गैंगस्टर्स की कहानी-1

यूपी का वो माफिया जिसे नेपाल के बदमाश ने जेल में थप्पड़ मारा तो उसे घर पहुंचने से पहले गोली मार दी …

दिसंबर 2004 का वह समय था। नेपाल के भैरहवा के शातिर अपराधी जीतनारायण मिश्र ने गोरखपुर जेल के अंदर एक छात्रनेता को थप्पड़ मार दिया। छात्रनेता कुछ दिन बाद जमानत पर बाहर आया। उधर जीतनारायण को बस्ती जेल भेज दिया गया। 7 अगस्त 2005 को जमानत मिल गई। जीतनारायण अपने बहनोई गोरेलाल के साथ संतकबीरनगर के बखीरा जाने के लिए जीप पर बैठा। जैसे ही वह उतरा कार से आए बदमाशों ने घेर लिया और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। 70 सेकण्ड के अंदर जीतनारायण और गोरेलाल जमीन पर पड़े थे। मर चुके थे।

ये फायरिंग करने वाला वही छात्रनेता था जिसे 8 महीने पहले जीतनारायण मिश्र ने एक थप्पड़ मार दिया था। नाम है विनोद उपाध्याय। विनोद के अपराधों की लिस्ट और राजनीतिक पहुंच लंबी है। गैंगस्टर से पहले वह छात्रनेता था। जननेता बनना चाहता था लेकिन बन गया गोरखपुर का सबसे बड़ा माफिया। गैंगस्टर्स की कहानी सीरीज की पहली कहानी में आज बात होगी विनोद उपाध्याय की…

विनोद जिसे चाहते वह अध्यक्ष बनता
1970 के दशक में गोरखपुर की राजनीति गोरखपुर यूनिवर्सिटी से चलने लगी थी। हरिशंकर तिवारी, बलवंत सिंह और वीरेंद्र प्रताप शाही जैसे छात्र नेता राजनीति की मुख्यधारा में आ गए। इसके बाद यह ट्रेंड ही बन गया। लड़के यूनिवर्सिटी में पढ़ने जाते। कुछ अपना उद्देश्य हासिल करते और कुछ बाहुबली, नेता या माफिया बनकर निकलते। विनोद उपाध्याय दूसरी कैटेगरी में आते हैं।

1970 के दशक में जेपी के कारण गोरखपुर यूनिवर्सिटी में राजनीति शुरू हो गई। हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही जैसे बाहुबली नेता निकलकर सामने आए।
1970 के दशक में जेपी के कारण गोरखपुर यूनिवर्सिटी में राजनीति शुरू हो गई। हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही जैसे बाहुबली नेता निकलकर सामने आए।

विनोद ने चुनाव लड़ने के बजाय लड़वाने पर भरोसा किया। 2002 में गोरखपुर यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष के पद पर अपने एक साथी को लड़वाया। वह चुनाव जीत गए। यहां से विनोद की पहुंच राजनीति में बड़े-बड़े लोगों से हो गई। 2004 में फिर से एक प्रत्याशी उतारा लेकिन लिंगदोह समिति के तय नियमों की वजह से वह चुनाव नहीं लड़ सके। लोग बताते हैं कि प्रत्याशी की उम्र अधिक थी।

नए लड़कों के समर्थन से बना ली गैंग
यूनिवर्सिटी से करीब 10 साल जुड़े रहने के कारण विनोद ने छात्रों की एक बड़ी गैंग बना ली। यह वह वक्त था जब गोरखपुर में जातीय आधार पर गैंग हुआ करती थी। हरिशंकर तिवारी ब्राह्मणों के रॉबिनहुड थे और विनोद उनके खास चेले। हरिशंकर तिवारी के चेलो में श्रीप्रकाश शुक्ला भी थे। 1997 में ठाकुरों के नेता और महाराजगंज जिले के बाहुबली वीरेंद्र प्रताप शाही को श्रीप्रकाश ने लखनऊ में गोलियों से भून दिया था।

यह वह वक्त था जब विनोद का नाम अपराध जगत में नहीं दर्ज था लेकिन यह सब देखकर अपराध करने की हिम्मत आ गई। श्रीप्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर के बाद विनोद उपाध्याय सत्यव्रत राय के खास हो गए। ये सत्यव्रत राय कभी श्रीप्रकाश को सलाह देने वाले बताए जाते थे। दोनो साथ हुए तो अपराध में नाम आने लगा, 1999 में एक के बाद एक दो मुकदमा गोरखनाथ थाने में दर्ज हो गया। पहला धमकी से और दूसरा दलित के साथ मारपीट का मुकदमा दर्ज हुआ। कुछ सालों बाद पैसे के लेनदेन को लेकर सत्यव्रत से झगड़ा हो गया। यहां से दोनों दुश्मन हो गए।

बाहुबली हरिशंकर तिवारी का हाथ विनोद के सिर पर था इसलिए वह अपराध के बाद भी बच जाते थे।
बाहुबली हरिशंकर तिवारी का हाथ विनोद के सिर पर था इसलिए वह अपराध के बाद भी बच जाते थे।

