UP चुनाव की ओपनिंग BJP के लिए बड़ी चुनौती क्यों, जानिए पहले चरण की 58 में से 24 सीटों पर जाट समीकरण
UP विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 10 फरवरी को पश्चिमी UP की 58 सीटों पर मतदान हो रहा है। इन 58 सीटों में से कम से कम 24 सीट पर जाट वोटर्स निर्णायक भूमिका में हैं। BJP को 2017 का विधानसभा चुनाव जिताने में पश्चिमी UP, खासकर वहां के जाट समुदाय का बड़ा योगदान था।
अब केंद्र सरकार के तीन कृषि कानून के विरोध से उपजे आक्रोश से जाटलैंड में BJP के चुनावी समीकरण को बड़ी चुनौती मिल रही है। वहीं, सपा के रालोद के साथ आने से यहां एक बार फिर जाट-मुस्लिम समीकरण की चर्चा है।
ऐसे में आइए जानते हैं कि पश्चिमी UP में जाट क्यों मायने रखते हैं? BJP के लिए पश्चिमी UP में जाट वोट क्यों जरूरी हैं? सपा और रालोद का गठजोड़ क्या जाटों-मुस्लिमों को एकसाथ लाने में कामयाब हो पाएगा?
2014 के बाद से भाजपा का क्षेत्र में दबदबा
2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से पश्चिमी UP में BJP प्रमुख चुनावी पार्टी बनकर उभरी है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनावों में BJP ने यहां क्लीनस्वीप करते हुए जीत दर्ज की है।
हालांकि, इस बार दो प्रमुख फैक्टरों के चलते BJP को इस क्षेत्र में अपनी पुरानी सफलता दोहराने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इसमें पहला है कृषि कानून को लेकर एक साल चले आंदोलन के दौरान 700 किसानों की मौत से लोगों में केंद्र सरकार के प्रति गुस्सा है। दूसरा यह है कि इस बार के चुनावों में मुस्लिम और जाट समुदाय के बीच विभाजन की खाई काफी हद तक कम हो गई है। वहीं गन्ना किसानों का बकाया और फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, यानी MSP से जुड़ी मांगों का समाधान नहीं होने से भी किसानों में गुस्सा है।
जाट खेती के साथ राजनीतिक फसल उगाने में भी आगे
- जाट समुदाय मुख्य रूप से खेती किसानी के लिए जाने जाते हैं, लेकिन जाट राजनीतिक क्षेत्र में भी खुद को मजबूत रखने के लिए जाने जाते हैं।
- पश्चिमी UP में विधानसभा की 76 विधानसभा सीटों में जाट समुदाय की आबादी करीब 12% से 15% के बीच है।
- वहीं, सिर्फ बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली, बिजनौर, मेरठ, अलीगढ़, मथुरा और मुरादाबाद जिलों में फैली 24 सीटों की बात करें तो यह प्रति विधानसभा सीट में जाटों की संख्या 35% तक है।
चौधरी चरण सिंह के बाद मुस्लिम वोटों पर रालोद की पकड़ कमजोरी होती गई
पूर्व PM और UP के CM रह चुके चौधरी चरण सिंह को जाट समुदाय का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। 1969 में हुए विधानसभा चुनाव में चरण सिंह की भारतीय क्रांति दल BKD ने 402 में से 98 सीटें जीती थीं। इस दौरान पार्टी का वोट शेयर 21.29% था।
इस दौरान उन्हें पश्चिमी UP की जाट, मुस्लिम समेत सभी जातियों का भरपूर साथ मिला। यह इस बात से भी जाहिर होता है कि 1987 में उनके निधन के बाद तक के चुनावों में उनकी पार्टी का वोट शेयर 20% के करीब बना हुआ था।
इसके बाद अजीत सिंह अपने पिता चौधरी चरण सिंह के पारंपरिक वोटों को नहीं संभाल पाए और वे सिर्फ जाटों के नेता बनकर रह गए। इसके बाद रही सही कसर 2013 के मुजफ्फरनगर के दंगे ने पूरी कर दी। इसके चलते अजीत सिंह की रालोद को काफी नुकसान हुआ।
मुजफ्फरनगर दंगा रालोद के लिए बड़ा झटका साबित हुआ
- रालोद के लिए 2013 का मुजफ्फरनगर दंगा बड़ा झटका साबित हुआ था। इससे सामाजिक विभाजन पैदा हुआ और रालोद का पारंपरिक जाट वोट BJP में शिफ्ट हो गया।
- इसके चलते 2014 के लोकसभा चुनाव में रालोद के उस समय प्रमुख रहे अजीत सिंह और उनके बेटे अपनी सीट तक नहीं बचा पाए और चुनाव हार गए।
- वहीं] 2017 के विधानसभा चुनाव में रालोद को मात्र एक सीट से ही संतोष करना पड़ा था।
BJP का साथ मिलने पर ही रालोद ने जीती थी सबसे ज्यादा सीटें
- पश्चिमी UP एक बार फिर से जाट और मुस्लिम समीकरण बनने से भले ही सपा और रालोद को फायदा होने की बात कही जा रही है।
- लेकिन रालोद ने अब तक सबसे ज्यादा 14 सीटें 2002 में जीती थीं और इस दौरान वह BJP की सहयोगी हुआ करती थी। रालोद ने तब 38 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था।
- वहीं 2007 में रालोद ने अकेले दम पर चुनाव लड़ा था और सिर्फ 10 सीटें ही जीत पाई थीं। इसके बाद रालोद का ग्राफ लगातार गिरता ही रहा है।
- 2012 में रालोद ने सिर्फ 9 सीटें और 2017 के विधानसभा चुनाव में केवल एक सीट पर ही जीत दर्ज कर सकी थी। उसका इकलौता विधायक भी बाद में BJP में शामिल हो गया था।
- 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद नेता अजीत सिंह और उनके बेट जयंत चौधरी खुद अपनी सीट नहीं बचा पाए थे।
जाट और मुस्लिमों के साथ आने की कितनी संभावना
- किसान आंदोलन के बाद से ऐसा लग रहा है कि रालोद ने क्षेत्र में अपनी जमीन वापस पा ली है और जाटों और मुसलमानों को एक साथ आने का ग्राउंड तैयार किया है।
- जाट और मुस्लिम को चौधरी चरण सिंह और रालोद का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है। यदि यह पूरी से काम करता है तो कई विधानसभा सीटों पर पहले चरण में यह निर्णायक फैक्टर साबित हो सकता है।
- पश्चिम UP में जाट 12% से 15% के करीब हैं तो वहीं मुस्लिम 24% से 29% के बीच हैं। ऐसे में इन दोनों समुदायों के एक साथ आने से सपा और रालोद गठबंधन को फायदा होने की उम्मीद है।
- जाट और मुस्लिम समुदाय के साथ आने पर संदेह भी है। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों में जो विभाजन हुआ था उसका असर कितना कम हुआ है यह भी काफी मायने रखेगा।