अपनी योग्यता पर घमंड करेंगे तो योग्यता धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी
कहानी
कबीरदास जी के बेटे का नाम था कमाल। एक दिन कमाल ने कबीरदास जी से कहा, ‘आप यहां कुटिया में नहीं थे, आपको आने में देर थी। उस समय कुछ लोग आए और आपके बारे में पूछ रहे थे। उनके साथ एक मरा हुआ युवक भी था। मैंने उस शव के सामने दो-तीन बार राम नाम लिया और गंगाजल डाला तो वह मरा हुआ युवक जीवित हो गया। वो लोग जय-जयकार करके लौट गए।’
कबीरदास जी कमाल की ये बातें सुनकर हैरान थे। उनकी हैरानी और बढ़ गई जब कमाल ने आगे कहा, ‘आप बहुत दिनों से कह रहे थे कि आपको तीर्थ यात्रा पर जाना है तो आप चले जाइए, कुटिया मैं संभाल लूंगा।’
कबीरदास जी समझ गए कि मेरे बेटे को अहंकार हो गया है। जो भी साधनाएं इसने की हैं, उसका परिणाम देखकर इसका अहंकार जाग गया है। कबीरदास जी ने एक चिट्ठी लिखी और कमाल को दी। उन्होंने कहा, ‘इसे खोलना मत।’
कबीर जी ने कमाल को चिट्ठी के साथ एक संत के पास भेजा। कमाल इस संत के पहुंचा तो उस संत ने चिट्ठी खोली। उसमें कबीर जी ने लिखा था कि कमाल भयो कपूत, कबीर को कुल गयो डूब।
उस संत के यहां भी बीमार लोगों की लाइन लगी हुई थी। संत ने गंगाजल कई लोगों पर एक साथ डाला तो वे सभी ठीक हो गए। कमाल को लगा कि ये तो मुझसे भी बड़े चमत्कारी हैं। वह संत थे सूरदास जी।
सूरदास जी ने कमाल की बातचीत सुनी और कहा, ‘जाओ पीछे नदी में एक युवक डूब रहा है, उसे बचो लो।’ कमाल तुरंत नदी की ओर गया तो देखा कि एक लड़का डूब रहा है, कमाल ने उसे बचा लिया।
लड़के को बचाकर कमाल सूरदास के पास लौटा तो वह चौंक गया कि ये तो देख नहीं सकते, मेरे पिता का पत्र भी नहीं पढ़ सकते, मैंने इन्हें जो बताया वह ठीक है, लेकिन मेरे बारे में सबकुछ जान गए। जब कमाल ने अपने पिता कबीरदास का लिखा हुआ पत्र पढ़ा तो वह जान गया कि मेरे पिता में मेरा अहंकार दूर करने के लिए मुझे यहां भेजा है। सिद्धि, साधनाएं अनेक लोगों के पास हैं, लेकिन वे इन साधनाओं का गलत उपयोग नहीं करते हैं।
सीख
कमाल के माध्यम से ये बात समझनी चाहिए कि हमें अपनी योग्यता का घमंड नहीं करना चाहिए। सभी लोगों में अलग-अलग योग्यताएं हैं। जब हम अपनी योग्यता का गलत उपयोग करने लगते हैं तो हमारे घमंड की वजह से योग्यता खत्म होने लगती है। योग्यता का सही उपयोग करें, उसे अहंकार की वजह से नष्ट न करें।