अदालत में ताज .. मंदिर या मकबरा ?
याचिकाकर्ता का कहना है कि ताजमहल को लेकर सस्पेंस बरकरार है। यह साफ होना चाहिए कि वह शिव मंदिर है या मकबरा। अगर ताज के बंद दरवाजे खुलेंगे, तो यह विवाद हमेशा के लिए दफन हो जाएगा। याचिका पर फैसला कोर्ट करेगा, लेकिन एक्सपर्ट की मानें तो ताज के 22 बंद दरवाजों को खोलना आसान नहीं होगा।
विरासत को खतरा, UNESCO का दखल और बेतहाशा खर्च
ताज के बंद दरवाजों को खोलने में एक नहीं कई अड़चनें हैं। पहली, वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा रखने वाली इमारत से छेड़छाड़ के लिए चाहिए होंगे करोड़ों रुपए और हाईलेवल एक्सपर्सट्स की कई टीमें। दूसरी वजह यह भी है कि ताजमहल वर्ल्ड हैरीटेज मॉन्यूमेंट है, इसलिए UNESCO भी इस मामले में दखल देगा।
सेंट्रल स्टडीज एंड हेरिटेज मैनेजमेंट रिसोर्सेज, पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट अहमदाबाद में ऑनरेरी डायरेक्टर देबाशीष नायक कहते हैं, ‘ताजमहल वर्ल्ड हेरिटेज है, ऐसे में उसके ढांचे से छेड़छाड़ करने के लिए UNESCO से डिस्कस करना पड़ेगा। लॉजिक देना पड़ेगा। उसके बाद ही आप दरवाजे खोल सकते हैं।’
लेकिन क्या यह संभव है कि अगर कोर्ट ASI को उन दरवाजों को खोलने का निर्देश दे और याचिकाकर्ता का दावा ठीक निकले, तो भी वह वर्ल्ड हेरिटेज रहे? वे कहते हैं, यह दूर की कौड़ी है। लेकिन अगर हेरिटेज इमारत का ऑब्जेक्टिव चेंज होगा, तो UNESCO दखल जरूर देगा। उसके बाद वह इस पर फाइनल फैसला लेगा।
ताजमहल के आर्किटेक्चर को बचाए रखना बड़ी चुनौती
BHU की हिस्ट्री प्रोफेसर और आर्कियोलॉजिस्ट बिंदा कहती हैं, ‘ताजमहल का आर्किटेक्चर बेहद अनूठा है। आप देखिए कि उस पर लिखी कुरान की आयतों को आप जिस भी डायरेक्शन से देखें तो वे दिखाई देती हैं। इसका मतलब है कि तब के कारीगरों और एक्सपर्ट्स ने इंसानी विजन को समझकर उसका वैज्ञानिक विश्लेषण करने के बाद आयतें इस ढंग से लिखी होंगी कि दूर से और हर एंगल से वे दिखाई दें। ऐसे में अगर दरवाजे खोलने का निर्णय लिया गया तो पहले बेहद सावधानी और एक्सपर्ट्स की टीम के साथ काम करना होगा।
बिंदा के मुताबिक, ‘टीम भी कई स्तरों पर गठन करने की जरूरत होगी, पहली आर्काइव को खंगालने के लिए, दूसरी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम और फिर ऐसी टीम भी जो केमिस्ट्री यानी केमिकल्स की जानकार हो। अगर कोई स्ट्रक्चर जरा सा भी क्षतिग्रस्त हुआ, तो उसे मेंटेन करना आसान नहीं होगा। इन सबके लिए करोड़ों रुपए के फंड की जरूरत होगी। ऐसे में अगर ताजमहल के दरवाजे खोलने का निर्णय हुआ तो सबसे पहले फंड एलोकेट करना होगा। वह कोई छोटा-मोटा फंड नहीं होगा। कई काम फंड की कमी से बीच में ही अटक जाते हैं।’
इतिहासकारों को भी नहीं पता, क्यों बंद हैं दरवाजे!
