बुद्धिमान व्यक्ति को भी अन्य विद्वान लोगों की संगत में रहना चाहिए

कहानी

नैमिष वन में कई साधु-संत इकट्ठा हुए थे और शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर रहे थे। वे लोग ब्रह्मा जी की आज्ञा से ये काम कर रह थे।

साधु-संत जानना चाहते थे कि परमतत्व क्या है? प्रकृति कैसे बनी है? मनुष्य के आंतरिक संचालन में प्रकृति की क्या भूमिका होती है? ऐसे गहरे प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए ब्रह्मा जी ने कहा, ‘आप सभी नैमिषारण्य में जाइए। तपस्या कीजिए और एक यज्ञ करिए, लेकिन ध्यान रखना केवल इतने से काम नहीं चलेगा। वहां वायु देव आएंगे। उस समय आपके मन में जो भी प्रश्न हों, वह सब वायु देव से पूछना।’

ब्रह्मा जी की आज्ञा से साधु-संतों ने तप किया तो वहां वायु देव प्रकट हुए। वायु देव ने संतों को प्रवचन देना शुरू किए। उन्होंने ज्ञान की कई बातें बताईं, खासकर शिव जी के बारे में। वायु देव ने कहा, ‘मैंने पहले पशु, पाश और पशुपति का जो ज्ञान प्राप्त किया है, वह सब मैं आपको बताता हूं। वस्तु के विवेक का नाम ज्ञान है। वस्तु के तीन प्रकार हैं। जड़ यानी प्रकृति। चेतन यानी जीव। इन दोनों का जो नियंत्रक है, वही परमेश्वर है। इन्हें ही पशु, पाश और पशुपति कहा जाता है।’

साधु-संत प्रश्न पूछते गए और वायु देव उनके उत्तर देते गए। अंत में वायु देव ने कहा, ‘मैंने जो ज्ञान आपको दिया है, वह मुझे ब्रह्मा जी के मुख से सुनने को मिला था। मैंने आपको बता दिया।’

सीख

ऋषि-मुनि स्वयं विद्वान थे, उन्होंने तप किया, यज्ञ किया, लेकिन फिर भी उन्हें जीवन से जुड़े कुछ प्रश्नों के उत्तर मालूम नहीं थे। तब उन्हें वायु देव को आमंत्रित करना पड़ा। वायु देव के सत्संग से उन्हें जीवन के उलझे हुए प्रश्नों के उत्तर मिल गए। हम कितने भी पढ़े-लिखे हों, बुद्धिमान हों, बड़े पद पर हों, लेकिन जीवन के कुछ प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए गुरु और विद्वान लोगों की संगत जरूर करनी चाहिए। सत्संग का अर्थ है अच्छा समय बिताना। इसलिए अच्छे लोगों का सत्संग जरूर करें।

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