सेक्स पॉवर बढ़ाने वाली वियाग्रा से लेकर जान बचाने वाली पेनिसिलिन तक; एक्सिडेंटली ही मिली थीं ये 5 दवाएं

क्रिस्टोफर कोलंबस सोना और मसालों के लिए एशिया की खोज में घर से निकला था, लेकिन उसने खोज लिया अमेरिका। इसी तरह दुनिया भर में कई दवाओं की खोज भी गलती से या एक्सिडेंटली हुई है। साइंटिस्ट किसी बीमारी की दवा पर रिसर्च कर रहे थे, लेकिन उन्होंने बना ली किसी दूसरी बीमारी की दवा।

डेनमार्क में साइंटिस्ट्स की एक टीम गर्भवती महिलाओं को मलेरिया से बचाने के लिए एक दवा बनाने पर काम कर रही थी। इस दौरान उन्होंने पाया कि मलेरिया के पैरासाइट से निकलने वाला प्रोटीन कैंसर सेल को मार सकता है। इसके बाद ही दुनिया में कैंसर जैसी बीमारी के इलाज को लेकर एक उम्मीद की किरण दिखाई देने लगी।

बिल्कुल इसी तर्ज पर दुनियाभर में सेक्स पॉवर बढ़ाने वाली वियाग्रा समेत 5 दवाओं की खोज एक्सिडेंटली हुई है। पढ़िए इन दवाओं के बनने के दिलचस्प किस्से…

सेक्स पॉवर बढ़ाने वाली दवा वियाग्रा बनने की कहानी
साल 1918 से पहले सेक्स पॉवर बढ़ाने के लिए तरह-तरह के नुस्खे और उपाय अपनाए जाते थे। कोई जड़ी-बूटी से ताकत पाना चाहता था, तो कोई बाघ का मांस खाता था। 1918 में एक्सिडेंटली वियाग्रा की खोज हो गई। इसका किस्सा भी बड़ा रोचक है।

लैब में दिल की बीमारी की दवा खोजने के दौरान एक्सिडेंटली वियाग्रा की खोज हुई थी।
लैब में दिल की बीमारी की दवा खोजने के दौरान एक्सिडेंटली वियाग्रा की खोज हुई थी।

दरअसल, 1990 में अमेरिका के वैज्ञानिक दिल की बीमारी की दवा पर रिसर्च कर रहे थे। वैज्ञानिकों ने दवा बनाने के बाद टेस्टिंग के तौर पर इसे कुछ पुरुषों को खिलाया। इस दवा को खाने वाले लोगों ने महसूस किया कि उनके शरीर की नसों में खून का फ्लो काफी तेजी से हो रहा है। इसकी वजह से उन्होंने अपने गुप्तांग की नसों में भी खिंचाव महसूस किया।

इसके बाद वैज्ञानिकों ने एक बार फिर इस दवा पर रिसर्च करने का मन बनाया। बाद में यह तय हुआ कि वियाग्रा को नपुंसकता दूर करने वाली दवा के तौर पर ही बेचा जाएगा। इससे पहले ऐसी कोई दवा बाजार में नहीं थी, इसलिए फाइजर कंपनी की इस दवा ने बाजार में आते ही तहलका मचा दिया।

बैक्टीरिया मारने वाली दवा पेनिसिलिन की कहानी
1918 में स्पेनिश फ्लू दुनिया के कई देशों में फैला था। इसी बीमारी से लोगों को बचाने के लिए साइंटिस्ट एलेक्जेंडर फ्लेमिंग फोड़े और गले में खराश सही करने वाली दवा की खोज कर रहे थे। इस दवा की खोज के दौरान गलती से उन्होंने बैक्टीरिया मारने वाली दवा पेनिसिलिन खोज ली।

पेनिसिलिन दवा बनाने वाले एलेक्जेंडर फ्लेमिंग को बाद में नोबेल पुरस्कार मिला था।
पेनिसिलिन दवा बनाने वाले एलेक्जेंडर फ्लेमिंग को बाद में नोबेल पुरस्कार मिला था।

एलेक्जेंडर ने एक बार अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया था कि वह कुछ दिनों के लिए छुट्टी पर जा रहे थे और लैब की खिड़की खुली रह गई थी। छुट्टी से लौटने पर उन्होंने देखा कि खिड़की खुली रहने की वजह से एक्सपेरिमेंटल प्लेट पर गंदगी जमी है। साथ ही उससे एक प्रकार का जूस निकल रहा है।

यह जूस या मोल्ड बैक्टीरिया को मार रहा था। इस तरह एंटीबायोटिक दवा पेनिसिलिन की खोज हुई। बाद में एलेक्जेंडर को नोबेल पुरस्कार भी मिला था। अचानक से हुई खोज के लिए इसे जादुई दवा भी कहते हैं।

