जानिए, नाराज होने पर क्या करते हैं नेता:गुस्सा काबू करने के लिए योगी तीखा बोलते हैं, अखिलेश व्यंग्य करते हैं और प्रियंका बार-बार चश्मा उतारती-पहनती हैं

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के तीखे बयान, सपा अध्यक्ष अखिलेश के व्यंग्य, बसपा सुप्रीमो की खामोशी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका के बार-बार चश्मा उतारने और पहनने के क्या मायने हैं? क्या इसमें चुनावी नतीजों का कुछ रहस्य भी छिपा है? इसका जवाब हां में है। शायद सुनकर आपको यकीन नहीं हो। दैनिक भास्कर के पर्सनालिटी एक्सपर्ट डॉ. पवन राठी और अपराध मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉ. राजू टंडन ने चुनाव की घोषणा के बाद से 7वें चरण की वोटिंग तक प्रमुख नेताओं के हाव-भाव और उनके बयानों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया।

नतीजा निकला कि अखिलेश बहिर्मुखी हैं, जबकि योगी, मायावती और प्रियंका गांधी अंतर्मुखी स्वभाव वाले हैं। अखिलेश का एंगर मैनेजमेंट बाकी नेताओं से बेहतर है। वह इसे ह्यूमर के साथ मैनेज कर लेते हैं, जबकि योगी भड़काऊ शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। प्रियंका असहज होती हैं। वहीं मायावती लोगों की बात को अनसुना करके चल देती हैं। UP चुनाव 2022 में अखिलेश यादव की छवि लोगों के बीच सबसे मजबूत है। योगी दूसरे और मायावती आखिरी पायदान पर हैं।

नार्सिसिज्म (आत्ममुग्धता), अंतर्मुखी-बहिर्मुखी व्यक्तित्व, एंगर मैनेजमेंट आदि पैमानों पर दैनिक भास्कर विशेषज्ञों ने इन बड़े नेताओं को परखा। इसके लिए इन चार नेताओं की सभाओं, रैलियों, प्रेस कॉन्फ्रेंस से लेकर जनसभाओं के सौ से ज्यादा वीडियो देखे। पढ़िए, आपके नेताओं का व्यक्तित्व कैसा सामने आया…

1. एंगर या स्ट्रेस मैनेजमेंट
एंगर कहें, स्ट्रेस कहें या फिर कहें तनाव। यह सब लगभग एक ही हैं। नेताओं में एंगर या स्ट्रेस मैनेजमेंट के अपने तरीके होते हैं। कोई विपक्ष पर हमलावर होकर अपना तनाव दूर कर लेता है, तो कोई नेता खुद में खोकर तनाव मुक्त होने का प्रयास करता है। इस मामले में सबसे मजबूत व्यक्तित्व अखिलेश का है। वे चुनाव की चिंता, सरकार बनने या न बनने की स्थिति जैसे कई तरह के तनाव ह्यूमर इस्तेमाल कर निकाल लेते हैं, जबकि योगी इसी के लिए शुद्ध हिंदी या उर्दू के ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने लगते हैं जिससे गुस्सा कम हो सके। अब आपको बताते हैं कि कौन नेता कैसे अपना एंगर मैनेज करता है..

गुस्से को हंसकर या हंसाकर कंट्रोल करते हैं अखिलेश

अखिलश ह्यूमर का सहारा लेकर स्थितियों को अपने हक में करते हैं।
अखिलश ह्यूमर का सहारा लेकर स्थितियों को अपने हक में करते हैं।

अखिलेश यादव : वो अपनी सभाओं या प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान हिंदी और अंग्रेजी के शब्दों का मिला-जुला इस्तेमाल कर रहे हैं। वे कई शब्दों पर अटकते भी हैं। यह स्थिति तनाव के कारण होती है। उन्हें देखकर लगता है कि वो मोदी-योगी जैसे नेताओं जैसा प्रखर वक्ता बनने का प्रयास करते थे। अब उन्होंने खुद को स्वीकार कर लिया है। इसलिए वे लोगों से बात करते हुए जब अटकते हैं तो ह्यूमर का इस्तेमाल करने लगते हैं। ऐसा करके लोगों से आसानी से जुड़ पाते हैं। लोगों को उनका ह्यूमर पसंद भी आ रहा है। ऐसा करके वे खुद को सबसे बेहतर दिखाना चाहते हैं।