हिन्दू युवा वाहिनी के नेता को सरेआम पीटा
रेलवे के ठेकों के अलावा विनोद एफसीआई का भी ठेका लेते थे। एकबार ठेके को लेकर ही हिन्दू युवा वाहिनी के सुशील सिंह से विवाद हो गया। विनोद और उनके लोग दिन में दो बजे सुनील सिंह को उठा ले आए। उन्हें गोरखपुर शहर के अंदर विजय चौराहे से गणेश होटल तक पीटते हुए ले गए। सुशील छोड़ देने की विनती कर रहे थे लेकिन पीटने वालों को तरस नहीं आया। बाद में मामला दर्ज हुआ पर कार्रवाई नहीं हुई।

बसपा के जरिए राजनीति में शुरुआत
विनोद उपाध्याय ने अपनी राजनीति की शुरुआत बसपा से की। बसपा महासचिव सतीश मिश्रा से नजदीकी के कारण पार्टी ने विनोद को गोरखपुर का प्रभारी बना दिया। 2007 में गोरखपुर सदर सीट से प्रत्याशी बनाया। मायावती खुद विनोद के समर्थन में रैली करने गोरखपुर गई लेकिन जब नतीजे आए तो विनोद चौथे स्थान पर रहे। भाजपा के डॉ राधा मोहन दास अग्रवाल लगातार दूसरी बार सदर सीट से विधायक बन गए।

विनोद उपाध्याय के समर्थन में मायावती ने रैली की थी लेकिन वह डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल को नहीं हरा सके।
विनोद उपाध्याय के समर्थन में मायावती ने रैली की थी लेकिन वह डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल को नहीं हरा सके।

पीडब्ल्यूडी कांड
2007 तक विनोद पर 9 मुकदमें हो चुके थे। कई बार जेल जा चुके थे। 2007 में सिविल लाइंस इलाके में विनोद उपाध्याय गैंग पर लाल बहादुर गैंग ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। विनोद गैंग के लोगों को पिस्टल निकालने तक का वक्त न मिला। गोलियां गाड़ियों के चीरती हुई शरीर में घुसने लगी। गोड़ियों की तड़तड़ाहट थमती उसके पहले ही विनोद गैंग के रिपुंजय राय और देवरिया के सत्येंद्र की सांस थम गई थी। इस मामले में केस लिखा गया अजीत शाही, संजय यादव, संजीव सिंह, इंद्रकेश पांडेय समेत 6 लोगों के खिलाफ। लाल बहादुर को आरोपी नहीं बनाया गया।

एक के बाद एक अपराध
विनोद के खिलाफ 2007 में लखनऊ के हजरतगंज थाने में हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ। 2008 में हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज हुआ। एक तरफ पुलिस जांच कर रही थी और दूसरी तरफ विनोद अपराध करते जा रहे थे। इस दौरान विनोद की नजर विवादित जमीनों पर टिक गई। कई जमीनें अपने और अपने लोगों के नाम करवा ली। दूसरे गैंग में क्या चल रहा इसे पता करने के लिए हर गैंग में विनोद ने चालाकी के साथ अपने लोगों की एंट्री करवा दी।

17 जुलाई 2020 को गोरखपुर पुलिस ने विनोद को लखनऊ में गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद से वह जेल में ही हैं।
17 जुलाई 2020 को गोरखपुर पुलिस ने विनोद को लखनऊ में गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद से वह जेल में ही हैं।

दो हत्याओं का बदला
लाल बहादुर यादव राजनीति में आ गए। पिपरौली के ब्लॉक प्रमुख बन गए। मई 2014 को गोरखपुर यूनिवर्सिटी आए तो गेट के सामने गोली मारकर हत्या कर दी गई। मौत का बदला मौत के रूप में पूरा हो गया। गोरखपुर कैंट पुलिस ने विनोद उपाध्याय समेत कुल 14 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया। तीन फरार हैं बाकी 14 इस वक्त जेल में हैं।

जेल गए पर रौब कम न हुआ
विनोद पर 2014 में हत्या का प्रयास, आर्म्स एक्ट, गैंगस्टर एक्ट के तहत केस दर्ज हुआ। 2020 आते-आते विनोद पर गंभीर धाराओं में दर्ज मुकदमों की संख्या 25 पहुंच गई। जमानत पर छूटे तो फरार हो गए। पुलिस ने 25 हजार का इनाम घोषित कर दिया। 17 जुलाई 2020 को पुलिस ने विनोद को गोमतीनगर के विपुल खंड से गिरफ्तार कर लिया। यहां से विनोद और उनके लोगों की जमीनों से कब्जा छुड़वाने में लग गई।

छोटा भाई भी दबंग
गोरखपुर में आपराधिक खबरों को कवर करने वाले पत्रकार विष्णु त्रिपाठी ने बताया कि “विनोद के पांच भाईयों में तीन दबंग हैं। विनोद के सबसे छोटे भाई संजय उपाध्याय ने एकबार असुरन चौकी पर एक पुलिसवाले को थप्पड़ मार दिया। इस थप्पड़ के बाद पुलिस की नजर में चढ़ गए। राजनीतिक पार्टियों ने भी इसके बाद किनारा करना शुरू कर दिया।”

पुलिस अभी तक विनोद उपाध्याय की करीब 2 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त कर चुकी है। विनोद के गैंग के लाल बाबू यादव की दो कार सहित 13 लाख की संपत्ति, सूरज पासवान का एक ट्रैक्टर, पक्का मकान, अर्जुन पासवान की चार, चार पहिया गाड़ी, जमीन के साथ 96 लाख रुपए की संपत्ति जब्त कर ली है। फिलहाल विनोद नाम का सूरज अस्त होने की दिशा में अग्रसर है।

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