Goa Election: हार्स ट्रेडिंग के स्टिंग ऑपरेशन ने गोवा की राजनीति में मचाई खलबली

एक निजी समाचार चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में विपक्षी पार्टियों के चार संभावित विजेताओं को यह कहते हुए दिखाया गया है कि यदि सरकार बनाने के लिए उनके समर्थन की जरूरत पड़ती है तो वे पैसों के लिए अपना पाला बदलकर बीजेपी का साथ दे सकते हैं.

40 विधानसभा सीटों के लिए सोमवार को गोवा में 78.94 फीसदी की जबरदस्त वोटिंग हुई. इस दौरान मतदान पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहा और राज्य के किसी भी हिस्से से किसी तरह की अनहोनी की कोई खबर नहीं आई. अंतिम आंकड़ों में वोटिंग का प्रतिशत (Goa Voting Percentage) 80 फीसदी से ऊपर रह सकता है. ईवीएम (EVM) के पिटारे में 301 उम्मीदवारों के भाग्य बंद हो चुका है, जो अब 10 मार्च को खुलेगा. मतदान के दौरान कोविड-19 के फैलाव को रोकने के लिए वोटरों को दस्ताने उपलब्ध कराए गए थे.

मुख्य चुनाव अधिकारी कुणाल के मुताबिक, राज्य में सबसे अधिक वोटिंग उत्तरी गोवा की संखालिम विधानसभा सीट (89.61 फीसदी) पर दर्ज की गई, जबकि सबसे कम वोटिंग दक्षिणी गोवा के बेनॉलिम सीट (70.20 फीसदी) पर दर्ज की गई. संखालिम सीट से मौजूदा सीएम प्रमोद सावंत बीजेपी के उम्मीदवार हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में राज्य में वोटिंग का प्रतिशत 82.56 फीसदी रहा था. गोवा की सरकार ने 14 फरवरी को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया था, ताकि अधिक से अधिक संख्या में लोग मतदान कर सकें. जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया, मतदान में तेजी देखने को मिली. सुबह 11 बजे तक पोलिंग परसेंटेज 26.63 फीसदी था जो दोपहर 1 बजे तक 44.62 फीसदी पर पहुंच गया. मतलब चार घंटों के भीतर एक तिहाई मतदाताओं को अपने अधिकार का प्रयोग किया.

दो सालों में बीजेपी ने कांग्रेस के 13 और विधायकों का अपने पाले में शामिल कर लिया

जब गोवा लोकतंत्र का पर्व मना रहा था और उत्साही मतदाता अधिक से अधिक संख्या में अपने मत का प्रयोग कर रहे थे तब ज्यादातर वोटरों के मन में यही बात घूम रही थी कि क्या खंडित जनादेश की स्थिति में चुनावों के बाद गोवा में एक बार फिर बड़े पैमाने पर विधायकों की खरीद-फरोख्त की स्थिति बन सकती है. ध्यान रहे कि 2017 के चुनाव में अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस पार्टी के मुकाबले दूसरे स्थान पर रहने के बावजूद बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही थी. 40 सीटों में से 13 सीट हासिल कर पाने के बावजूद बीजेपी ने बड़ी चतुराई से कांग्रेस पार्टी को पछाड़ते हुए 17 विधायकों का समर्थन प्राप्त कर लिया था. अगले दो सालों में बीजेपी ने कांग्रेस के 13 और विधायकों का अपने पाले में शामिल कर लिया और पिछले दरवाजे से अपने विधायकों की संख्या बढ़ाते हुए बहुमत हासिल कर लिया.

12 फरवरी को जब राज्य में चुनावी प्रचार का दौर थम गया, तब एक निजी समाचार चैनल हिंदी खबर (Hindi Khabar) ने एक स्टिंग ऑपरेशन चला दिया, जिसने राज्य की राजनीति में खलबली मचा दी. इस स्टिंग ऑपरेशन में विपक्षी पार्टियों के चार संभावित विजेताओं को यह कहते हुए दिखाया गया है कि यदि सरकार बनाने के लिए उनके समर्थन की जरूरत पड़ती है तो वे पैसों के लिए अपना पाला बदलकर बीजेपी का साथ दे सकते हैं. इनमें बेनॉलिम सीट से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार और पूर्व मुख्यमंत्री चर्चिल अलेमो, गोवा कांग्रेस के वाइस प्रेसिडेंट और मोरमुगाव सीट के उम्मीदवार संकल्प अमोनकर, नवेलिम सीट के कांग्रेसी उम्मीदवार फर्टेडो अवर्टेनो, वेलिम सीट के कांग्रेसी उम्मीदवार सेविओ डिसिल्वा शामिल हैं.

