MP : नोटा ने बढ़ाई दलों की चिंता, निर्दलीय उम्मीदवार भी इस बार बढ़ सकते हैं
जनता के लिए कांग्रेस के 187 वचन …..नोटा ने बढ़ाई दलों की चिंता, निर्दलीय उम्मीदवार भी इस बार बढ़ सकते हैं
- कांग्रेस ने वचन पत्र में समाज के सारे वर्गों के लिए 101 वादे दोहराए, 86 नए वचन जोड़े, पहली बार महिलाओं के लिए अलग वचन पत्र, कमलनाथ ने कहा- शिवराज सरकार के रेत घोटाले समेत सारे भ्रष्टाचार की जांच कराएंगे।
- चुनाव कार्य में लगे हजारों प्रोफेसर चुनाव आयोग से नाराज। भेदभाव और नियमों के उल्लंघन का लगाया आरोप।
- दोनों बड़ी पार्टियों से खफा हैं उनके टिकटार्थी। निर्दलियों और नोटा की संख्या में बढ़ोतरी से कांग्रेस और बीजेपी भयभीत।
कांग्रेस के वचन पत्र की खास बातें
कांग्रेस ने मंगलवार को वचन पत्र जारी किया। इसे पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह की सदारत वाली कमेटी ने तैयार किया है। पार्टी ने जब 2018 में सरकार बनाई थी तो उस समय भी वचन पत्र राजेंद्र सिंह की निगरानी में बना था। इसकी कुछ खास बातें हैं।
- पुरानी पेंशन योजना लागू होगी।
- किसानों के सारे कर्ज माफ होंगे।
- किसानों को पुराने सिंचाई बिजली बिलों से मुक्ति मिलेगी।
- किसानों को 2600 गेहूं का और 2500 धान का समर्थन मूल्य मिलेगा।
- पांच हॉर्स पावर तक के बिजली बिल माफ।
- नारी सम्मान योजना में महिलाओं को 1500 रुपए महीना मिलेगा।
- गैस सिलेंडर सिर्फ 500 रुपए में मिलेगा।
- हर स्कूली छात्र-छात्रा को 500 से1500 रुपए महीना मिलेगा। इसके अलावा स्कूली शिक्षा मुफ्त होगी।
- सभी वर्गों के बेरोजगारों को अपना काम शुरू करने के लिए आर्थिक मदद मिलेगी।
- जातिगत जनगणना कराएंगे।
ये नए वादे किए
- खाली पड़े दो लाख सरकारी पद भरेंगे और महिलाओं को स्टार्ट अप के लिए 3 प्रतिशत ब्याज पर 25 लाख तक कर्ज देंगे।
- बेटी के ब्याह के लिए एक लाख एक हजार रुपए मिलेंगे।
- सभी कर्मचारियों की रुकी हुई पदोन्नति दी जाएगी।
- दो रुपए किलो गोबर खरीदेंगे।
दिग्विजय और कमलनाथ की नोकझोंक
ये तो कुछ चुनिंदा वादे या वचन थे। बाकी इस वचन पत्र की गठरी बहुत भारी है। कम समय में पूरा वचनपत्र पढ़ना संभव नहीं है। आप अंदाज लगा सकते हैं कि बीजेपी का वचनपत्र जब आएगा तो उसकी गठरी कांग्रेस से भी भारी होगी, लेकिन जब वचन पत्र जारी हो रहा था तो मंच पर बैठे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की दिलचस्प नोकझोंक हो गई। हम आपको यह पूरी दिखाना चाहते हैं।
प्रदेश के हजारों महाविद्यालयीन प्राध्यापक निर्वाचन आयोग से गुस्सा हैं। उनकी ड्यूटी चुनाव में लगी है। जिलों के निर्वाचन अधिकारियों यानी कलेक्टरों ने उन्हें पीठासीन अधिकारी का सहायक-1 ,सहायक-2 और सहायक-3 बना दिया है। उनके पद या वेतनमान के मद्देनजर यह निर्वाचन आयोग की नियमावली की अवहेलना है। पहले किसी भी चुनाव में ऐसा नहीं हुआ। प्राध्यापकों को जोनल मजिस्ट्रेट या सेक्टर अधिकारी नियुक्त किया जाता है। असल में कई जिलों में ऐसे निर्वाचन अधिकारी हैं, जिन्हें इस कार्य का ज्यादा अनुभव नहीं है। वे राजस्व अधिकारियों को छोड़कर हर विभाग के अधिकारी या कर्मचारी को एक जैसा ही मानते हैं। अब ये प्राध्यापक प्रदेश के मुख्य चुनाव पदाधिकारी को शिकायत करेंगे।
बेटी को टिकट फिर भी गुड्डू लड़ेंगे निर्दलीय
इस बार का चुनाव अनोखे अनोखे रूप दिखा रहा है। अक्सर देखा गया है कि पार्टी का टिकट नहीं मिलने पर लोग बागी हो जाते हैं, लेकिन इंदौर में तो अलग ही मामला है। प्रेमचंद गुड्डू को कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं बनाया। उनकी बेटी रीना सेतिया को सांवेर से टिकट दे दिया। अब प्रेमचंद जी इससे भी खुश नहीं हैं। उनके निर्दलीय के रूप में रतलाम जिले के आलोट से चुनाव लड़ने की खबर है। अब ऐसे निर्दलियों से परेशान होकर मतदाता नोटा की मदद लेते हैं। इस तरह ये निर्दलीय और नोटा महाराज कभी कभी परिणामों को उलट-पुलट भी कर देते हैं।
1957 में थे 317 निर्दलीय प्रत्याशी; 2018 में 1094 लड़े
जब मध्यप्रदेश का गठन हुआ था, उसके अगले साल यानी 1957 में केवल 317 प्रत्याशी निर्दलीय थे, लेकिन 20 साल में ये बढ़कर 1288 हो गए। 1990 में तो ये बढ़कर 2707 हो गए। 2013 में ये 1090 और 2018 में निर्दलियों की संख्या 1094 हो गई। हिसाब लगाएं तो औसतन हर सीट पर चार-पांच निर्दलीय। विधानसभा चुनाव में कई बार हार जीत थोड़े मतों के अंतर से होती है। यदि इन निर्दलियों ने हजार पांच सौ वोट भी ले लिए तो सीट का गणित बिगड़ जाता है। अब एक उदाहरण नोटा का।
2018 में नोटा ने 22 सीटों पर बिगाड़ा गणित
नोटा याने जब मतदाता को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं आए तो वह नोटा बटन दबा देता है। आपको ताज्जुब होगा कि 2013 में 54 सीटों पर नोटा ने तीसरे नंबर पर वोट पाए थे। निर्दलियों से भी ज्यादा वोट नोटा को मिले थे। उन्हें करीब 1.90 फीसदी वोट मिले थे। 2018 में नोटा साहब ने 22 सीटों पर गणित बिगाड़ दिया था। उन्हें कुल 1.42 फीसदी वोट मिले थे। अब ये तो आपको याद ही होगा कि पिछले चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच दशमलव तेरह फीसदी मतों का अंतर था। सोचिए और दिल थाम कर बैठिए। चुनाव के नतीजों तक।