डकैत की कहानी-12:चूल्हे से जलती लकड़ी निकाल कर चुभाती, जंजीरों से बांधकर हंटर मारती; 15 लोगों की एक साथ हत्या की
साल 1964 में उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टिकरी गांव के प्रधान के यहां एक बेटी जन्मी। प्रधानी के साथ पिता सरकारी राशन की दुकान भी चलाते थे। घर में पैसे की कोई कमी नहीं थी। इकलौती बेटी को बड़े लाड़-प्यार से रखते थे। बेटी तीसरी कक्षा में पहुंची, तभी पड़ोसी माधव मल्लाह से प्यार हो गया। तीन-चार साल तक प्यार पनपता रहा फिर अचानक एक दिन वो लड़की माधव मल्लाह के साथ घर छोड़ कर भाग गई।
बेटी के भागने से बाप परेशान हुआ और पुलिस के पास गया। पुलिस लड़की और माधव मल्लाह को दिल्ली में पकड़ लेती है। दिल्ली पुलिस लड़की को बाप के हवाले करती है, बाप महीनेभर के भीतर लड़की की दूसरी जगह शादी कर देता है, लेकिन तभी माधव मल्लाह डैकतों की गैंग के साथ गांव पहुंचता है और लड़की के पति के सीने में बंदूक अड़ाकर कर लड़की को उठा ले जाता है।
आज कहानी उसी लड़की कुसुमा नाइन की जो पुतली बाई के बाद बीहड़ की दूसरी सबसे बड़ी महिला डकैत बनी। जिंदा लोगों की आंखें निकाल लेने वाली कुसुमा 26 साल बाद संन्यासिन कैसे बन गई? आइए जानते हैं…
कुसुमा को प्रेमी माधव ने पहुंचाया बीहड़ों में
13 साल की उम्र में कुसुमा अपने प्यार माधव के साथ घर छोड़ कर भागी। उस समय माधव मल्लाह डाकू विक्रम मल्लाह के संपर्क में आ चुका था। पिता की शिकायत पर कुसुमा और माधव को दिल्ली पुलिस ने पकड़ा और दोनों पर डकैती का झूठा केस लगा दिया।
जेल में 3 महीने बिता कर जब दोनों वापस आए तो पिता ने बदनामी के डर से कुसुमा की शादी पड़ोस के गांव करेली में रहने वाले केदार नाई से कर दी। इधर माधव मल्लाह डाकू विक्रम मल्लाह के पास पहुंच जाता है और उसकी गैंग का सक्रिय सदस्य बन जाता है।
करीब 6 महीने का वक्त बीतता है। साल 1977 में माधव मल्लाह, विक्रम और पूरी गैंग के साथ कुसुमा की ससुराल पहुंच जाता है। उसके पति केदार के साथ माटपीट करता हैं और कुसुमा को उठाकर बीहड़ ले आता है।
बीहड़ में फूलन देवी मिलती है, कुसुमा को खूब परेशान करती है
जिस डाकू विक्रम मल्लाह की गैंग ने कुसुमा का अपहरण किया था। वो विक्रम फूलन देवी का बॉयफ्रेंड था। फूलन नई-नई डकैत बनी थी। गैंग में उसकी फुल वजनदारी थी। जब उस गैंग में कुसुमा आई तो फूलन ने उसे परेशान करना शुरू कर दिया।
फूलन कुसुमा से पूरी गैंग के लिए पानी भरवाती, सबका खाना बनवाती और उसे गुलाम की तरह रखती। इन सब के बाद कुसुमा फूलन देवी और अपने पति माधव से नफरत करने लगी थी, क्योंकि फूलन उसको प्रताड़ित करती और माधव फूलन का ही साथ देता था।
एक दिन फूलन ने विक्रम मल्लाह से कहा, “कुसुमा को हमारे दुश्मन डाकू लालाराम का कत्ल करने के लिए भेजो।” फूलन के कहने पर विक्रम उसे डाकू लालाराम को अपने प्यार में फंसा कर उसका कत्ल करने को कहता है। मजबूरी में कुसुमा को जाना पड़ता है।
लालाराम के साथ कुछ दिन बिताने के बाद कुसुमा उसी की तरफ हो जाती है और उल्टा विक्रम मल्लाह की ही हत्या करवा देती है। मुठभेड़ में विक्रम के साथ कुसुमा का पति माधव भी मारा जाता है। अब कुसुमा लालाराम गैंग की सक्रिय सदस्य बन जाती है।
लालाराम हथियार चलाना सिखाता है फिर बेहमई कांड हो जाता है
