। कभी एक ग्राम 2 हजार का मिलता है तो कभी 5 हजार का। पैसे ना हों तो कुछ भी करके पैसा जुगाड़ते हैं। ठग्गियां-चोरियां करते हैं। जब हम नशा करते हैं तो दिल बहुत दुखता है, लेकिन हम इतने मजबूर हैं कि इसे छोड़ नहीं पाते।”

गुरसेवक की दादी कहती हैं, “मेरे पुत्तर का नशा छूट गया तो मैं चाय का लंगर लगवाऊगी।” दादी बात पूरी भी नहीं कर पातीं की गुरसेवक कहते हैं, “अगर ये नशा छूट गया तो मैं पकौड़ों का लंगर लगवाऊंगा।”
जो भी मेहनत करके कमाता हूं, नशे में खर्च हो जाता है
गांव के चरणजीत सिंह ने भी नशे की लत पूरी करने के लिए घर के सामान बेचे और इधर-उधर चोरियां की। अब उन्होंने चिट्टा लेना छोड़ दिया है। अब वो डोडा लेते हैं और किसी तरह गुजारा करने की कोशिश कर रहे हैं। ड्रग की वजह से 40 की उम्र पार कर चुके चरणजीत की शादी नहीं हो पाई है। वे कहते हैं, “अब शरीर डोडे पर सेट हो गया है। डोडा सस्ता पड़ता है और किसी तरह काम चल जाता है। जो एक बार नशे के चक्कर में फंसता है, फिर पूरी तरह इससे निकल नहीं पाता है।”
बलविंदर सिंह (बदला हुआ नाम) ने हाल ही में चिट्टा लेना शुरू किया है। उन्होंने सुबह 10 बजे इंजेक्शन लगाया था और शाम होने तक उन पर नशा हावी था। हाल ही में दो बेटियों की शादी करने वाले 50 साल के बलविंदर कहते हैं, “हमने भी देखा-देखी इंजेक्शन लगाना शुरू कर दिया। अब लत लग गई है। जो भी मेहनत मजदूरी करता हूं सभी पैसा इसमें लग जाता है।”

पेशे से ड्राइवर प्रदीप सिंह एक जवान बेटे के पिता हैं। उनका बेटा भर्ती की तैयारी कर रहा है और अभी तक नशे से दूर है। वे कहते हैं, “बेटे को नशे से बचाना ही अब मेरी जिंदगी का मकसद हो गया है। यहां मां-बाप की आंखों के सामने बच्चे नशे से मर रहे हैं। हम सब लोग डिप्रेशन में हैं। हमारे दिमाग सुन्न हो गए हैं। हम कुछ भी नहीं सोच पा रहे हैं। हमारी नस्ल हमारी आंखों के सामने खत्म हो रही है। मैं नहीं जानता मैं कब तक अपने बेटे को इस नशे से बचा पाऊंगा।”
हरदो रतन और पंजाब के हजारों गांव धीरे-धीरे नशे में खत्म हो रहे हैं। यहां लोगों के चेहरों पर एक अजीब उदासी दिखती है। सब जानते हैं कि बहुत बुरा हो रहा है। नशा यहां चुनावों में भी एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन इसे रोकने की कोई संजीदा कोशिश नहीं हो रही है। मन में सवाल कौंधता है कि किसी को इसकी परवाह क्यों नहीं है। जवाब एक बुजुर्ग की रूखी, बेबस और निराश आवाज में मिलता है। वो कहते हैं, “सबको सब पता है। बस किसी को परवाह नहीं। जिन्हें नशा रोकना था, वो ही नशा बांट रहे हैं। सब इसमें शामिल हैं।”
