नेपाल की आर्थिक स्थिति खराब … भारत को बड़ा नुकसान; नेपाल ने सभी गैर-जरूरी सामानों का इंपोर्ट किया बैन, सिर्फ 6 महीने का विदेशी पैसा बचा
श्रीलंका के बाद अब 3 करोड़ की आबादी वाले नेपाल में आर्थिक हालात खराब होने लगे हैं। फाइनेंशियल ईयर जुलाई 2021-जुलाई 2022 में लगातार इसके फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व यानी विदेशी मुद्रा भंडार में भारी कमी आई है। अब नेपाल के पास सिर्फ 6 महीने के लिए सामान को इंपोर्ट करने का पैसा बचा है।
फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व यानी विदेशी करेंसी, नाम से ही साफ है कि इससे करेंसी से दुनिया के देशों से खरीद की जाती है। सबसे ज्यादा खरीद डॉलर में होती है। अब नेपाल के पास पिछले 8 महीने में इसके विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 16% की कमी हुई है।
दरअसल, नेपाल अपनी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए सबसे अधिक भारत पर निर्भर है। नेपाल पर्वतीय देश है जिसकी वजह से यहां खेती भी सही से नहीं हो पाती है। इंडस्ट्री तो न के बराबर है। यह एक लैंडलॉक कंट्री है यानी किसी भी समुद्र से सटा हुआ नहीं है। पेट्रोल, डीजल, गैस, धान, चावल, तेल जैसे जरूरी सामान भी नेपाल को भारत से इंपोर्ट करना पड़ता है। ऐसे में अब इंपोर्ट के बैन होने से भारत को बड़ा नुकसान हो रहा है। वहीं, नेपाल में खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ गए हैं।
ऐसे में जानते हैं कि नेपाल की मौजूदा स्थिति क्या है? इस संकट के पीछे की वजह क्या है? क्या श्रीलंका की राह पर नेपाल चल पड़ा है? और नेपाल द्वारा इंपोर्ट बैन किए जाने से भारत को कितना नुकसान होने वाला है?
सभी गैर-जरूरी सामानों की खरीद पर रोक
3.68 लाख करोड़ नेपाली रुपए की GDP वाले देश में गहराते आर्थिक हालात को खराब होता देख नेपाल की केंद्रीय बैंक NRB यानी नेपाल राष्ट्र बैंक ने वेहिकल्स और अन्य लग्जरी आइटम्स, गैर-जरूरी सामानों के इंपोर्ट पर रोक लगा दी है। ऐसा कदम भंडार में घटते विदेशी करेंसी के कारण उठाया गया है।
नेपाल के सबसे बड़े अग्रेजी न्यूज पेपर माय रिपब्लिक की रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल राष्ट्र बैंक के प्रवक्ता गुणाकर भट्ट ने कहा है कि सबसे बड़ी चुनौती विदेशी मुद्रा भंडार को बनाए रखना है। इसी की वजह से नेपाल ने दुनिया के देशों से खरीदी जाने वाली सभी गैर-जरूरी सामानों की खरीद पर रोक लगा दी है।
भट्ट के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते घाटे और इंपोर्ट में लगातार बढ़ोतरी की वजह से विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है।
नेपाल के इंपोर्ट पर बैन से भारत को कितना नुकसान
नेपाल अपने कुल इंपोर्ट का 64% हिस्सा भारत से मंगवाता है। 2019 के आंकड़ों के मुताबिक भारत से नेपाल ने 7.7 बिलियन डॉलर का सामान खरीदा। 2020-21 में नेपाल ने भारत से 886 अरब नेपाली रुपए का इंपोर्ट किया। वहीं, नेपाल चीन से अपने कुल इंपोर्ट का 16% हिस्सा मंगवाता है।
नेपाल, भारत से सबसे ज्यादा 17% फ्यूल, ऑयल प्रोडक्ट्स खरीदता है, जबकि आयरन एंड स्टील 9%, इलेक्ट्रोनिक आइटम भी करीब 8% इंपोर्ट करता है। ऐसे में जिस तरह से नेपाल ने सभी गैर-जरूरी सामानों के इंपोर्ट पर बैन लगाया है। यदि यह लंबे समय रहा तो इससे भारत को भी नुकसान होगा।
नेपाल राष्ट्र बैंक ने सीमेंट, खिलौना, खेल के सामान, लकड़ी के आइटम, हेयर क्रीम, जूते, लेदर प्रोडक्ट्स जैसे सामानों के इंपोर्ट के लिए जारी किए जाने वाले लेटर क्रेडिट (LC) पर रोक लगा दी है।
