वो 48 घंटे, जब यूपी में 2 मुख्यमंत्री थे … कल्याण CM हाउस पहुंचे, तो जगदंबिका पहले से कुर्सी पर बैठे थे; दोनों 2 दिन तक CM रहे
21 फरवरी, वो दिन जब यूपी के राजनीतिक इतिहास का सबसे बड़ा सियासी ड्रामा शुरू हुआ था। ये ड्रामा 6 दिन यानी 26 फरवरी 1998 तक चला था। तब सुप्रीम कोर्ट के कहने पर 48 घंटे तक कानूनी किताबों के पन्ने पलटे गए। फिर फैसला आया कि “जगदंबिका पाल 2 दिन सीएम रहे, इस बात को किसी कागज में दर्ज नहीं किया जाएगा।” आइए इस 24 साल पुरानी कहानी को शुरू से जानते हैं…
सबसे बड़े ड्रामे के 1 साल 5 महीने पहले यूपी में क्या हुआ था…
अक्टूबर 1996। यूपी चुनाव के नतीजे आए थे। किसी को बहुमत नहीं मिला। भाजपा-बसपा ने एक शर्त आधारित गठबंधन किया। तय हुआ कि दोनों पार्टियां 6-6 महीने में सीएम बदलेंगी।
पहले 6 महीने मायावती सीएम बनीं। फिर कल्याण सिंह। लेकिन कल्याण ने आते ही मायावती के फैसले उलटने शुरू किए। इससे मायावती इतनी खफा हुईं कि उन्होंने कसम ले ली, ‘कल्याण को सीएम नहीं रहने दूंगी।’…
और विधानसभा में जूते-चप्पल चल गए

मायावती ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और विधानसभा भंग हो गई। राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को बहुमत साबित करने के लिए 3 दिन का वक्त दिया। शातिर कल्याण ने गोटी घुमाई। कांग्रेस और बसपा टूट गईं। दो नई पार्टियां बन गईं। पहली, लोकतांत्रिक कांग्रेस और जनतांत्रिक बसपा। दोनों ने कल्याण को सपोर्ट कर दिया।
जब विधानसभा में विश्वासमत के लिए वोटिंग शुरू हुई, तो पार्टी टूटने से खफा कांग्रेसी विधायकों ने माइक उखाड़ना शुरू किया। साथ में सपा विधायकों ने माइकों की बौछार कर दी। जब तक कल्याण विधानसभा में थे, तब तक तो भाजपा विधायक शांत रहे। लेकिन उनके उठते ही विधानसभा में ही लत्तम-घुस्सम मच गई। पर… विधानसभा चलती रही। वोटिंग भी हुई। भाजपा को 222 वोट मिले। कल्याण सिंह सीएम बने रहे।
विश्वासमत जीतने के बाद भी माया-मुलायम ने ठाना कि कल्याण की सरकार नहीं चलने देंगे