गर्भ निरोधक दवा के बनने की कहानी
1950 के दौर में इस दवा की खोज भी बेहद दिलचस्प तरीके से हुई थी। दरअसल, लोगों को इंफेक्शन से बचाने के लिए एक दवा की खोज हो रही थी। लैब में साइंटिस्ट इंफेक्शन की दवा पर रिसर्च कर रहे थे। इसी दौरान लैब में एक ऐसी दवा खोज ली गई, जो महिलाओं की माहवारी पर असर कर सकता था। दवा को बनाने के दौरान बीच में ही रिसर्चर को लगा कि उन्होंने एक ऐसे दवा की खोज कर ली है, जिसका इस्तेमाल गर्भ निरोधक के तौर पर किया जा सकता है।

गर्भ निरोधक की खोज इंफेक्शन रोकने की दवा बनाने के दौरान हुई थी। (सांकेतिक तस्वीर)
गर्भ निरोधक की खोज इंफेक्शन रोकने की दवा बनाने के दौरान हुई थी। (सांकेतिक तस्वीर)

दरअसल, रिसर्च में सामने आया कि इस दवा को खाने के बाद महिला किसी पुरुष से संबंध बनाती है तो इससे गर्भ नहीं ठहरता है। इसकी वजह है कि दवा खाने के बाद शुक्राणु और अंडाणु के आपस में मिलने के बाद फर्टिलिटी की प्रोसेस नहीं होती है। ऐसे में महिलाओं की माहवारी नहीं रूकती है। आईयूडी उपकरण और कंडोम वगैरह नहीं होने की वजह से 1950 के दौर में गर्भ निरोधक गोलियां खूब बिकीं।

बेहोशी की दवा एनेस्थीसिया बनने की कहानी
काफी पहले सर्जरी से पहले बेहोश करने के लिए मरीजों के सिर पर जोर से लकड़ी मारा जाता था। इसमें कई बार मरीजों की मौत हो जाती थी। बाद में किसी सर्जरी या ऑपरेशन से पहले मरीजों को बेहोश करने के लिए जिस बेस्ट दवा की खोज हुई उसका नाम एनेस्थीसिया है। इस दवा के बनने की कहानी भी काफी मजेदार है…

एनेस्थीसिया दवा की खोज होरेस वेल्स ने 1844 में की है। एक पार्टी में वेल्स ने देखा कि एक व्यक्ति किसी गैस के प्रभाव में आकर अपने पैर को धारदार हथियार से घायल कर रहा है। उसके पैर से खून निकल रहा है और वह बार-बार अपने पैर के जख्म को बढ़ा रहा है।

वैज्ञानिक होरेस वेल्स के दिमाग में एक पार्टी के दौरान एनेस्थीसिया दवा बनाने का ख्याल आया।
वैज्ञानिक होरेस वेल्स के दिमाग में एक पार्टी के दौरान एनेस्थीसिया दवा बनाने का ख्याल आया।

बाद में होरेस वेल्स को उस शख्स ने कहा कि उस वक्स उस केमिकल गैस की वजह से उसे जरा भी दर्द नहीं हो रहा था। इसके बाद नाइट्रस ऑक्साइड नाम की इसी गैस की मदद से होरेस ने एनेस्थीसिया दवा बना दी। कुछ समय बाद WHO ने भी इस दवा को एसेंशियल मेडिसिन का दर्जा दिया।

डिप्रेशन खत्म करने वाली दवा आई प्रोनियाजिद के बनने की कहानी
दुनिया भर में डिप्रेशन के मरीजों के लिए इस्तेमाल होने वाली दवा आईप्रोनियाजिद की खोज भी एक्सिडेंटली ही हुई है। दरअसल, 1951 में टीबी बीमारी के इलाज के लिए एक साइंटिस्ट खोज कर रहे थे। वैज्ञानिकों ने जिस दवा को तैयार किया उसे खाने वाले लोगों में अजीबोगरीब बिहेवियर देखा गया।

दवा को खाने वाले हायपर एक्टिव हो जा रहे थे। ऐसे में अपने डॉक्टरों ने अपने रिसर्च पर एक बार फिर से विचार करने का फैसला किया। उन्होंने पाया कि वह एक ऐसी दवा बना चुके हैं जो डिप्रेशन से निकालने में काफी मददगार साबित होती है।

लैब में वैज्ञानिकों को कई कारगर नई दवाएं एक्सीडेंटली ही मिली हैं।
लैब में वैज्ञानिकों को कई कारगर नई दवाएं एक्सीडेंटली ही मिली हैं।

इस दवा के खाने से सेरोटोनिन हार्मन ज्यादा मात्रा में बाहर आता है, जिससे लोग खुशी महसूस कर पाते हैं। इस तरह साइंटिस्ट्स के हाथ एक ऐसी दवा लगी जो शरीर में हॉर्मोन का कम या ज्यादा फ्लो करके इंसान को डिप्रेशन से बाहर निकाल सकती है।

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