नीतिकार व राजनीतिज्ञ देश की दिशा तो तय करते हैं, पर वे पृथ्वी के महत्व को समझे नहीं

इस साल पृथ्वी दिवस का विषय ‘इन्वेस्ट ऑन अर्थ’ तय किया गया है। यह बात बिल्कुल सही भी है कि हमने दो-तीन सौ सालों में कई तरह के इन्वेस्टमेंट विकास के नाम पर किए लेकिन इन सबके बीच हमने दुर्भाग्य से पृथ्वी को नकार दिया। आज तक हमने जो कुछ भी पाया है, वह सब पृथ्वी और उसके संसाधनों की कृपा से ही था। लेकिन पृथ्वी के संदर्भ में हम कतई भी गंभीर नहीं हुए।

यही कारण है कि आज पृथ्वी एक ऐसे संकट की स्थिति में पहुंच चुकी है, जहां से शायद अब हम उसे उस स्तर पर वापस नहीं ला पाएं, जिसे हम सुकून वाली पृथ्वी कह सकें। अब आजकल जो हो रहा है, उसे ही देखें। अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि किस तरीके से मार्च में ही गर्मी ने तेवर दिखाने शुरू कर दिए और अप्रैल आते-आते मई-जून वाली गर्मी दिखाई देने लगी।

मतलब साफ है कि हमने जब भी इस तरह की चिंताएं जाहिर कीं या पृथ्वी व पर्यावरण दिवस जैसे आयोजन किए, तब भी हम आज तक उस तरह के कार्यक्रमों से न तो कुछ सीख पाए और ना ही कुछ कर पाए हैं। अगर ऐसा हो पाता तो शायद हम पृथ्वी को संवार पाने या उसे बचाने में अहम भूमिका अदा कर देते।

पिछले एक दशक में ही देख लें, पृथ्वी की नई पीड़ाएं हमारे सामने हैं। 1880 से लेकर आज तक तापक्रम में 0.01 डिग्री की बढ़ोतरी हर 10 वर्ष में हो जा रही है। 1900 से 1980 तक यह दर करीब 13.5 वर्ष में दर्ज की जा रही थी, लेकिन अब यह घट गई है। तमाम तरह के अध्ययनों ने यही पाया है कि हमारी ढांचागत विकास की शैली हो या सड़कों पर दौड़ती गाड़ियों की बढ़ती संख्या की बात हो या जीवनशैली को बेहतर बनाने वाले तरह-तरह के गैजेट्स को ही ले लें- इन सब के कारण तापक्रम में बढ़ोतरी हुई है।

ऐसे भी अध्ययन आज हमारे सामने हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि हमारी ऊर्जा-खपत दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही है और यह इसलिए कि हम सब सुविधाएं जुटाने में लगे हैं। हमारी सुविधाभोगिता पृथ्वी के तापक्रम को चरम पर पहुंचाकर हमारे लिए बहुत असुविधाजनक बनने जा रही है। यह भी महत्वपूर्ण है कि बढ़ता तापक्रम बढ़ती नमी का भी कारण बनता है।

दोनों ही मिलकर ऐसी परिस्थिति पैदा कर रहे हैं, जो आने वाले समय में असहनीय भी होगी। सेंटियागो स्थित स्क्रिप्ट इंस्टिट्यूशन ऑफ़ ओसियानोग्राफी के एक शोधकर्ता के अनुसार जलवायु परिवर्तन के लिए तापक्रम और नमी दोनों ही जिम्मेदार हैं। अभी तक अध्ययन के अनुसार हम मात्र तापक्रम को ही पृथ्वी की बदलती परिस्थितियों का दोषी मानते थे लेकिन अब सामने आया है कि बढ़ती नमी उसके दुष्प्रभाव में इजाफा कर देती है।

यह सही भी है कि जब-जब हवा में पानी भाप के रूप में होता है तो यह गर्मी और ऊर्जा छोड़ता है, जिससे नमी बढ़ती है और बारिश होती है, जिसे हम अक्सर अतिवृष्टि या फ्लैश फ्लड नाम से जानते हैं। इसे आप ऐसे समझिए कि करीब 0.79 सेल्सियस की बढ़ोतरी सतह पर मौजूद हवा के तापमान में अगर हुई तो 1.48 डिग्री सेल्सियस की कुल बढ़ोतरी दर्ज हो जाती है और इसमें पानी भी जुड़ा होता है।

ये बदलती परिस्थितियां और हमारी न रुकने वाली विकास की गाड़ी कब तक अत्यधिक दुष्परिणामों को जन्म देगी? इन्हीं बातों की गंभीरता को देखते हुए इस बार यह तय किया गया है कि हम पृथ्वी में भी इन्वेस्ट करें, अर्थात पृथ्वी की बदलती परिस्थितियों को समझें और उद्योग या बेहतर जीवनशैली के लिए जो भी खर्चे हम उठाते हैं, पृथ्वी के प्रति गंभीरता जताते हुए उसकी बेहतरी के लिए भी इतनी ही ऊर्जा और संसाधनों का उपयोग करें।

अभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्राणवायु को लेकर जो खबरें हैं, वे असहनीय हैं। दुनिया भर में 50 में से 35 ऐसे शहर पाए गए हैं, जो अपने ही देश में सबसे ज्यादा प्रदूषित कैटेगरी में हैं। दिल्ली ने तो दुनिया में एक बार फिर पर्यावरण-प्रदूषण का परचम लहराया है। जहां देश की राजधानी का ही दम घुट रहा हो, वहां बाकी देश के हिस्सों का क्या होगा?

सबसे बड़ी बात यह कि अंततः जिस प्रदूषण को हम सब झेल रहे हैं, हम एक साथ जुड़कर उसके बड़े विरोध की तैयारी भी नहीं कर रहे हैं ताकि सरकारों और उनके नीतिकारों को चेता सकें। इस बार का पृथ्वी दिवस इन्हीं संकल्पों की तरफ हम सबका ध्यान खींचता है।

आज पृथ्वी दिवस
हम पृथ्वी में भी इन्वेस्ट करें। बेहतर जीवनशैली के लिए जो भी हम खर्चे उठाते हैं, पृथ्वी की बेहतरी के लिए भी इतनी ही ऊर्जा और संसाधनों का निवेश करें।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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