लालाराम कुसुमा को अपनी गैंग का मुख्य सदस्य बना लेता है और उसे हर तरह के हथियार चलाने की ट्रेनिंग देता है। इसी बीच लालाराम और कुसुमा के प्यार के चर्चे आम हो जाते हैं। कुसुमा लालाराम की गैंग के साथ मिलकर लूट अपहरण जैसी घटनाओं की अंजाम देने लगती है। इसी बीच वह लालाराम के साथ सीमा परिहार का अपहरण करती है। वही सीमा परिहार जो बाद में बीहड़ की कुख्यात डकैत बन गई थी।
14 मई, 1981 में फूलन देवी डाकू लालाराम और श्रीराम से अपने गैंग रेप का बदला लेने के लिए बेहमई जाती है। दोनों वहां नहीं मिलते, लेकिन फिर भी फूलन ने 22 राजपूतों को लाइन से खड़ा करके गोली मार दी थी। इस घटना ने पूरे देश में सनसनी फैला दी थी। इस कांड के बाद लालाराम और उसकी माशूका बन चुकी कुसुमा बदला लेने के लिए उतावले होने लगे थे।
आग लगी लकड़ी चुभाती, अपहरण किए गए लोगों को हंटर से मारती
बेहमई कांड के एक साल बाद यानी साल 1982 में फूलन आत्मसमर्पण कर देती है। लालाराम और कुसुमा का गैंग एक्टिव रहता है। इसी बीच कुसुमा अपनी गैंग के साथ कई अपहरण करती है। उसकी गिरफ्त से छूट कर आने वाले कुछ अपहरण हो चुके लोगों ने पुलिस को बताया था कि कुसुमा उन लोगों के साथ बहुत बुरा बर्ताव करती थी। चूल्हे में लगी जलती हुई लकड़ी को निकाल कर उनके बदन को जलाती थी। जंजीरों से बांध कर उन्हें हंटर से मारा करती थी।
ससुराल जा कर पति को पीटा, एक महिला को बच्चे समेत जिंदा जला दिया
कुसुमा दिन-ब-दिन क्रूर होती जा रही थी। एक दिन वह अपनी गैंग के साथ अपने ससुराल पहुंची और अपने निर्दोष पति को बेइंतहा पीटा। इसके साथ ही अपनी देवरानी, जेठानी समेत परिवार के सभी सदस्यों की जमकर पिटाई की।
कुसुमा की क्रूरता की हदें तब पार हो गईं जब उसने जालौन जिले के एक गांव की महिला को उसके बच्चे समेत जिंदा जला दिया था। ये मामला पुलिस की फाइल में आज भी दर्ज है और कुसुमा उसकी सजा काट रही है।
मईअस्ता कांड: 15 मल्लाहों को एक साथ मार दिया, दो जिंदा मल्लाहों की आंखें निकाल लीं
साल 1984 में कुसुमा फूलन देवी के बेहमई कांड का बदला लेती है। फूलन के दुश्मन लालाराम के प्रेम में डूबी कुसुमा अपनी गैंग के साथ बेतवा नदी के किनारे बसे मईअस्ता गांव पहुंचती है। उस गांव के 15 मल्लाहों को लाइन से खड़ा कर गोली मारी और उनके घरों को आग के हवाले कर दिया।
कुसुमा ने मल्लाहों को इसलिए मारा था, क्योंकि फूलन की गैंग में अधिकतर मलाह ही थे। इसके कुछ दिनों बाद उसने बीहड़ में संतोष और राजबहादुर नाम के मल्लाहों की आंखें निकाल ली थीं और उन्हें जिन्दा छोड़ दिया था।
लालाराम ने मां की गाली दे दी, कुसुमा ने धमकी देते हुए गैंग छोड़ दी
कुसुमा गुस्सैल थी। एक दिन किसी बात को लेकर उसकी लालाराम से बहस हो गई लालाराम ने उसे मां की गली दे दी। कुसुमा ने लालाराम से कहा, “इसी वक्त गोली से उड़ा दूंगी।” लालाराम ने कहा, ”मैंने तुझे जमीन से आसमान पर पहुंचाया है।” तब कुसुमा ने कहा कि अब तुम्हारी औकात नहीं कि आसमान से नीचे ला सको। यह कहते हुए कुसुमा गैंग छोड़कर चली जाती है।
लालाराम से अलग होने के बाद कुसुमा डाकुओं के गुरु कहे जाने वाले रामाश्रय तिवारी उर्फ फक्कड़ बाबा के पास चली गई। डाकू फक्कड़ बाबा ने उसे अपनी गैंग में शामिल कर लिया। कुछ दिनों बाद उसके और फक्कड़ के प्यार के किस्से आम हो गए। कुछ ही दिनों में वो फक्कड़ गैंग की दूसरी मुख्य सदस्य बन गई।
