समस्याएं सुलझाने वाले युवा ही प्रसिद्धि पाते हैं

समस्याएं सुलझाने वाले युवा ही प्रसिद्धि पाते हैं

कुछ किशोर आत्महत्या कर रहे हैं या बच्चों का शोषण हो रहा है। दोनों ही मामलों में हममें से अधिकांश लोग इनके प्रति अपनी सहानुभूति जताते हैं और जिंदगी में आगे बढ़ जाते हैं क्योंकि हमारे पास अपने काम भी हैं।

पर इसी समाज में कुछ ऐसे युवा भी हैं, जो ऐसी समस्याओं पर गहराई से काम कर रहे हैं और ऐसे मुद्दे सुलझाने के प्रयास कर रहे हैं और इन्हीं प्रयासों की बदौलत वह सबकी निगाह में आ रहे हैं। यहां चंद उदाहरण हैं।

तेलंगाना, वारंगल के 26 वर्षीय याकरा गणेश ने “संस्कार’ नाम से डॉल बनाई है, जिसने अब तक सरकारी स्कूल के 60 हजार से ज्यादा बच्चों को “गुड टच-बैड टच’ के बारे में सिखाया है। ये कैसे काम करती है?

अगर कोई व्यक्ति डॉल को ऐसी जगह से छूता है, जहां से नहीं छूना चाहिए, तो डॉल चिल्लाती है, “मत छुओ’। पिछले महीने गणेश ने तेलंगाना के आईटी मंत्री डी. श्रीधर बाबू के सामने संस्कार को आधिकारिक लॉन्च हेतु पेश किया।

अब वो संस्कार 2.0 की तैयारी कर रहे हैं, जो इंसानों जैसी होगी और ज्यादा प्रभावी रूप से इस्तेमाल में आएगी। वो इसके बारे में हैदराबाद स्थित देश के इस सबसे बड़े प्रोटोटाइपिंग सेंटर ‘टी-वर्क्स’ से चर्चा कर रहे हैं, इसे तेलंगाना सरकार ने स्थापित किया है।

चार साल पहले जाकिर हुसैन शेख ने देखा कि एक बच्ची ने पांचवी मंजिल से कूदकर जान दे दी। स्कूल जाने वाली वो बच्ची नोट छोड़कर गई, जिसमें लिखा था कि उसके अपार्टमेंट के अंकल ने उसका शोषण किया, इसलिए वो जिंदगी खत्म कर रही है।

ऐसी बच्चियों को शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से 38 वर्षीय इस बाल अधिकार कार्यकर्ता ने सुरक्षा पर कॉमिक बुक बनाई है।

जागरूकता फैलाने के उनके मिशन के परिणाम आने लगे हैं, डेढ़ साल पहले, जब से पहली बार ये कॉमिक बुक बंटनी शुरू हुई, बच्चियां ऐसे शोषण के बारे में बताने लगी हैं। अब तक 165 सरकारी स्कूल की 12 हजार से ज्यादा बच्चियों को यह बुक बांटी जा चुकी है।

इस साल जुलाई में दृष्टिहीनों के आवासीय स्कूल में एक आठ वर्षीय दृष्टिहीन बच्ची का 25 साल के सफाई कर्मचारी ने शोषण किया। इस घटना से हिल गए जाकिर ने ब्रेल लिपि में भी किताब प्रिंट करवाई। उनके काम से प्रभावित माइक्रोसॉफ्ट ने हाल ही में जाकिर की मदद की है।

टेक्नोलॉजी में हमेशा अंग्रेजी का दबदबा रहा है, ऐसे में लाखों भारतीयों ने खुद को डिजिटली अलग-थलग पाया। डिजिटल दुनिया शायद ही ऐसे छोटे मार्केट वाले गैर-अंग्रेजीदा लोगों की मदद करने की कोशिश करती है, न ही उनकी भाषा की बाधा को तोड़ने की कोशिश करती है और रोजगार के अवसर नहीं देती।

पर शेरिन के. नाम के डिजाइन इंजीनियर ने ब्रेकथ्रू हासिल करते हुए कन्नड़ा नाम से की-बोर्ड विकसित किया है, उनकी कंपनी बेंगलुरु के बाहर स्थापित है, जो दस भाषाओं में टाइपिंग सपोर्ट करता है। इनमें कन्नड़, तेलुगु, तमिल, मलयालम, बांग्ला, ओड़िया, तुलु, संस्कृत, गुजराती, अंग्रेजी है।

देश की 66% आबादी अंग्रेजी टाइपिंग में तंग है, इससे नौकरी के अवसर सीमित हो जाते हैं, अपनी अनोखी डिजाइन के साथ ये कीबोर्ड छह खंडों में बंटा है, इससे बाकी भाषाओं का नेविगेशन आसान हो जाता है, साथ ही दिव्यांगों के लिए भी मददगार है। 699 रु. का ये कीबोर्ड लैपटॉप-कंप्यूटर्स के साथ मोबाइल में एंड्रॉइड और आईओएस प्लेटफॉर्म पर भी सपोर्ट करता है। शेरिन का दावा है कि यह कई लोगों के लिए एक सुलभ तकनीकी मदद है।

ये तीनों उदाहरण बता रहे हैं

1. किसी भी वीभत्स घटना या सामाजिक समस्या के मूकदर्शक न बने रहें।

2. मुद्दे की गहराई में जाएं कि ऐसा क्यों बार-बार हो रहा है।

3. दिमाग को संभावित समाधान तलाशने दें।

4. समाधान को अपने हुनर या किसी और के हुनर से मैच होने दें।

5. अंततः उस समाधान को छोटे स्तर पर आजमाएं कि क्या ये समस्या सुलझाता है या नहीं और धीरे-धीरे विस्तार करें।

फंडा यह है कि समस्याओं पर गौर करें और उन्हें सुलझाने की कोशिश करें, फिर भले ही यह कितनी ही छोटी या स्थानीय क्यों न हो। एक समय के बाद अंततः जाकर दुिनया आपको नोटिस करेगी और तब जाकर आपको अपनी मनचाही प्रसिद्धि मिलेगी।

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