सफेद झूठ है चुनावी राज्यों में बेरोजगारी घटने का दावा…

अकेले UP में 16.13 लाख की जॉब छिनी, हताश युवाओं ने नौकरी मांगनी बंद की……

चुनावी राज्यों में सियासी सर्कस की शुरुआत हो चुकी है। सत्ताधारी पार्टियों के नेता सीना ठोंककर बेरोजगारी कम करने का दावा कर रहे हैं। इन राज्यों की सरकारें CMIE की रिपोर्ट का हवाला देकर बेरोजगारी कम करने की बात कह रही है, लेकिन ये सच नहीं है। आंकड़ों के खेल में उलझे बिना उसी रिपोर्ट के जरिए आपको बताते हैं कि इन चुनावी राज्यों में बेरोजगारी की स्थिति क्या है? साथ ही यह भी जानिए कि इन राज्य की सरकारों के दावे कैसे झूठे हैं?

जानिए रोजगार पर सरकारी दावे की सच्चाई क्या है?
रोजगार पर हमने सरकारी दावों की पड़ताल की तो पता चला कि सरकार और पार्टियां आम लोगों को आंकड़ों के जाल में उलझा रही हैं। बीते 5 सालों में 4 चुनावी राज्यों (यूपी, पंजाब, गोवा और उत्तराखंड) में 25.61 लाख लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। अकेले यूपी में 16.13 लाख लोगों की नौकरी गई, फिर भी आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले पांच साल में बेरोजगारी दर 8% से घटकर 4.83% रह गई है।

दरअसल, आंकड़ों की इस जादूगरी को समझने के लिए हमें सबसे पहले बेरोजगारी को समझना होगा। बेरोजगार वे लोग कहलाते हैं, जो नौकरी मांगने के लिए बाजार में यानी बाहर निकलते हैं, लेकिन नौकरी नहीं मिलती है। अंग्रेजी इसे में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन यानी (LFP) कहते हैं। मतलब यह कि अगर आप काम करने योग्य हैं, लेकिन नौकरी मांगने नहीं जाते तो आपकी गिनती बेरोजगारों में नहीं होगी।

नौकरी योग्य होने पर भी युवा नौकरी क्यों नहीं मांग रहे हैं?
बस यही वो पेंच है जिसके बूते सरकारें बेरोजगारी घटने का दावा कर रही हैं। सच यह कि नौकरी मांगने वालों की संख्या कम होने की वजह से बेरोजगारी दर कम नजर आ रही है। अब सवाल यह कि नौकरी करने के योग्य होने के बावजूद लोग नौकरियां मांग क्यों नहीं रहे हैं? इसका जवाब है कि नौजवान हताश और निराश हैं। वो उम्मीद खो चुके हैं कि मांगने पर उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिलेगी।

 

UP में 5 साल में नौकरी से हाथ धो बैठे 16.13 लाख नौजवान
दिसंबर 2016 में UP में 5.75 करोड़ लोग नौकरी कर रहे थे। जबकि दिसंबर 2021 के डेटा के मुताबिक में 5.59 करोड़ लोग ही नौकरी कर रहे हैं। इसका मतलब है कि पांच साल में 16.13 लाख नौकरी करने वालों की संख्या घटी है। आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि इतने लोगों की नौकरी गई फिर भी बेरोजगारी दर 8% से घटकर 4.83% हो गई है।

इसकी वजह यह है कि दिसंबर 2016 में 6.25 करोड़ लोग नौकरी खोज रहे थे। जबकि दिसंबर 2021 में 5.88 करोड़ लोग ही नौकरी खोज रहे थे। करीब 37 लाख लोग हताश होकर घर में बैठ गए या फिर इनका नौकरी से मोह भंग हो गया। दूसरी लहर के दौरान बड़ी संख्या में नौकरी खोने के बाद UP के लोग वापस अपने घर लौटे, जिनमें बड़ी तादाद घरों में ही रह गई।

उत्तराखंड में 5 साल में नौकरी से हाथ धो बैठे 4.41 लाख युवा
दिसंबर 2016 में उत्तराखंड में 32.23 लाख लोग नौकरी कर रहे थे। जबकि दिसंबर 2021 के डेटा के मुताबिक में 27.82 लाख लोग ही नौकरी कर रहे हैं। इसका मतलब है कि पांच साल में 4.41 लाख नौकरी करने वालों की संख्या घटी है। जिससे यहां बेरोजगारी दर 2.30% से बढ़कर 4.08% हो गई है।