लेटर क्रेडिट का मतलब होता है कि किसी देश का बिजनेसमैन दूसरे देश से सामान खरीदता है तो डिमांड करने वाले देश का बैंक सप्लाई करने वाले देश को गारंटी देता है। यानी यदि कल को सामान खरीदने वाला व्यक्ति पैसा देने से इंकार कर देता है, डिफॉल्ट हो जाता है तो उस देश की बैंक को पैसा देना होगा।
विदेशी मुद्रा भंडार यानी फॉरेन एक्सचेंज को समझ लीजिए
इंटरनेशनल मॉनिटरिंग फंड यानी IMF के मुताबिक किसी भी देश के पास किसी भी तरह का एक्सटर्नल करेंसी होती है वो फॉरेन रिजर्व यानी विदेशी मुद्रा भंडार कहलाता हैं। इसमें गोल्ड और एक्सटर्नल करेंसी यानी दूसरे देशों के पैसे शामिल होते हैं। जैसे डॉलर, यूरो, पाउंड, येन, रूबल, आदि
सबसे अधिक विदेशी मुद्रा भंडार अमेरिकी डॉलर में रखा जाता हैं, क्योंकि यह दुनिया में सबसे अधिक बिजनेस करने वाली करेंसी है।
नेपाल के पास सिर्फ 6 महीने के इंपोर्ट का बचा विदेशी पैसा
नेपाल का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार घटता जा रहा है। पहले विदेशी मुद्रा भंडार 7 महीने के लिए था, लेकिन लगातार बढ़ते इंपोर्ट की वजह से अब नेपाल के पास साढ़े 6 महीने का ही विदेशी मुद्रा भंडार बचा हुआ है।
फरवरी 2022 के मुताबिक नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार में 9.59 बिलियन डॉलर, यानी 1.16 लाख करोड़ नेपाली रुपए बचे हुए हैं। यह जुलाई 2021 में 11.75 बिलियन डॉलर था। वहीं, गलत नीतियों का हवाला देते हुए नेपाल के वित्त मंत्री जनार्दन शर्मा ने NRB के गवर्नर महाप्रसाद अधिकारी को सस्पेंड कर जांच के आदेश दे दिए हैं।
माना जा रहा है कि इसी आर्थिक संकट की वजह से गवर्नर अधिकारी को हटाया गया है। वहीं, नेपाली मीडिया रिपोर्ट्स का दावा है कि अधिकारी वित्त मंत्री के फैसलों से असहमत थे।
ऐसे हालात बनने की वजहें
- इंपोर्ट का बढ़ा बोझ
नेपाल अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए करीब 90% चीजें दूसरे देशों से मंगवाता है। आलम ये है कि नेपाल का सबसे बड़ा एक्सपोर्ट सोयाबीन ऑयल है, लेकिन यह देश सालाना सिर्फ 31,567 टन कच्चा सोयाबीन ही प्रोड्यूस कर पाता है।
यह नेपाली जनसंख्या के एक हिस्से की भी आवश्यकता को पूरा नहीं कर सकता है। इंपोर्ट के मुकाबले देखें तो पहले 6 महीनों में नेपाल का एक्सपोर्ट सिर्फ 118.85 बिलियन नेपाली रुपए का रहा। जिसकी वजह से उसे कुल 880.49 बिलियन नेपाली रुपए का घाटा हुआ।
मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 के पहले 8 महीने में नेपाल का इंपोर्ट 42% बढ़ गया है। नेपाल ने 1147 बिलियन नेपाली रुपए का इंपोर्ट किया है।
- कोरोना ने तोड़ी अर्थव्यवस्था की कमर
नेपाल की आय का सबसे बड़ा स्त्रोत पर्यटक हैं। पिछले दो साल से कोरोना महामारी की वजह से पूरा पर्यटन कारोबार चौपट हो गया है। पर्यटन से नेपाल को सालाना 700 मिलियन डॉलर, यानी 8.5 हजार नेपाली रुपए की कमाई होती है।
हालांकि, मार्च में थोड़ी राहत मिली है। इस महीने नेपाल में 42,000 पर्यटक आए हैं, जिनमें से 15,013 पर्यटक भारत के थे। वहीं, पिछले साल मार्च 2021 में सिर्फ 14,977 विदेशी पर्यटक नेपाल गए।
- GDP का 30% हिस्सा रेमिटेंसेस पर टिका हुआ
कोरोना के समय दुनियाभर के देशों ने विदेशों से आने वाले लोगों पर पाबंदी लगाई। इसकी भी मार नेपाल झेल रहा है, क्योंकि नेपाली लोगों के दूसरे देशों में न जाने की वजह से नेपाल के पास एक्सटर्नल करेंसी नहीं आ पाई।
इस वजह से भी फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व में कमी आई है। नेपाल की GDP का 30% हिस्सा रेमिटेंसेस पर टिका हुआ है।
इसे ऐसे समझे कि यदि भारत से दूसरे देशों में लोग कमाने जाते हैं तो वे यहां पैसा डॉलर या उस देश की करेंसी में भेजते हैं। इससे भारत की फॉरेन एक्सचेंज करेंसी में इजाफा होता है।
इस संकट के लिए जिम्मेदार कौन?
