पंचेश्वर धाम उत्तराखंड के लिए लाएगा विकास या विनाश? आखिर क्या है ये प्रोजेक्ट, जानिए इसके बारे में सब कुछ
पंचेश्वर (Pancheswar) और रुपाली गाड़ बांध बन जाने से 5 हजार मेगावॉट से ज्यादा बिजली पैदा होगी. इसमें से 13 फीसदी बिजली उत्तराखंड को मुफ्त मिलेगी.
पहाड़ी राज्य (Uttarakhand) दो बार भारी तबाही का सामना कर चुका है. केदारनाथ में हुए 2013 के हादसे के बाद वहां चार धाम परियोजना (Char dham Project) पर काम चल रहा है. जिसके लिए पेड़ काटे जा रहे हैं. वहीं 2021 में हुए चमोली हादसे ने लोगों को फिर 2013 की याद दिला थी. हालांकि 8 साल बाद हुए इस हादसे में पहले से बेहतर सुविधा और रेस्क्यू ऑपरेशन के कारण बड़े पैमाने पर लोगों की मदद की गई. लेकिन सवाल ये है कि इस तरह की नौबत आई क्यों ? इसी बीच हम बात करते हैं पंचेश्वर बांध की. पंचेश्वर बांध (Pancheshwar dam) नेपाल और भारत का साझा प्रोजेक्ट है. जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते है वैसे ही इस बांध के भी कुछ सकारात्मक और नकारात्मक पहलू हैं. हालांकि इस बांध के मुद्दों को पिछले विधानसभा में कई बार उठाया गया था. लेकिन बीच में भारत-नेपाल विवाद के कारण इस पर चर्चा के स्वर थम गए थे.
इस परियोजना से कितना नफा नुकसान होगा ये जानने के लिए इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं. यह पंचेश्वर बांध बनकर तैयार हो गया तो यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध होगा. अभी शंघाई स्थित थ्री जॉर्ज्स डैम दुनिया का सबसे बड़ा बांध है. इस बांध की ऊचांई 315 है. पंचेश्वर परियोजना का काम काली नदी पर बन रहा है. जहां दोनों देशों के बीच एक अंतरराष्ट्रीय सीमा बनती है. यह भारत में उत्तराखंड और नेपाल के सुदूर पश्चिमी विकास क्षेत्र में फैला है.महाकाली नदी पर नेपाल का भी हिस्सा है. यह उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चंपावत और अल्मोड़ा के कुछ हिस्से को कवर करेगा. 1954 में जवाहर लाल नेहरू ने पंचेश्वर बांध की बात कही थी. तब से अलग-अलग स्तर पर इसे बनाने को लेकर बातें होती रही हैं.पंचेश्वर महादेव मन्दिर से करीब ढाई किलोमीटर नीचे काली नदी पर बन रहा यह बांध भारत और नेपाल की दोस्ती की को और मजबूती प्रदान करने का काम करेगा.
क्या है सकारात्मक पहलू
पहले हम इसके सकारात्मक पहलू की बात करते हैं.जहां एक तरफ नेपाल के पास आज तक अपना कोई विद्युत डैम या विद्युत परियोजना ना होने से उसे बिजली दूसरे देशों से लेनी पड़ती थी अब इस बांध के बन जाने वहां विद्युत आपूर्ति की कमी नही होगी यह नेपाल की पहली जल विद्युत परियोजना बनेगी. यह एशिया का सबसे बड़ा शम्भवत दुनिया का भी सबसे बड़ा बांध बनेगा जिस से बिजली आपूर्ति पूरी हो जाएगी. इस परियोजना का लाभ भारत और नेपाल दोनों देशों को होगा जिस से हाल ही के दिनों में रिश्तो में आई खटास दूर होगी ऐसी उम्मीदे हैं. एक अनुमान के मुताबिक इस बांध के बन जाने से नेपाल और भारत के कई हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई की परेशानी दूर हो जाएगी.
पानी में बह सकती है पुरखों की विरासत
अगर हम इसके दूसरे पहलू की बात करें तो डिटेल प्रॉजेक्ट रिपोर्ट के मुताबिक, इस बांध का विरोध भी कुछ उसी प्रकार हो रहा है जैसे टिहरी बांध का क्योंकि इस के बन जाने से करीब 32000 और 320 परिवारों को पुनर्वास करना पड़ेगा. लोगों ने अपने जीवन की धन सम्पदा इकट्ठा करके अपना एक आसरा बनाया था जहाँ वो भावनात्मक रूप से जुड़े थे उसे छोड़ कर उन्हें जाना पड़ेगा. इस बांध का असर धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी पड़ेगा क्योंकि पुनर्वास के कारण लोगों को अपनी पुरानी संस्कृति को छोड़ कर जाना पड़ेगा जिस से यह संस्कृति खतरे में पड़ रही है. रिपोर्ट्स ये भी कहती है कि इस बांध के कारण पानी में पुरखों की विरासत समा सकती हैं न जाने कितने गांव जल मग्न हो सकते हैं. बरहाल 2018 से बांध का काम शुरू हो गया है और साल 2026 तक काम पूरा करके बांध में पानी भरना शुरू हो जाएगा. पानी पूरा भरने में 2 साल लगेंगे और 2028 तक यह पूरा हो जाएगा.