तब के राज्यपाल रोमेश भंडारी को इंद्र कुमार गुजराल ने नियुक्त किया था। गुजराल से मुलायम के रिश्ते अच्छे थे। रोमेश ने विधानसभा के इस फैसले को मानने से इनकार कर दिया।
गुजराल की सरकार ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी, लेकिन राष्ट्रपति ने सिफारिश लौटा दी। गुजराल फिर से कुछ कहते, तब तक इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कल्याण सिंह को फिर से फ्लोर टेस्ट के लिए कहा।
इस बार भी कल्याण ने बहुमत साबित कर दिया। जंबो कैबिनेट बनाई गई। यूपी में पहली बार ऐसा हुआ कि 93 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई। मतलब समझते हैं, कल्याण ने 93 नेताओं को मंत्री बनाने का वायदा करके अपने पक्ष में कर लिया।
2-2 फ्लोर टेस्ट पास करने बाद भी कल्याण का पीछा माया-मुलायम ने नहीं छोड़ा
मायावती और मुलायम ने अब और ज्यादा गुस्से से भर गए थे। वो किसी हाल में कल्याण से कुर्सी उतारने में लगे हुए थे। उन्हें 122 दिन बाद मौका मिल भी गया। और यही से यूपी के सबसे बड़े ड्रामे की शुरुआत होती है।
सबसे बड़े सियासी ड्रामे का पहला दिन, कहानी में जगदंबिका पाल की एंट्री 21 फरवरी 1998, लोकसभा चुनाव चल रहे थे। 22 फरवरी को यूपी में वोटिंग थी। सारे बड़े नेता प्रचार के लिए लखनऊ से बाहर थे। सीएम कल्याण सिंह भी गोरखपुर में थे।
पर मायावती लखनऊ में थीं। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। पत्रकारों से बोलीं, “मेरे संसदीय क्षेत्र अकबरपुर का चुनाव हो चुका है, अब मैं अपना पूरा ध्यान कल्याण सिंह सरकार के खात्मे पर लगाऊंगी।” दोपहर करीब 2 बजे मायावती अपनी पार्टी बसपा के विधायकों, किसान कामगार पार्टी, लोकतांत्रिक कांग्रेस और कई छोटे दल के विधायकों को लेकर राजभवन पहुंच गईं। उन्होंने कल्याण सरकार के ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर जगदंबिका पाल को आगे कर दिया। राज्यपाल से सभी विधायकों ने एक सुर में बोला, “हम इन्हें अपना समर्थन दे रहे हैं।” एक घंटे बाद मुलायम ने भी यही कह दिया।
खींच ली गई कल्याण की कुर्सी, उन्हें पता तक न चला
लखनऊ में बवंडर मचा था और कल्याण सिंह गोरखपुर के मंच से दहाड़ रहे थे। तभी किसी ने बताया, फोन आया है, “आपको सीएम पद से हटा दिया गया है”। इधर रात करीब 10:16 बजे जगदंबिका पाल को सीएम की शपथ दिला दी। ये सब इतनी जल्दी हुआ कि शपथ के बाद राष्ट्रगान भी नहीं गाया गया।
सबसे बड़े सियासी ड्रामे का दूसरा दिन, कल्याण सचिवालय पहुंचे तो कुर्सी पर कोई बैठा था
रोज की तरह कल्याण सिंह अपने ऑफिस पहुंचे। जगदंबिका पाल पहले ही उनकी कुर्सी पर बैठे हुए थे। फिर कल्याण सिंह सीधे इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचे। दिन था, 22 फरवरी। कल्याण सिंह सरकार में मंत्री रहे नरेंद्र सिंह गौर ने कोर्ट में याचिका डाली। मांग थी कि जगदंबिका पाल को हटाकर कल्याण सिंह को फिर से सीएम बनाने की।
सबसे बड़े सियासी ड्रामे का तीसरा दिन, हाई कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को उलट दिया
हाई कोर्ट ने सुनवाई की। कानूनी किताबें, हालात समझा। इसके बाद जगदंबिका पाल की शपथ को नकार दिया। करीब 24 घंटे बाद हाई कोर्ट ने 23 फरवरी की शाम फैसला सुनाया। यूपी के सीएम कल्याण सिंह ही सीएम होंगे।

सबसे बड़े सियासी ड्रामे का चौथा दिन, वो दिन जब कोर्ट ने कहा 2 सीएम होंगे
सबको लगा कि हाई कोर्ट के फैसले के बाद ये ड्रामा खत्म हो गया। लेकिन सबसे बड़ा ड्रामा तो अभी होना बाकी था। वो दिन था 24 फरवरी का, जगदंबिका पाल सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। कोर्ट का कोई फैसला आता इससे पहले कल्याण सिंह ने जगदंबिका पाल के खेमे में घुस गए।
उन्होंने जगदंबिका को सपोर्ट कर रहे डिप्टी सीएम नरेश अग्रवाल समेत लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी के विधायकों अपने खेमे में मिला लिया। लेकिन जगदंबिका पाल पीछे नहीं हटे। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करा के दम लिए। और सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘अगले 48 घंटे में फ्लोर टेस्ट कराया जाएगा। तब तक दोनों ही यूपी के सीएम रहेंगे।’
सबसे बड़े सियासी ड्रामे का पांचवां दिन, यूपी में 2 सीएम रहने का इकलौता दिन
25 फरवरी 1998, ऐसा दिन जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यूपी में आधिकारिक तौर 2 सीएम थे, कल्याण सिंह और जगदंबिका पाल।
ये तो तय था कि दो में से किसी एक की कुर्सी अगले कुछ घंटों में जाने वाली है। लेकिन दोनों ने कोई बड़ा आदेश नहीं दिया। क्योंकि दोनों का पूरा फोकस फ्लोर टेस्ट के लिए विधायकों को अपने पक्ष में करने में निकल गया।

सबसे बड़े सियासी ड्रामे का छठवां दिन, किसी कागजात में जगदंबिका सीएम नहीं माने जाएंगे
26 फरवरी दोनों सीएम के लिए विधानसभा में वोटिंग हुई। कल्याण सिंह को 225 वोट मिले। जगदंबिका पाल को 196 वोट। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि कल्याण ही यूपी के सीएम होंगे।
साथ में ये भी कहा, ‘जिन 48 घंटों में जगदंबिका सीएम रहे, उन्हें भी किसी दस्तावेज जमें दर्ज नहीं किया जाएगा।’ यानी 2 दिन सीएम रहने के बाद भी जगदंबिका पाल को सीएम माना ही नहीं गया।हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ये ड्रामा खत्म हो गया।