नेपाली न्यूज पेपर काठमांडू पोस्ट से काठमांडू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अच्युत वागले कहा है कि देश आर्थिक संकट में फंस चुका है। हालांकि, अभी ये संकट श्रीलंका के स्तर तक नहीं पहुंचा है।
उन्होंने कहा है कि देश का व्यापार घाटा 18 अरब डॉलर पहुंच गया है। गहराते आर्थिक संकट के पीछे एक्सपर्ट सरकार की नीतियां मान रहे हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि सरकार को समय रहते विदेशी खरीद पर कदम उठाने की जरूरत थी।
वित्त मंत्री जनार्दन शर्मा देश के हालात के लिए राष्ट्र बैंक को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वित्त मंत्री का कहना है कि बढ़ रहे कर्ज को रोकने में बैंक नाकाम रहा। दरअसल, प्राइवेट सेक्टर के कर्ज लेने की सीमा 19% तय की गई थी, लेकिन यह कर्ज बढ़कर 30% के ऊपर पहुंच गया।
नेपाल के बैंकों के पास पैसे की कमी आ गई है। जिस वजह से वह लोन देने में भी असमर्थ हैं। इस वजह से बैंकों ने अपना डिपोजिट रेट बढ़ा दिया है। यानी पहले जितना इंट्रेस्ट बैंक दे रही थी अब उससे ज्यादा दे रही है।
नेपाल सरकार की कमाई का जरिया
नेपाल सरकार अब दोहरे संकट में फंस गई है। एक तरफ उसने लग्जरी आइटम्स के इंपोर्ट पर बैन लगा दिया है। वहीं, दूसरी तरफ सबसे ज्यादा सरकार को रेवेन्यू इन्हीं चीजों से होती है।
पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर टैक्स से मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 के पहले आठ महीनों में सरकार को सबसे अधिक 81.58 बिलियन नेपाली रुपए की आमदनी हुई।
इसके बाद वाहनों पर टैक्स से नेपाल सरकार को 70 बिलियन और आयरन एवं स्टील से 21.38 बिलियन नेपाली रुपए की कमाई हुई। वहीं, इलेक्ट्रिक मशीनरी और इक्विपमेंट से 16.35 बिलियन और प्लास्टिक आइटम्स से 12.77 बिलियन नेपाली रुपए की आमदनी हुई।
श्रीलंका की तरह नेपाल में भी हो सकते गंभीर हालात
श्रीलंका में महंगाई दर 18% के पार पहुंच चुकी है। लोग पेट्रोल, रसोई गैस, केरोसिन खरीदने के लिए घंटों लाइनों में लगने को मजबूर हैं।
देश ने खुद को डिफॉल्ट घोषित कर दिया है। उसका कहना है कि वो विदेशी कर्ज का भुगतान करने की स्थिति में नहीं है। श्रीलंका पर 51 बिलियन US डॉलर का कर्ज है।
अभी नेपाल पर करीब 20 बिलियन US डॉलर का कर्ज है, जिसके लगातार बढ़ने की संभावना है। जिस तरह से नेपाल ने सामानों के इंपोर्ट पर बैन लगा दिया है, उससे देश में मंहगाई दर आसमान छू सकती है।