क्रोध में योगी तीखी भाषा का इस्तेमाल करते हैं

योगी गुस्से में भारी शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।
योगी गुस्से में भारी शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।

योगी आदित्यनाथ : योगी अपना एंगर मैनेज करने के लिए अपने भाषणों में ऐसा शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे लोग चिढ़ें नहीं। उनके वीडियो देखकर पता चलता है कि वे संभवत: अपना क्रोध नियंत्रित करने के लिए किताबें पढ़ना पसंद करते होंगे। वे अपने भाषणों में गजवा-ए-हिंद, गर्मी निकालना, शांत कर देना, बुलडोजर चलवाना जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर एक तरह से अपना गुस्सा नियंत्रित कर रहे हैं। वे ऐसा करके लोगों की अंदर छिपी भावनाओं को पूरा करने वाले हीरो बनने का प्रयास कर रहे हैं।

गुस्से में प्रियंका बार-बार चश्मा पहनती और उतारती हैं

प्रियंका गांधी एंगर मैनेजमेंट के लिए बार-बार चश्मा उतारती-पहनती हैं।
प्रियंका गांधी एंगर मैनेजमेंट के लिए बार-बार चश्मा उतारती-पहनती हैं।

प्रियंका गांधी : एंगर मैनेजमेंट या अपने क्रोध को नियंत्रित करने के मामले में प्रियंका थोड़ी कमजोर हैं। उनके व्यवहार में तनाव या कहिए एक तरह का डर हमेशा झलकता रहता है। उदाहरण के तौर पर प्रियंका जब भी लोगों से बात करती हैं, तो बार-बार अपना चश्मा पहनती हैं, फिर उतार देती हैं। वे ऐसा कई बार करती हैं। यह दर्शाता है कि वे लोगों से बात करते समय सहज नहीं हैं, फिर भी सहज होने के प्रयास कर रही हैं।

उनके भाषणों से या प्रेस कॉन्फ्रेंस में लोगों से बात करने के दौरान ऐसा लगता है कि वे रिसर्च करके आई हैं, लेकिन लोगों को भूल जाती हैं। इसीलिए बार-बार चश्मा पहनकर नाम पढ़ती हैं, फिर बात करती हैं। उनका व्यवहार ठीक वैसा ही है जैसे परीक्षा के कुछ दिन पहले की तैयारी की जाती है, ताकि किसी भी तरह सिर्फ पासिंग मार्क मिल जाएं। स्ट्रेस के कारण वे किसी एक विषय को टारगेट न करके सब चीजों को मिक्स करती हैं।

नाराज होने पर मायावती बोल ही नहीं पातीं

वे बिना तैयारी के बोल नहीं पातीं। लोगों का सामना नहीं कर पातीं।
वे बिना तैयारी के बोल नहीं पातीं। लोगों का सामना नहीं कर पातीं।

मायावती : उनके व्यवहार में अब सबसे ज्यादा एंग्जायटी दिखती है। वे बिना तैयारी के बोल नहीं पातीं। लोगों का सामना नहीं कर पातीं। उनके अंदर किसी तरह फोबिया विकसित हो गया है। इसलिए वे पहले से तैयारी करके लोगों के सामने आती हैं। उतना ही बोलती हैं, जितना लिखा है। यह इलेक्शन का फोबिया भी हो सकता है या उनके भीतर किसी और चीज का डर भी कह सकते हैं।

यह वजह से कि वे जितनी देर लोगों के सामने होती हैं, पूरा बैठे-बैठे नोट्स पढ़ने में निकाल देती हैं। लोगों से आई कॉन्टेक्ट बनाकर बात नहीं करतीं। उनका व्यवहार देखकर लग रहा है मानों वे अब खुद को कमजोर मानने लगी हैं और इस चिंता या तनाव का मैनेजमेंट भी नहीं कर पा रही हैं।

2. नार्सिसिज्म यानी आत्ममुग्धता
नार्सिसिज्म एक तरह का पर्सनालिटी डिसऑर्डर (व्यक्तित्व विकार) है, लेकिन नेताओं में यह विकार गुण की तरह काम करता है। राजा-महाराजा नार्सिसिज्म से ग्रस्त हुआ करते थे। इसलिए कहते हैं जिन लोगों में नार्सिसिज्म विकार होता है, नेता वही बनते हैं। अब नेताओं में नार्सिसिज्म को समझिए…

जानिए क्यों अखिलेश सवालों पर भड़क जाते हैं?