इसकी वजह यह है कि दिसंबर 2016 में नौकरी खोजने वालों की संख्या 32.98 लाख थी। जबकि दिसंबर 2021 में 29 लाख लोग ही नौकरी खोज रहे थे। करीब 3.98 लाख लोग हताश होकर घर में बैठ गए और इनका नौकरी से मोह भंग हो गया। उत्तराखंड के आमदनी का मुख्य जरिया पर्यटन है। कोरोना की वजह से सबकुछ बंद हो गया, ऐसे में बड़ी संख्या में यहां टूर एंड ट्रेवल्स, होटल, रेस्टोरेंट में लोगों की नौकरी गई।

पंजाब में 5 साल में नौकरी से हाथ धो बैठे 3.21 लाख युवा

दिसंबर 2016 में पंजाब में 98.37 लाख लोग नौकरी कर रहे थे। जबकि दिसंबर 2021 में 95.16 लाख लोग ही नौकरी कर रहे हैं। इसका मतलब है कि पांच साल में 3.21 लाख नौकरी करने वालों की संख्या घटी है। यही वजह है कि बेरोजगारी दर 6.13% से बढ़कर 7.85% हो गई है।

यहां दिसंबर 2016 में नौकरी खोजने वालों की संख्या 1.04 करोड़ थी। जबकि दिसंबर 2021 में 1.03 करोड़ लोग ही नौकरी खोज रहे थे। करीब 1 लाख लोग हताश होकर घर में बैठ गए और इनका नौकरी से मोह भंग हो गया। पंजाब में नौकरी को लेकर युवाओं के ट्रेंड में ज्यादा बदलाव नहीं दिखा। 3 लाख नौकरी की कमी हुई, लेकिन पांच साल में महज 1 लाख लोगों का ही पंजाब में नौकरी से मोह भंग हुआ।

 

गोवा में 5 साल में नौकरी से हाथ धो बैठे 1.86 लाख युवा
दिसंबर 2016 में गोवा में 6.06 लाख लोग नौकरी कर रहे थे। जबकि दिसंबर 2021 में 4.20 लाख लोग ही नौकरी कर रहे हैं। इसका मतलब है कि पांच साल में 1.86 लाख नौकरी करने वालों की संख्या घटी है। यही वजह है कि बेरोजगारी दर 2.30% से बढ़कर 4.08% हो गई है।

गोवा में दिसंबर 2016 में नौकरी खोजने वालों की संख्या 6.90 लाख थी। जबकि दिसंबर 2021 में 4.83 लाख लोग ही नौकरी खोज रहे थे। करीब 2.06 लाख लोग हताश होकर घर में बैठ गए और इनका नौकरी से मोह भंग हो गया। गोवा में पर्यटन 40% लोगों के रोजगार का मुख्य जरिया है। कोरोना की वजह से टूर एंड ट्रैवल्स, होटल, रेस्टोरेंट में काफी लोगों की नौकरी गई।

2016 दिसंबर में यहां हर दो में से एक लोगों के पास नौकरी थी। 5 साल में 1.86 लाख लोगों की नौकरी कम हुई। ऐसे में दिसंबर 2021 में हर तीन में से एक लोगों के पास ही नौकरी रही।

चुनावी राज्यों में प्रति व्यक्ति आय के मामले में सबसे पीछे गोवा-यूपी
किसी राज्य या देश की कुल आय को जब वहां रहने वाले कुल लोगों से डिवाइड किया जाता है, तो उससे राज्य के लोगों की औसत प्रति व्यक्ति आय का पता चलता है। बीते 5 सालों में देश में औसत प्रति व्यक्ति आय 2.7% की दर से बढ़ी है। 5 चुनावी राज्यों में उत्तराखंड प्रति व्यक्ति आय वृद्धि के मामले में सबसे मजबूत स्थिति में है।

उत्तराखंड में बीते 5 सालों में प्रति व्यक्ति आय की दर राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा 2.8% की तेजी से बढ़ी है। इसके अलावा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और गोवा में प्रति व्यक्ति

आय में राष्ट्रीय औसत से भी कम की दर से वृद्धि हुई है। गोवा में 5 सालों में प्रति व्यक्ति आय में बेतहाशा -0.1% की दर से कमी हुई है।

नोट- CMIE की रिपोर्ट में चुनावी राज्य मणिपुर के बेरोजगारी दर का डेटा नहीं है। यही वजह है कि हमने यहां सिर्फ 4 राज्यों में बेरोजगारी दर के आंकड़ों पर बात की है।

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