लखनऊ की सभी सीटों पर BJP ने कैसे तय किए उम्मीदवार? जानें टिकट बंटवारे की पूरी कहानी

लखनऊ कैंट के कई दावेदार थे. रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे मयंक जोशी के लिए टिकट चाहती थीं….

UP Election 2022: एक कहावत है ज़्यादा जोगी मठ उजाड़…लखनऊ में बीजेपी के टिकटों को लेकर पार्टी में कुछ यही हाल रहा. पार्टी के बड़े नेताओं में उम्मीदवार तय करने को लेकर इतना मंथन हुआ. इतनी बैठकें हुईं कि एक रिकॉर्ड ही बन गया. लखनऊ के लेकर इतनी मारामारी इसी लिए भी होती है क्योंकि यहॉं से चुनाव लड़ना विधायक बनने की गारंटी होती है. अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने से ही लखनऊ (Lucknow) बीजेपी का गढ़ रहा है. देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह यहां से लोकसभा के सांसद हैं.

लखनऊ में विधानसभा की 9 सीटें है. पिछले चुनाव में बीजेपी ने 8 सीटें जीत ली थीं जबकि मोहनलालगंज सीट समाजवादी पार्टी के हिस्से में चली गई थी. इस बार तीन सीटों को लेकर बीजेपी कैंप में खूब लाबिंग चली. लखनऊ कैंट के कई दावेदार थे. प्रयागराज से लोकसभा की सांसद रीता बहुगुणा जोशी (Rita Bahuguna Joshi) अपने बेटे मयंक जोशी के लिए टिकट चाहती थीं. यहां से वे खुद पहले कांग्रेस से और बाद में बीजेपी (BJP) से विधायक चुनी गई थीं. उन्होंने तो बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा (JP Nadda) से मिल कर भी अपने बेटे की पैरवी की पर बात नहीं बनी. उन्होंने तो सांसद से इस्तीफ़ा देने का भी मन बना लिया था. कैंट से ही राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) के समर्थक और बीजेपी के महानगर अध्यक्ष मुकेश शर्मा भी दावेदार थे. लेकिन बीजेपी के ब्राह्मण चेहरा और योगी सरकार में मंत्री ब्रजेश पाठक को यहां से पार्टी ने उम्मीदवार बना दिया. लखनऊ कैंट बीजेपी के लिए सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती है.

बीजेपी में तय हुआ कि लखनऊ में टिकटों का बंटवारा रक्षामंत्री राजनाथ सिंह से सलाह के बाद होगा. इसीलिए सुनील बंसल, स्वतंत्र देव सिंह, धर्मेंद्र प्रधान, अमित शाह,ली एस संतोष और जेपी नड्डा के बीच कई दौर की बैठक और बातचीत हुई. सबसे ज़्यादा मामला तो सरोजनी नगर सीट पर फंसा. यहां से पति और पत्नी ही दावेदार थे. योगी सरकार में मंत्री स्वाति सिंह (Swati Singh) और बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष दया शंकर सिंह अपने अपने लिए टिकट मांग रहे थे. स्वाति की पैरवी करने वाला कोई नहीं था.

दस दिनों पहले एक ऑडियो के वायरल होने के बाद से तो उनका टिकट कटना पक्का हो गया था. इस सीट से दयाशंकर का नाम लगभग तय हो चुका था. यूपी के मंत्री और योगी आदित्य नाथ  समर्थक महेन्द्र सिंह भी यहां से चुनाव लड़ना चाहते थे. दयाशंकर को अमित शाह (Amit Shah) से लेकर धर्मेंद्र प्रधान और स्वतंत्र देव सिंह तक का आशीर्वाद मिला था. पर बीजेपी के एक बड़े नेता दयाशंकर के नाम पर तैयार नहीं हुए. इसी बीच एक लॉबी ने ईडी के संयुक्त निदेशक रहे राजेश्वर सिंह (Rajeshwar Singh) का नाम आगे बढ़ा दिया. उन्हें तब तक VRS मिल चुका था. सुल्तानपुर ज़िले से भी उनके चुनाव लड़ने की चर्चा थी. लेकिन पति पत्नी के झगड़े में तय हुआ कि राजेश्वर सिंह को ही टिकट दे दिया जाए. इस नाम पर राजनाथ सिंह से लेकर अमित शाह तक की सहमति मिल गई.

योगी सरकार में ही मंत्री आशुतोष टंडन उर्फ़ गोपाल जी को पहले ब्रजेश पाठक वाली सीट से चुनाव लड़ाने पर फ़ैसला हुआ. वे लखनऊ पूर्व से विधायक चुने गए थे और उनकी जगह पाठक को भेजने पर फ़ैसला हो चुका था. कैंट की तरह ये सीट भी बीजेपी के लिए बड़ी सुरक्षित मानी जाती है. लेकिन गोपाल जी ने आख़िरी मौक़े पर इमोशनल कार्ड खेल दिया. उन्होंने पार्टी नेतृत्व से कहा मुझे पूरब से ही लड़ने दिया जाए, मैं आगे चुनाव नहीं लड़ूंगा. वे लखनऊ से सांसद रहे बीजेपी के सीनियर लीडर लाल जी टंडन के बेटे हैं. आख़िरकार टंडन की बात मान ली गई. पाठक कैंट भेज दिए गए और टंडन के उनकी मनचाही सीट मिल गई.

बख्शी का तालाब से सीटिंग विधायक अविनाश त्रिवेदी का टिकट काट कर योगेश शुक्ला को दे दिया गया. वे पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं और राजनाथ सिंह के कैंप के हैं. बताया जाता है कि पार्टी के सर्वे में अविनाश के खिलाफ रिपोर्ट दी गई थी. लखनऊ मध्य से पिछली बार ब्रजेश पाठक चुनाव जीते थे तो इस बार बीजेपी ने रजनीश गुप्ता को टिकट दे दिया. पार्टी ने लखनऊ उत्तर से वर्तमान विधायक नीरज वोरा का टिकट काटने का मन बनाया था लेकिन बीजेपी के सीनियर लीडर श्याम जाजू के कारण वे बच गए. जाजू और वोरा रिश्ते में समधि हैं

रीता बहुगुणा जोशी के बेटे को बीजेपी ने इसीलिए टिकट नहीं दिया क्योंकि वे सांसद के बेटे हैं. पर मोहनलालगंज से सासंद और मोदी सरकार में मंत्री कौशल किशोर की पत्नी जया को मलिहाबाद से और उनके साले अमर्ष कुमार को मोहनलालगंज से टिकट मिल गया.

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