दिव्या गोकुलनाथ का कॉलम:अनिश्चय के दौर में समानुभूति वाली लीडरशिप जरूरी है और महिलाएं इसे आगे ले जा रही हैं

दिव्या गोकुलनाथ, को-फाउंडर, बायजूस….

तेजी से बढ़ती इस डिजिटल दुनिया में भारतीय एडटेक इंडस्ट्री लगातार नवाचार कर रही है। एडटेक से तात्पर्य है शिक्षा और प्रौद्योगिकी का मेल। विद्यार्थियों के लिए सुदृढ़ और हैंड्स ऑन ट्रेनिंग मुहैया कराकर यह एडटेक भारतीय कार्यबल के लिए रोजगार की क्षमता और नए अवसर दे रहा है। भावी लीडर्स पैदा करने और उन्हें आकार देने की इस यात्रा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व और विविधताओं से भरा वर्कफोर्स सबसे ज्यादा जरूरी है, इसी से यह क्षेत्र आगे बढ़ेगा।

भारत के युवा ग्रैजुएट्स में 50 फीसदी महिलाएं होती हैं, बावजूद इसके महिला कामगारों का हिस्सा महज 20 फीसदी है, ये विश्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है। यह साफ तौर पर जाहिर करता है कि योग्य महिलाओं के वर्कफोर्स में शामिल होने के लिए अवसरों में कितना भारी गैप है। और कोविड-19 ने इस अंतर को पाटने के बजाय और बढ़ा दिया है। हमने देखा है कि महामारी के इस दौर में पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने ज्यादा नौकरियां गंवाई हैं। बात एडटेक क्षेत्र की करते हैं।

इसमें वैश्विक स्तर पर दूरगामी प्रभाव डालने की ताकत है, इसके लिए इनोवेशन लगातार जरूरी हैै और अब यह स्थापित हो चुका है कि कुशल, विविधताओं भरे और समावेशी वर्कफोर्स के साथ बिजनेस ज्यादा इनोवेटिव और मुनाफे वाले होते हैं। एडटेक के इस इकोसिस्टम में महिलाओं की सक्रिय रूप से भागीदारी बढ़ाकर और उनकी प्रतिभा को निखारने से बड़ा अंतर आएगा और इसके सकारात्मक परिणाम होंगे। भारत में एडटेक कंपनियों की संख्या विश्व में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा है और लगातार फल-फूल रही है।

सांस्कृतिक परिवर्तन के दौर से गुजर रहे दिन-प्रतिदिन के बिजनेस के साथ पिछले एक दशक में यह क्षेत्र लगातार विकास कर रहा है। एक वर्ग जिसने इस परिवर्तन को सुनिश्चित किया है, वह महिलाएं ही हैं। शिक्षा का क्षेत्र महिलाओं को फ्लेक्सिबिलटी के साथ नौकरियां पाने में मदद कर सकता है। ये काम में संतुष्टि, सम्मान और असीमित अवसर भी दे सकता है। इसके अलावा आज के अनिश्चितता भरे दौर में समानुभूति से भरी हुई लीडरशिप बहुत जरूरी है और महिलाएं इसे आगे ले जा रही हैं।

मैं खुशनसीब रही कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रति अपने जुनून को कायम रख पाई, पर हर महिला को ऐसे अवसर नहीं मिल पाते। मैं ऐसे घर में पली-बढ़ी, जहां मेरा लड़की होना कभी भी मेरे सपनों या लक्ष्यों की राह में बाधा नहीं बना। यहां तक कि मेरे माता-पिता ने कम उम्र से ही खेलों के प्रति प्रोत्साहित किया और इसने वाकई मुझे एक व्यक्ति के तौर पर, एक शिक्षक और आज एक उद्यमी के तौर पर खड़ा किया। तमाम भेदभाव झेलने के बाद भी महिलाएं हमेशा मजबूती के साथ ही उभरी हैं।

कोविड लॉकडाउन के वक्त महिला एजुकेटर्स तकनीकी आधुनिकताओं के प्रति सबसे तेजी से बदलीं और इस न्यू नॉर्मल की जरूरत के हिसाब से खुद को उस रूप में ढाला। इस एडटेक क्षेत्र ने महिलाओं को काम में लचीलेपन, तकनीक के साथ हाईब्रिड दुनिया में आगे बढ़ने और प्रभाव पैदा करने के अवसर भी दिए हैं। इसके साथ ही टेक से जुड़ी शिक्षा सीखने का मुख्य माध्यम बन रही है, कामकाज की लोकेशन या घरेलू जिम्मेदारियों की वजह से कई महिलाएं वर्कफोर्स से बाहर हो रही थीं, लेकिन अब वे लौट रही हैं।

रुकावटों के बावजूद, महिलाएं लगातार खुद को आगे बढ़ाने के लिए प्रयास कर रही हैं, दूसरों को भी प्रेरित कर रही हैं। इसी तरह की बाकी इंडस्ट्री में भी महिला लीडर्स दूसरों को सलाह देने के साथ प्रोत्साहित कर रही हैं। आज जो चीज उन्हें प्रेरित करती है, उससे आगे चलकर महिला लीडरशिप वाले डिजिटल साम्राज्य का उदय हो सकता है। हालांकि भारतीय एडटेक क्षेत्र को समावेशी और न्यायसंगत बनाने के लिए अभी एक लंबा रास्ता तय करना है और इसमें तेजी लाने के लिए महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना जरूरी है।

21% एडटेक स्त्रियों के
दुनियाभर में मौजूद 800 एडटेक कंपनियों में 21 फीसदी महिलाओं ने शुरू की हैं और तकरीबन 13% कंपनियों की सीईओ या को-सीईओ महिलाएं हैं। महिला लीडर्स में संवेदनाओं के साथ-साथ तर्क के सही संतुलन की अद्भुत क्षमता होती है। शिक्षा का क्षेत्र वाकई महिलाओं को सशक्त कर सकता है।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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