आप हिस्ट्री की प्रोफेसर हैं, आपको क्या लगता है, आखिर यह 22 दरवाजे बंद क्यों हैं? इस सवाल पर प्रो. बिंदा कहती हैं, ‘देखिए कोणार्क मंदिर का भी कुछ हिस्सा बंद था, लेकिन उसके पीछे वजह यह थी कि वह डैमेज हो रहा था। अगर उसे पर्यटकों के लिए खोला रखा जाता तो वह और भी डैमेज हो जाता। अब ताजमहल के बंद दरवाजों के पीछे रहस्य क्या है, यह तो उनके खुलने के बाद ही पता चलेगा। मेरी चिंता बस यह है कि अगर कोई विवाद है तो उसे सुलझाया जाए, लेकिन वैश्विक धरोहरों और दुनिया के लिए मिसाल बने आर्किटेक्चर से छेड़छाड़ न हो। अगर कुछ करना भी है तो फिर ऐसे हो कि विवाद भी सुलझ जाए और वह इमारत अपने मूल रूप में भी बनी रहे।’
याचिकाकर्ता ने कहा- भविष्य के विवाद से बचने के लिए पर्दा उठाना जरूरी
रजनीश सिंह ने कहा, ‘मैं केवल शंका का समाधान चाहता हूं। जो सच होगा, वह सामने आएगा। वे 22 दरवाजे खुलेंगे, तो पता चलेगा कि वह मकबरा है या मंदिर। मैं अभी से कोई दावा नहीं करता। उन्होंने यह भी साफ किया कि उनकी याचिका का पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। यह उनकी व्यक्तिगत याचिका है।’
ताजमहल पर ताजा याचिका के बारे में जानने से पहले आप इन खबरों को भी पढ़ सकते हैं..
पिटीशन में ताजमहल पर उठाए गए 5 गंभीर सवाल
1. पिटीशन में हवाला दिया गया है कि कई किताबों में ये जिक्र है कि 1212 AD में राजा परमारदी देव ने तेजो महालय बनवाया था, जो बाद में जयपुर के राजा मान सिंह को विरासत में मिला था। यही बाद में राजा जय सिंह को मिला। शाहजहां ने तेजो महालय को तुड़वाकर इसे मकबरा बना दिया था।
2. किसी भी मुगल कोर्ट पेपर या क्रॉनिकल, यहां तक कि औरंगजेब के समय में भी ताजमहल का जिक्र नहीं है। मुस्लिम महल शब्द का इस्तेमाल कभी नहीं करते। किसी भी मुस्लिम कंट्री में इस शब्द के होने के प्रमाण नहीं हैं।
3. औरंगजेब काल के तीन दस्तावेज हैं- आदाब-ए-आलमगिरी, यादगारनामा और मुरक्का-ए-अकबराबादी। इनमें दर्ज 1652 AD के एक पत्र में औरंगजेब ने मुमताज के मकबरे की मरम्मत के निर्देश दिए। उसमें साफ लिखा है कि मकबरे की हालत ठीक नहीं है। वह कई जगह से रिस रहा है। दरारें पड़ चुकी हैं। मकबरे को 7 माले का बताया गया है। यानी साफ है कि मकबरा औरंगजेब के समय में काफी पुराना हो चुका था, अगर शाहजहां ने बनवाया होता तो कुछ ही सालों बाद यह इतना पुराना नहीं पड़ गया होता।
4. शाहजहां की पत्नी का नाम मुमताज महल बताया गया है। इसीलिए इसका नाम ताजमहल भी रखा गया, लेकिन अगर कोई ऑथेंटिक डाक्यूमेंट्स खंगाले तो पता चलेगा कि मुमताज का नाम मुमताज उल जमानी लिखा गया है।
5. इस कब्र को 1631 में बनाना शुरू किया गया था और 1653 में यह बनकर तैयार हुई। यानी 22 साल इसके निर्माण में लगे। एक कब्र को बनाने में इतना वक्त लगना भी शंका खड़ी करता है।