राघव चड्ढा ने कहा ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की गई है

इस घटना से परेशान, तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस पार्टी ने चुनाव आयोग से शिकायत की है, जहां उन्होंने यह आरोप लगाया है कि दिखाए जा रहे टेप में छेड़छाड़ की गई है. हालांकि, चैनल के एडिटर इन चीफ का कहना है कि यह फुटेज वास्तविक है और उनके रिपोर्टर विशाल शेखर ने यह स्टिंग ऑपरेशन किया है. आरोपों के बाद उन्होंने मूल रूप से अनएडिटेड फुटेज चुनाव आयोग या संबंधित अधिकारियों को सौंप दिया है. संयोगवश, यह खुलासा, आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के उन दावों को मजबूत करता है, जहां चुनावी प्रचार के दौरान वह कहते रहे हैं कि कांग्रेस या तृणमूल कांग्रेस को वोट देने का मतलब बीजेपी के लिए ही वोट देना है क्योंकि इन पार्टियों के नेता बिक्री के तैयार हैं और चुनाव के बाद बीजेपी का हाथ थाम लेंगे.


इस स्टिंग ऑपरेशन के सामने आने के तुरंत बाद, AAP के सीनियर लीडर राघव चड्ढा ने कहा कि हो सकता है कि यह अपने विरोधियों को बदनाम करने के लिए दिल्ली की रूलिंग पार्टी की एक चाल हो. वोटरों को सावधान करते हुए टीवी चैनल पर चड्ढा ने कहा कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की गई है जिससे कांग्रेस पार्टी के चुनावी चिन्ह को दबाने से वोट बीजेपी के पक्ष में चला जाए.


2017 के चुनाव में बुरी तरह से पराजित होने के बाद, अब आम आदमी पार्टी गोवा में सत्ता में आने के लिए जद्दोजहद कर रही है ताकि 2024 के चुनाव के पहले वह खुद को एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर स्थापित कर सके. 2017 के चुनाव में पार्टी का कोई भी उम्मीदवार अपनी जमानत बचाने में कामयाब नहीं हो पाया था.

चुनावी मैदान में 301 उम्मीदवार हैं

राज्य में अरविंद केजरीवाल की पार्टी 39 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और उसकी कोशिश है कि बीजेपी-विरोधी मतों को हासिल कर वह राज्य में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर सके. कांग्रेस पार्टी, जो 37 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, के खिलाफ उसने अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं और तीन सीटों को इसने अपने स्थानीय सहयोगी पार्टी गोवा फारवर्ड पार्टी के लिए छोड़ दिया है. तृणमूल कांग्रेस ने 26 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं, जबकि इसकी सहयोगी पार्टी महाराष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी 13 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. कुल मिलाकर, चुनावी मैदान में 301 उम्मीदवार हैं, जिनमें 68 उम्मीदवार बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. इन निर्दलीय उम्मीदवारों में बीजेपी के बागी नेता, पूर्व मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पार्सेकर और पूर्व सीएम मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर भी शामिल हैं.


खास बात यह है कि सभी पार्टियों ने महिलाओं के बारे में केवल बातें ही बनाई हैं, क्योंकि प्रत्येक पार्टी ने महिला उम्मीदवार को खड़ा करने में हिचकिचाहट दिखाई है. 40 सीटों पर लड़ बीजेपी ने केवल दो महिलाओं को चुनावी मैदान पर उतारा है, वहीं आम आदमी पार्टी ने तीन और तृणमूल कांग्रेस ने सबसे अधिक चार महिलाओं को टिकट दिया, जबकि शिवसेना ने दो महिला उम्मीदवार खड़े किए हैं. 13 सीटों पर चुनाव लड़ रहीं एनसीपी और एमजीपी और गोवा फारवर्ड पार्टी ने तो एक भी महिला उम्मीदवार को चुनाव में खड़ा नहीं किया है.


सबसे खराब रिकॉर्ड कांग्रेस पार्टी का है. कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने यह घोषणा की थी कि महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए उनकी पार्टी महिलाओं को एक-तिहाई सीट देगी. जबकि पार्टी ने 37 सीटों में से केवल 2 सीटों पर महिला उम्मीदवार उतारे हैं. तमाम शोर शराबे और नाटकीय घटनाओं के बीच, इस बात की प्रबल संभावना है कि गोवा में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बन सकती है और चुनाव के बाद एक बार फिर यहां जोड़-तोड़ की राजनीति देखने को मिल सकती है. संभावित दलबदलुओं के लिए खेमेबाजी जल्द ही शुरू हो सकती है क्योंकि कोई भी पार्टी मौका नहीं चूकना चाहती और 10 मार्च को आने वाले परिणाम तक इंतजार नहीं करना चाहती.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)

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