अखिलेश यादव : 14 जनवरी से लेकर 5 मार्च तक अखिलेश के 25 वीडियो देखने पर उनके व्यक्तित्व में सबसे ज्यादा नार्सिसिज्म दिख रहा है। यानी वह खुद को सर्वश्रेष्ठ समझते रहे। वे जो कर रहे हैं, जो कह रहे हैं, उसे ही सही मान रहे हैं। अखिलेश अपने भाषणों में हिंदी और अंग्रेजी के शब्दों को मिक्स कर रहे हैं। वे लोगों को जोड़ने के लिए ह्यूमर का इस्तेमाल भी कर रहे हैं। नार्सिसिज्म हावी होने के चलते ही वे टीवी इंटरव्यू, प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुद के खिलाफ पूछे गए सवालों पर अक्सर भड़क जाते हैं। अखिलेश के व्यवहार से ऐसा लगता है कि उन्हें दूसरों की बात सुनने की आदत नहीं है।

योगी क्यों तीखे बयान देते हैं?
योगी आदित्यनाथ :
 उनके व्यक्तित्व में भी नार्सिसिज्म दिखता है, लेकिन अखिलेश से कम। नार्सिसिज्म के चलते ही वे कई बार पार्टी के खिलाफ भी बोलते नजर आते हैं। ये उनका बेसिक नेचर है। वे डॉमिनेटिंग लगते हैं, उनका मानना है कि उन्होंने जो सोच लिया, वही सही है। हालांकि 2017 के भाषण के हिसाब से देखें तो उनके भीतर नार्सिसिज्म कम हुआ है। पहले वे लोगों के सवाल पर भड़क उठते थे। अब शांत रहकर सुनते हैं। फिर ठंडे दिमाग से जवाब देते हैं। अब वे हिंदुत्व के साथ विकास की बात भी करते हैं। यह उनके भीतर के नार्सिसिज्म कम होने का संकेत है। इसके चलते वे अपना क्रोध दिखाने के लिए हर भाषण में बुल्डोजर, गुंडागर्दी खत्म करना, गर्मी निकालना, गजवा-ए-हिंद जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।

प्रियंका खुद को इंदिरा की तरह दिखा रही हैं
प्रियंका गांधी : 
नार्सिसिज्म प्रियंका पर भी हावी है। इस कदर हावी है कि वे अपने सामने बैठे लोगों को जलील करने से परहेज नहीं करतीं। फिर चाहे वे मोदी, योगी, अखिलेश या मायावती ही क्यों न हों। नार्सिसिज्म के चलते वे खुद को अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह देख रही हैं। खुद को विशिष्ट समझ रही हैं। उनके वीडियो देखने पर पता चलता है कि ज्यादातर मामलों में वे सवाल पूछने वालों पर भड़क उठती हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि वो जो कह रही हैं, सिर्फ वही सही है। अब भी खुद को विशिष्ट समझती हैं। लो स्टेटस वाले लोगों से मिलना नहीं चाहती हैं।

माया को विरोध बिलकुल पसंद नहीं
मायावती :
 वीडियो में उनका व्यवहार देखने से पता चलता है कि नार्सिसिज्म उन पर इतना हावी है कि वे अब हर किसी को तुच्छ समझने लगी हैं। इसी वजह से वे किसी भी स्तर पर अपना विरोध सुनना तक पसंद नहीं कर रहीं। उन्होंने जो कहा वही सर्वमान्य सत्य होना चाहिए। नार्सिसिज्म उन पर इतना हावी हो चुका है कि वे अब खुद से बाहर निकलना ही नहीं चाहती हैं।
3. बहिर्मुखी व्यक्तित्व
व्यक्तित्व दो तरह का होता है… बहिर्मुखी और अंतर्मुखी व्यक्तित्व। अंतर्मुखी यानी खुद में खोए रहना और बहिर्मुखी का मतलब है, लोगों के सामने खुद को पूरी तरह खोलकर रख देना। दोनों प्रकार के व्यक्तियों की रुचि, रुझान एवं कार्य प्रणाली में भारी अंतर होता है। बहिर्मुखी व्यक्ति ललक-लिप्सा, विषय भोगों तथा पद-प्रतिष्ठा आदि की पूर्ति में उलझे रहते हैं, जबकि अंतर्मुखी व्यक्ति का स्वभाव और आचरण ठीक इसके विपरीत देखा जाता है। नेताओं के लिए बहिर्मुखी होना अच्छा और अंतर्मुखी होना बुरा है। अब नेताओं को बहिर्मुखी और अंतर्मुखी के हिसाब से समझते हैं…

