अगर हमारे काम अच्छे हैं तो इसका लाभ आने वाली पीढ़ियों को जरूर मिलता है
दैत्यराज बलि की कहानी है। राजा बलि को अपनी दानशीलता पर अहंकार हो गया था। एक दिन भगवान विष्णु वामन अवतार में राजा बलि के द्वार पर भिक्षा मांगने के लिए पहुंचे थे।
भगवान वामन ने विचार किया कि राजा बलि का अहंकार दूर करना चाहिए। इसलिए उन्होंने राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। अहंकारी बलि ने वामन देव को तीन पग भूमि दान में देने का संकल्प ले लिया। इसके बाद जब दो पग में राजा बलि का सब कुछ खत्म हो गया तो वामन देव ने तीसरा पग बलि के माथे पर रखकर उसे पाताल लोक में बंदी बना दिया। वामन अवतार ने ऐसा देवताओं के हित में किया था।
दैत्यराज बलि के दादा थे प्रहलाद। राक्षस हिरण्यकश्यपु के यहां प्रहलाद का जन्म हुआ था। प्रहलाद बचपन से ही विष्णु जी के भक्त थे। इस बात से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यपु ने कई बार प्रहलाद को मारने की कोशिश की। हर बार भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद की रक्षा की। विष्णु जी ने प्रहलाद की भक्ति से प्रसन्न होकर नृसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यपु का वध किया था।
जब प्रहलाद को अपने पोते राजा बलि के बंदी होने की जानकारी मिली तो दादा प्रहलाद विष्णु जी के पास पहुंच गए। भगवान विष्णु ने प्रहलाद को आते हुए देखा तो उन्होंने सोचा कि ये मेरा भक्त है और मैंने वामन रूप में देवताओं के भले के लिए थोड़ा छल करते हुए इसके पोते बलि को पराजित किया है।
प्रहलाद ने विष्णु जी से कहा, ‘आपने नृसिंह अवतार के समय मुझ पर बड़ी कृपा की थी। मेरा पोता बलि तो और ज्यादा भाग्यशाली है, आप स्वयं उसके द्वार पर मांगने पहुंचे। मेरा आपसे निवेदन है कि इस पर कृपा करें और इसे मुक्त कर दें।’
अपने भक्त प्रहलाद की बात विष्णु जी को माननी ही थी। विष्णु जी ने बलि को मुक्त किया और उसे पाताल का राजा बना दिया।
सीख – अगर हमारे काम अच्छे हैं तो अच्छे कामों का लाभ हमारे परिवार को और आने वाली पीढ़ियों को भी मिल सकता है। इस कथा में दादा प्रहलाद अपने पोते बलि की रक्षा कर सके, क्योंकि प्रहलाद के कर्म अच्छे थे। हम मनुष्य हैं और हमारा परिवार कई पीढ़ियों तक चलता है, वर्तमान में किए गए काम का अच्छा-बुरा फल आने वाली पीढ़ियों को जरूर मिलता है। इसलिए ऐसे काम करें, जिनसे आगे आने वाली हमारी पीढ़ियों को भी लाभ मिल सके।