यूपी की जेलों में 1 लाख कैदी.. 26% ही दोषी:बेगुनाह विष्णु-राजकुमार 20 साल जेल में विचाराधीन रहे, जानिए…ऐसे केसों के गुनहगार कौन?

कोर्ट से बेगुनाही मिलने के बाद भी विष्णु लोगों की नजरों में गुनहगार है। दुष्कर्म के आरोप में 20 साल जेल में रहने के बाद वो घर पहुंचा तो दुनिया बदल चुकी थी। जिस मां को छोड़कर उसे जेल जाना पड़ा था। इलाज नहीं मिलने से वो दम तोड़ चुकी थी। बहन की शादी नहीं हो सकी। क्योंकि आस-पास के गांव में कोई उनसे संबंध नहीं रखना चाहता था। बहुत कुछ विष्णु से छूट चुका था। लेकिन कोर्ट के सांत्वना के कुछ शब्दों के ज्यादा उसके पास कुछ नहीं था।

ये कहानी सिर्फ विष्णु की नहीं है। जेल में ट्रायल के दौरान बंद सैकड़ों कैदियों की है। फिर वो महुली गांव के राजकुमार हलवाई के 33 साल जेल में रहने के बाद बरी होने का मामला हो। या बलिया के रेवती गांव के रहने वाले मुकेश तिवारी के 14 साल के लंबे ट्रायल के बाद बेगुनाह साबित होने का मामला।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ‘जेल स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2020’ की रिपोर्ट मुताबिक देश में सबसे अधिक यूपी की जेलों में 1.06 लाख कैदी बंद हैं। इनमें महज 26607 (26%) कैदी ही सजायाफ्ता है। शेष विचाराधीन हैं। इन विचाराधीन कैदियों में बड़ी संख्या उनकी है, जो सालों से कैद में रहने के बाद निर्दोष करार दे दिए जाते हैं।

अपराधशास्त्र में पीएचडी करने वाले छात्रों से लेकर इस विषय की पढ़ाई कराने वाले प्रोफेसरों तक ने कई बार ये मुद्दा उठाया है। विक्टिमोलॉजी और थ्योरी ऑफ लेवलिंग के बारे में सरकार को बताया लेकिन आज तक इस विषय पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

देश में 76% से ज्यादा कैदी बिना अपराध सिद्ध् हुए जेलों में

कानून का एक सिद्धांत है कि सौ अपराधी भले ही छूट जाएं। लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। लेकिन दूसरे सिद्धांतों की तरह यह सिद्धांत भी धरातल पर उतना खरा नहीं उतर सका। क्योंकि देश की जेलों में 76% से ज्यादा कैदी बिना अपराध सिद्ध हुए ही जेलों में बंद हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के वार्षिक ‘जेल स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2020 की ताजी रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 1.06 लाख कैदी बंद हैं। कैदियों की यह संख्या देश की जेलों में बंद कुल कैदियों का 22.1% है। इसके बाद बिहार में 51849 और मध्य प्रदेश 45,456 हैं।

यूपी की बात करें तो यहां के कैदियों में 26607 (23.9%) कैदी ही ऐसे हैं। जिनका अपराध सिद्ध होने के बाद उन्हें अदालत से सजा सुनाई गई है। शेष 79393 कैदी विचाराधीन हैं। यह रिपोर्ट बताती हैं कि देश के कुल कैदियों में दो तिहाई से ज्यादा बिना दोष सिद्ध हुए ही जेलों में बंद हैं। इन पर न्यायिक प्रक्रिया चल रही है। न्यायालय की भाषा में इन्हें विचाराधीन कैदी कहा जाता है। विचाराधीन यानी वे कैदी जो खुद के निर्दोष या दोषी साबित होने के इंतजार में जेल में बंद हैं।

48.8% कैदी युवा, इनमें 96% पुरुष हैं…
विचाराधीन कैदियों के मामले में उत्तर प्रदेश ने सबसे अधिक कैदी 79393 को जेल में रखा हुआ था। उसके बाद बिहार ने 44113 और मध्य प्रदेश ने 31,695 विचाराधीन कैदियों को सजा सुनाए जाने से पहले जेलों में बंद रखा। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार अधिकांश विचाराधीन कैदी 18-30 साल (48.8%) आयु वर्ग में थे। उसके बाद 30-50 साल (40.6%) और बाकी 10.6% 50 साल या उससे अधिक आयु के थे। इसमें 96% पुरुष, 3.98% महिलाएं और 0.01% ट्रांसजेंडर थे।
जेल मैन्युअल के मानकों में बदहाल हैं यूपी की जेलें
यूपी की जेलों में न सिर्फ ज्यादा कैदी बंद हैं। बल्कि यह जेल मैन्युअल के कायदों पर भी खरी नहीं हैं। अपराध शास्त्र के प्रोफेसर राजू टंडन बताते हैं कि मॉडल जेल मैन्युअल 2016 के मुताबिक प्रत्येक 200 कैदियों के लिए जेल में एक सुधारक और प्रत्येक 500 कैदियों पर एक मनोवैज्ञानिक अधिकारी होना चाहिए। लेकिन हालात यह हैं कि 1617 कैदियों पर एक कल्याण अधिकारी और 16503 कैदियों पर एक मनोवैज्ञानिक ही जेलों में पदस्थ हैं। यूपी की जेलों के हालात तो और भी खराब हैं। यहां 50649 कैदी पर एक ही मनोवैज्ञानिक है।

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