मुलायम की परछाई से बाहर निकले अखिलेश

अखिलेश यादव : उनका व्यक्तित्व बाकी नेताओं की अपेक्षा सबसे अधिक बहिर्मुखी (एक्स्ट्रोवर्ट) है। वे अपने मन की बात खुलकर सबके सामने रख रहे हैं। उनकी बॉडी लेंग्वेज, हाव-भाव में बहुत बदलाव दिख रहा है। डॉ. राठी बताते हैं कि 2017 से पहले के वीडियो में वे अंडर शेडो दिखते थे। यानी वे खुद को मुलायम सिंह की परछाई वाला नेता मानते थे। अब उनका व्यवहार स्वतंत्र नेता वाला दिख रहा है।

उनके बोलचाल से लगता है, जैसे वे परिवारवाद की छवि से उभरने का प्रयास कर रहे हैं। उनके व्यक्तित्व में पहले जो निगेटिविटी थी, वह कम दिख रही है। अखिलेश के सामने जब भीड़ होती है, तो वो ज्यादा कॉन्फीडेंट होते हैं। अपने रथ से निकल हाथ हिलाकर, शब्दों के जरिए लोगों से जुड़ना, उनके बहिर्मुखी व्यक्तित्व की ओर इशारा करता है।

हमेशा सीमित दायरे में बात करते हैं योगी
योगी आदित्यनाथ :
 उनका व्यक्तित्व अंतर्मुखी है। वे लोगों को सामने खुद की उतनी ही छवि प्रस्तुत करते हैं, जितना जरूरी समझते हैं। बात करते समय नपे-तुले शब्दों का इस्तेमाल करना, सधे हुए वाक्य बोलना उनके अंतर्मुखी होने का प्रमाण है। योगी जब किसी से बात करते हैं, तो उनके हाव-भाव नियंत्रित होते हैं। उनके ब्रॉड इमोशन नहीं दिखते। वे सीमित दायरे में रहकर बात करते हैं। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक सब कुछ तय समय पर करना उनके अंतर्मुखी होने का प्रमाण है।

प्रियंका बोलने का दायरा बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं
प्रियंका गांधी : 
उनका व्यक्तित्व अंतर्मुखी है। इसलिए प्रियंका ने बाकी नेताओं से कम सभाएं की हैं। बोली भी कम हैं। वे एक सीमित दायरे में रहकर बोलना पसंद करती हैं। अंतर्मुखी व्यक्तित्व के चलते वे लोगों से आसानी से जुड़ नहीं पाती हैं। हालांकि, वे अब अपने सीमित दायरे से बाहर निकलना चाहती हैं। उनके भाषण या प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके वीडियो देखकर ऐसा लगता है, मानो वे बहिर्मुखी होने के प्रयास कर रही हैं।

आत्मविश्वास खो रही हैं मायावती

मायावती : नेताओं में सबसे ज्यादा अंतर्मुखी अगर कोई है तो वह मायावती हैं। पिछले पांच साल का उनका व्यवहार देखा जाए, तो अब उन्होंने खुद को एक निश्चित दायरे में कैद कर लिया है। इसी वजह से वो अपना आत्मविश्वास भी खोती जा रही हैं। पहले वे जिस तरह खुद को राष्ट्रीय नेता दिखाती थीं। अब वे खुद को विशिष्ट समूह का मानने लगी हैं। अब वे खुद से बाहर नहीं निकलना चाहतीं।

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