पंजाब चुनाव में ‘किसान’ नहीं मुद्दा … खेती-किसानी पार्टियों के एजेंडे से बाहर, 4 महीने पहले तक राजनेता बताते रहे हमदर्द, निरंतर हो रही आत्म हत्याएं

पंजाब में इस बार चुनाव से खेती-किसानी गायब है। 4 महीने पहले तक दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन की वजह से लग रहा था कि इस बार का चुनाव इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द लड़ा जाएगा। उस समय जो राजनीतिक पार्टियां खुद को किसानों का हमदर्द बताते नहीं थक रही थीं, आज उनके एजेंडे में किसानों का नाम तक नहीं है।

दूसरी तरफ कर्ज में दबे पंजाब के किसान अब भी लगातार सुसाइड कर रहे हैं। किसी घर के 2 बेटे तो कहीं बाप-बेटा और कहीं अनब्याही बेटी आत्महत्या कर चुकी हैं। दो दिन तक बाहर वाले रोए और 16 दिन घर वालों ने शोक मनाया। किसान परिवारों में अगर कोई सुसाइड होता है तो यही सोचा जाता है कि वह तो जंजाल से छूट गया।

मौजूदा हालात में हकीकत यही है कि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन करने वाले पंजाब के किसानों की चर्चा नेशनल से लेकर इंटरनेशनल लेवल तक हुई मगर खेती कानून रद्द होते ही किसानों को एक तरह से भुला दिया गया। इस बार चुनाव में ‘किसान’ कोई मुद्दा नहीं है।

 

98% ग्रामीण परिवार कर्ज में डूबे

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU), पंजाब विश्वविद्यालय (PU)और गुरु नानकदेव विश्वविद्यालय (GNDU) ने इसी मुद्दे पर एक जॉइंट सर्वे किया था। इसकी रिपोर्ट के अनुसार साल 2000 से लेकर 2010 तक पंजाब में 6,926 किसानों ने आत्महत्या की थी। किसानों की आत्महत्या के कारणों का पता लगाने वाली PAU की टीम के सदस्य प्रोफेसर सुखपाल सिंह बताते हैं, “पंजाब के ग्रामीण इलाकों में हमारी रिपोर्ट के अनुसार 35 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। इनमें से अधिकतर किसानों ने आढ़तियों से भी कर्ज लिया है और यही उनके सुसाइड का कारण बन रहा है। किसानों की आय इतनी है ही नहीं कि वह ये कर्ज चुका सकें।’

फसल उत्पादन में अमेरिका-चीन को दे रहे टक्कर

पंजाब को देश में अनाज का कटोरा कहा जाता है। पंजाब में प्रति हेक्टेयर गेहूं की पैदावार 4 हजार 500 किलो के करीब है, जो अमेरिका में होने वाली प्रति हेक्टेयर पैदावार के बराबर है। धान उगाने में पंजाब के किसान चीन को टक्कर देते हैं। इसके बावजूद भी कर्जदार होकर किसान आत्महत्या के लिए क्यों मजबूर हैं।

सेंटर फॉर रूरल स्टडी चंडीगढ़ के शोधार्थी राजेश ने इस सवाल के जवाब में दो कारण बताए।

  • पहला, आसान कर्ज इसकी बड़ी वजह है। क्रेडिट कार्ड देते समय ज्यादा औपचारिकता नहीं होती। सरकार के लचीले रूख से इसमें तेजी से उछाल आया।
  • दूसरा, किसान क्रेडिट कार्ड से कर्ज 1 साल के लिए मिलता है। 1 साल बाद सारा पैसा ब्याज समेत बैंक में जमा कराना पड़ता है। इतना ही नहीं यदि किसी किसान के पास 7 से 8 एकड़ जमीन है तो वह एक से ज्यादा बैंक से भी क्रेडिट कार्ड बनवा लेता है। इससे किसान पर ज्यादा कर्ज हो गया।

ग्रामीणों को मकान और रिपेयर का लोन नहीं

किसान क्रेडिट कार्ड के पैसे अपने दूसरे कामों में खर्च कर देते हैं, क्योंकि उन्हें दूसरे कामों के लिए लंबी अवधि का कर्ज नहीं मिलता। अर्बन एरिया में मकान के लिए लंबी अवधि का कर्ज मिल जाता है, लेकिन गांवों में यह सुविधा नहीं है। साथ ही गाड़ी लेने, मकान की रिपेयर व अचानक आए खर्च के लिए बैंकों से कर्ज नहीं मिलता। ऐसे में काम चलाने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड का आसान रास्ता अपना लेते हैं जो एक साल में ब्याज समेत चुकाना होता है। इसमें किसान को दिक्कत आती है जबकि लंबी अवधि का कर्ज किस्तों में उतारा जा सकता है। बदहाल किसान एक कर्ज से निपटने के लिए दूसरा कर्ज ले रहा है और अंत में आर्थिक बदहाली का शिकार होकर आत्महत्या का रास्ता चुन लेते हैं।

प्रति एकड़ 1 लाख दे रहे बैंक, गाइडलाइन फॉलो नहीं

को-ऑपरेटिव बैंक हर साल किसानों को 10 हजार करोड़ रूपए का कर्ज देते हैं। इसमें से औसतन 42% किसान डिफाल्टर रहते हैं। 52% किसान ही संस्थागत बैंकों से जुड़े हैं। बाकी किसान आढ़ती के कर्ज ले रहे हैं। सेंटर फॉर रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्ट्रियल डवलपमेंट सेंटर (क्रीड) ने हरियाणा और पंजाब के 65 बैंक ब्रांच के ग्रामीण क्षेत्र के ऋण के तरीके की स्टडी की तो इसमें पाया कि प्राइवेट बैंक एक एकड़ के किसान को औसतन एक लाख रूपए तक का किसान क्रेडिट कार्ड दे दिया गया। आरबीआई की गाइड लाइन है कि जिला स्तर की टेक्निकल कमेटी उस क्षेत्र की फसलों में खर्च के हिसाब से क्रेडिट कार्ड की लिमिट तय करेगी। देखने में आया कि इस ओर ध्यान ही नहीं दिया गया।

ग्राउंड रिपाेर्ट : 2 साल में भुच्चो खुर्द गांव के 35 किसानों ने आत्महत्या की

पंजाब चुनाव में “किसान’ कहां है? इस तथ्य की पड़ताल के लिए पंजाब के कई गांवों का दौरा किया। भुच्चो खुर्द पंजाब में बठिंडा जिले का छोटा सा गांव है। 1300 की आबादी वाले इस गांव में 35 किसान दो साल में आत्महत्या कर चुके हैं। आत्महत्या का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब यहां आत्महत्या आम बात है।

आत्महत्या कितनी बड़ी समस्या है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय किसान युनियन के नेता मंजीत सिंह लगातार किसानों को जान न देने के प्रति प्रेरित करते थे और एक दिन वह खुद भी फांसी के फंदे पर झूल गए। इसी गांव के दो भाई खेता सिंह और नेता सिंह 30 और 40साल के थे जिन्होंने आत्महत्या कर ली। अब दोनो की पत्नियां और बच्चे हैं और घर की हालत बेहद दयनीय है।

किसान नेता मंजीत आत्महत्या न करने के प्रति हर किसी को प्रेरित करता था। वह दिन रात इस काम में लगा रहता था। मुश्किल में फंसे कई किसानों की उसने मदद की। लेकिन एक दिन वह खुद आत्महत्या कर लेता है। मंजीत ने क्यों मौत को गले लगाया? यह जानने के लिए पीड़ितों से बातचीत की।

खबरें और भी हैं…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *