जब यूपी में 3 दिन चली वोटों की गिनती …. 1993 में हर सीट से औसत 23 कैंडिडेट चुनाव लड़े; 90% जमानत भी नहीं बचा पाए
कौशांबी जिले की एक सीट है सिराथू। यहां से बर्तन की फेरी लगाने वाले छेद्दू चमार चुनाव लड़ रहे हैं। निर्दलीय छेद्दू अपनी जिंदगी का 11वां चुनाव लड़ रहे हैं। बीडीसी से लेकर सांसद तक हर चुनाव हार चुके हैं। प्रचार करते वक्त ‘इधर देखो न उधर देखो, एक बार छेद्दू चमार को देखो’ का नारा बुलंद करते हैं।
यूपी में छेद्दू जैसे सैकड़ों लोग हैं जिनकी तमन्ना विधायक बनने की है, लेकिन वे चुनाव जीत नहीं पाते। चुनाव जीतने की तमन्ना पालने वालों ने 1993 में एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया था, जो अब तक नहीं टूटा। उस दौरान रिकॉर्ड प्रत्याशी चुनाव लड़े और रिकॉर्ड प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। आइए उस चुनाव की कहानी बताते हैं…
यूपी की हर सीट पर औसत 23 कैंडिडेट लड़े
1993 के विधानसभा चुनाव में यूपी में 422 विधानसभा सीटें थीं। यानी आज से 19 ज्यादा। चुनाव से ठीक पहले सपा-बसपा ने गठबंधन कर लिया। सपा ने 256 सीटों पर और बसपा 164 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। भाजपा ने सभी 422 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। कांग्रेस ने एक कम मतलब 421 प्रत्याशी उतारे।
इन चार बड़ी पार्टियों ने कुल मिलाकर 1263 प्रत्याशी उतारे। लेकिन असल चुनावी रंग जमाया निर्दलीयों ने। इन लोगों ने थोक के भाव में पर्चा भरकर प्रत्याशियों की कुल संख्या 9,716 पर पहुंचा दी। 9,716 प्रत्याशियों का प्रति सीट औसत निकालें, तो हर सीट पर 23 प्रत्याशी लड़े थे।
आगरा की एक सीट पर लड़े थे 77 प्रत्याशी
आगरा कैंट की सीट पर तो रिकॉर्ड 77 प्रत्याशी खड़े हुए थे। मतदान पूरा हुआ तो गिनती में झमेला फंस गया। करीब तीन दिन तक गिनती चलती रही। बताया जाता है कि निर्दलीय प्रत्याशियों की पर्चियां जमाने में चुनावी ड्यूटी में लगे कर्मचारियों को बुखार आ गया था।
90% उम्मीदवार जमानत नहीं बचा सके थे
जब गिनती पूरी हुई तो पता चला भाजपा को 177, सपा को 109, बसपा 67 और कांग्रेस को 28 सीटों पर जीत मिली। कुल मिलाकर 381 सीटों पर इन चार पार्टियों का कब्जा हो गया। बाकी 41 सीटों पर छोटी पार्टियां एवं निर्दलीय प्रत्याशी जीत गए। हैरान करने वाली बात ये कि 8,645 प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाए। ये इतनी बड़ी संख्या है कि आज तक इतने प्रत्याशी दोबारा चुनाव में ही नहीं उतरे।
चुनाव लड़ने वाले की जमानत क्या होती है
चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी कुल पड़े वोट का छठवां हिस्सा नहीं हासिल कर पाता तो वह जमानत बचा पाने में नाकाम माना जाता है। उदाहरण के लिए किसी विधानसभा सीट पर 1 लाख वोट पड़े। जीतने वाला 60 हजार पा गया, दूसरे नंबर वाला 30 हजार पाया और तीसरे नंबर वाले को 12 हजार वोट मिले। मतलब दूसरा प्रत्याशी तो अपनी जमानत बचा गया, लेकिन तीसरे नंबर वाला 1/6 वोट नहीं हासिल कर सका। इसलिए उसने नामांकन के समय जो राशि जमा की थी वह जब्त हो गई।
यहां कैंडिडेट्स की कहानी खत्म होती है, लेकिन उसी साल एक और बड़ी कहानी बनी थी। बीजेपी के सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद सरकार न बनने की। आइए उसको भी देखते हैं…
सबसे ज्यादा सीटें, पर नहीं बना पाए सरकार
विधानसभा चुनाव 1993 में भाजपा को 177 सीटों पर जीत मिली, लेकिन बहुमत 212 पर था। भाजपा को छोटी पार्टियों ने समर्थन नहीं दिया। इधर सपा-बसपा ने छोटे दलों को अपने साथ करके सरकार बना ली। एक साल 81 दिन मुलायम सिंह और 137 दिन मायावती सीएम रही।
मुलायम तीन सीटों पर लड़े, सभी पर जीत गए
1993 के चुनाव में एक अजब चीज ये थी कि मुलायम सिंह यादव तीन सीट पर लड़े और तीनों जीत गए। ये तीन सीट जसवंत नगर, निधौनीकलां और शिकोहाबाद की थी। मुलायम के अलावा आंध्र प्रदेश के एनटी रामाराव और हरियाणा के चौधरी देवीलाल ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था। एनटी सभी जीत गए थे और देवीलाल सभी तीन सीटों पर चुनाव हार गए थे। 1996 में नियम बदला और उसके बाद कोई भी व्यक्ति दो से अधिक सीट पर चुनाव नहीं लड़ सकता था।
1993 के बाद कब कितने प्रत्याशी लड़े
1993 में बनी सपा-बसपा सरकार 1995 में टूट गई। 1996 में जब दोबारा चुनाव हुआ, तो कुल प्रत्याशियों की संख्या 4,429 हो गई। 2002 में ये संख्या 5,533, 2007 में 6,086 और 2012 में 6,839 हो गई। 2017 में जहां 4,853 प्रत्याशी चुनाव लड़ने उतरे, तो इस चुनाव में यह संख्या बढ़कर 6,000 हो गई है।