मुठभेड़ में हैंड ग्रेनेड चलाती थी कुसुमा
अब कुसुमा फक्कड़ से भी ज्यादा खतरनाक हो चुकी थी। जब तक फक्कड़ किसी को मारने के लिए बंदूक उठाता तब तक कुसुमा उसे शूट कर देती। कुसुमा हमेशा स्टेन गन और कारतूस की पेटी से लेस रहती थी। पुलिस से उसकी आए दिन मुठभेड़ होने लगी थी, इसलिए अपने साथ हमेशा हैंड ग्रेनेड रख कर चलने लगी थी। एक मुठभेड़ में उसने 3 पुलिसवालों को मार गिराया था।
50 लाख न मिलने पर रिटायर्ड ADG को मार कर नहर में बहा दिया
कुसुमा ने अपने नाम का लेटर-पैड जारी कर दिया था। जब भी किसी का अपहरण करती, उसके परिवार को लेटर-पैड में धमकी और फिरौती की रकम लिख कर भेजती।
साल 1995 में कुसुमा ने एक रिटायर्ड ADG हरदेव आदर्श शर्मा का अपहरण कर लिया था। उनके घर वालों से 50 लाख की फिरौती मांगी। बेटा पवन किसी तरह कर्जा लेकर फिरौती का इंतजाम करने में लगा हुआ था। समय पर फिरौती रकम न मिल पाने पर कुसुमा ने हरदेव आदर्श को गोली मार कर नहर में बहा दिया था। उनका शव सहसो थाना क्षेत्र में नहर किनारे से बरामद किया गया था।
इस घटना के बाद पुलिस ने कुसुमा पर 35 हजार रुपए का इनाम रख दिया था। इनाम रखने के बावजूद पुलिस कुसुमा को नहीं पकड़ पा रही थी। STF की कई टीमें दिन-रात कोशिश करती रहीं, लेकिन कुसुमा और फक्कड़ को पकड़ नहीं पाईं।
पुतली बाई के बाद कुसुमा चंबल की दूसरी सबसे खूंखार महिला डकैत बन चुकी थी। बीहड़ में उसकी बादशाहत इस तरह कायम हो चुकी थी कि उसके इशारे पर उसकी गैंग के डकैत किसी का भी सिर कलम करने को तैयार रहते थे।
फक्कड़ ने उसके भीतर की संन्यासन को जगाया, फिर उसने सरेंडर कर दिया
फक्कड़ बाबा भगवान में बहुत ज्यादा श्रद्धा रखता था। लूट, अपहरण हत्याएं तो करता था, लेकिन बीहड़ के बाकी डाकुओं को प्रवचन भी दिया करता था। इसके लिए बाकी डाकू उसे इज्जत भी दिया करते थे। कई डाकू उसे अपना गुरु भी मानते थे।
बीतते समय के साथ फक्कड़ अध्यात्म के करीब होता गया। कुसुमा भी दिन-रात उसके साथ रहती थी। धीरे-धीरे कुसुमा पर भी उसकी बातों का असर हो गया। अब कुसुमा अपना पूरा जीवन पुलिस के खौफ और बीहड़ में भटकते हुए नहीं बिताना चाहती थी।
एक दिन दोनों ने मिलकर सरेंडर करने का फैसला ले लिया। सरेंडर करते वक्त कुसुमा ने शर्त रखी थी कि वो UP के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के सामने सरेंडर करेगी। व्यस्तता के चलते मुलायम सिंह वहां नहीं पहुंच पाए।
साल 2004 में कुसुमा और फक्कड़ ने अपनी पूरी गैंग के साथ पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। अभी कुसुमा जेल में है, उन्हीं मुकदमों की सजा काट रही है।
जेल जा कर राम लिखना सीखा, सुबह नहा कर घंटों पूजा करती है
पुलिस अधिकारी बताते हैं, “जेल में कुसुमा भोले बाबा की भक्ति में लगी हुई है। सुबह उठकर स्नान करती है और घंटों का तप करती है। वह खूंखार डकैत से संन्यासन बन चुकी है। शाम के वक्त गीता और रामायण का पाठ भी करती है। जेल के बाहर जो सिर्फ हथियार चलाना जानती थी अब वो जेल के अंदर जाकर कलम चलाना भी सीख चुकी है। जेल के अंदर उसने सबसे पहले राम लिखना सीखा था। वहीं, डाकू फक्कड़ बाबा भी जेल के अंदर प्रवचन देने लगा है।”